कानदान कल्पित
स्व. श्री कानदान “कल्पित” आधुनिक राजस्थानी कवियों में मंचीय कविता के एक बेजोड़ कवि हुए हें। राजस्थानी में लिखी अपनी कालजयी रचनाओं के कारण वे कवि सम्मेलनों की पहचान बन गए थे। राजस्थान में नागौर जिले में झोरड़ा नामक गाँव में आपका जन्म हुआ। आपकी कविताओं तथा गीतों में राजस्थानी लोक संस्कृति स्वयं साक्षात हो उठती है। खेत खलिहान, किसान, गांव, बालू मिटटी और रेत के धोरों में बीते बचपन में उन्होंने जीवन के विविध रंग देखे थे और ठेठ ग्रामीण परिवेश में जिए अपने बचपन के अनुभवों को इतनी सहजता से कविता में प्रस्तुत किया कि आम आदमी ने उसे अपने ही मन में उठने वाले भाव एवं विचार तरंगों के रूप में लेकर आत्मीयता से स्वीकार किया। अध्ययन करने के बाद उन्होंने राजकीय सेवा में अध्यापन को पेशे के रूप में अपनाया और इसी के साथ कविता से जीवन का जुड़ाव ऐसा हुआ कि वे आजीवन कवि सम्मेलनों में मंच की पहचान बन गए। वे जितने अच्छे कवि थे उतना ही सुरीला उनका गला था। राजस्थानी में अपनी विशिष्ठ शैली में जब वे कविता सुनाते तो श्रोता न केवल तन्मय हो जाते थे बल्कि उनकी लय के साथ “बोलण दे हबीडो” से गाने लग जाते थे। बेटी की विदाई पर लिखी उनकी रचना “सीखड़ली” सुनकर तो बरबस श्रोताओं की आँखों से आंसू बहने लग जाते थे। यह रचना उनकी कालजयी रचना बन गयी थी।
उनकी काव्य कृति “मरुधर म्हारो देस” में उनकी चुनिन्दा रचनाएँ संकलित हें। उनकी अन्य कृतियों में श्री हरि लीला अमृत खंड काव्य, हरीराम बाबे रो जीवन चरित एवं अप्रकाशित कृतियों में किशन लीला और रुकमणी लीला खंड काव्य है। 6 मार्च 2006 को अपने गांव झोरडा के कृष्ण मंदिर में उनका देहावसान हो गया, लेकिन संचार क्रांति के युग में उनकी कविताओं के बोल लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं।
सीखड़ली
कानदान जी की आवाज में बीरम की आवाज में
डब-डब भरिया, बाईसा रा नैण,
चिड़कली रा नैण, लाडलड़ी रा नैण,
तीतरपंखी रा नैण, सूवटड़ी रा नैण,
दो’रो घणो सासरियो ॥
मायड़ जाण कळेजै री कोर, फ़ूल माथै पांख्यां धरी।
माथै कर-कर पलकां री छांय, पाळ-पोस मोटी करी॥
राखी नैणां री पुतळी जाण, मोतीड़ा सूं महंगी करी।
कर-कर आघ, लडाई घण लाड,
भरीजी मन गाढ,
जीवण मीठो ज़हर पियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
डूबी सोच समंदड़ै रै बीच, तरंगा में उळझ परी।
जाणै मोत्यां बिचली लाल, पल्लै बंधी खुल परी।
भरियो नैणां ममता-नीर, लाडलड़ी नै गोद भरी।
जागी-जागी कळैजै री पीड़,
हिय सूं लीवी भीड़,
गरळ-गळ हिवड़ो भरियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
भाभीसा काढ काजळियै री रेख, संवारी हिंगळू मांगड़ली।
बीरोसा लाया सदा सुरंगो बेस, ओढाई बोरंग चूंदड़ली।
बाबोसा फ़ेरियो माथै पर हाथ, दिराई बाई नै सीखड़ली।
ऊभो-ऊभो साथणियां रो साथ,
आंसूड़ा भीज्यो गात,
नैणां झड़ ओसरियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
करती कळझळ हिवड़ै रा दो टूक, कूंकूं पगल्या आगै धरिया।
कायर हिरणी-सी मुड़-मुड़ देख, आंख्यां माथै हाथ धरिया।
मुखड़ो मुरझायो बिछडंतां आज, रो-रो नैण राता करिया।
चांद-मुखड़ै उदासी री रेख,
डुसक्यां भरती देख,
सहेल्यां गायो मोरियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
रथड़ै चढती पाछल फ़ोर, सहेल्यां नै झालो दियो।
कूंकूं-छाई बाजर हरियै खेत, जाणै जियां झोलो बियो।
छळक्या नैण घूंघटियै री ओट, काळजो काढ लियो।
काळी-काळी काजळियै री रेख,
मगसी पड़गी देख,
नैणां सूं ढळक्यो काजळियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
मनण-रूठण रा आणंद उछाव, हियै रै परदै मंडता गिया।
सारा बाळपणै रा चित्राम, नैणां आगै ढळता गिया।
बिलखी मावड़ नै मुड़ती देख, विकल नैण झरता गिया।
करती निस-दिन हंस-किलोळ,
बाबोसा-घर री पोळ,
ढ्ल्या रो रमणो छूट गियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
लागी बालपणै री प्रीत, जातोडी जीवड़ो दो’रो कियो।
रेसम रासां नै दी फ़णकार, सागड़ी नै रथड़ो खड़यो।
धरती अम्बर रेखा रै बीच, सोवन सूरज डूब गियो।
दीख्या-दीख्या सासरियै रा रूंख,
रेतड़ली रा टूंक,
सौ कोसां रहग्यो पीवरियो,
दो’रो घणो सासरियो ॥
डब-डब भरिया, बाईसा रा नैण,
चिड़कली रा नैण, लाडलड़ी रा नैण,
तीतरपंखी रा नैण, कोयलड़ी रा नैण,
सूवटड़ी रा नैण, दो’रो घणो सासरियो ॥
मुरधर म्हारो देश
click here to open YouTube videoमखमल बेळू रेत, रमै नित राम जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
सोनै जैडी़ रेत मसळता हाथां में
राजी हूता नांख दो मुट्ठी माथां में
रमता कान्ह गुवाळ बण्योडा़ खेतां में
जीवण रा चित्राम मंड़योडा़ रेतां में
मुळकै मूक सजीव, .पड़या सैनाण जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
नामी नगर नागौर नगीणा न्यारा है
भारत-भर में एक चमकता तारा है
जोधाणै नर तेज जियां तलवारां है
बीकाणा सिर मौड़ फ़णी फ़ुंफ़कारां है
जौहर जैसलमेर, ज़बर झुंझार जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
जंगी गढ़ चितौड़ धाक रणधीरां री
जगत सिरोमणी धाम, पदमणी मीरां री
अमर, अज़र, अज़मेर हाकमी पीरां री
जैपर गुलाबी सैर हार लड़ हीरां री
जंतर-मंतर म्हैल, माळिया और कठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
ऊंचो गढ़ गिगनार आबू हज़ारां में
लागै भीड़ अपार धूम बज़ारां में
कोटा, बूंदी चमक चांदणी तारां में
मस्त नज़ारा देख, चंबल री धारां में
पग-पग पर घनघोर, घुरया घमसाण जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
खेत, करम, नितनेम, धरम री पोथी है
साथी है हळ, बैल, पसुधन गोती है
फ़टी-पुराणी पाग, ऊंची-सी धोती है
कामगरा, किरसाण, जागती जोती है
जीवै मैणत पाण, मानवी देख जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
जीवण रो आधार, एक ही खेती है
बिरखा म्हारै देस सदा कम होती है
बरसै सावण मास अणंद कर देती है
बाज़र, मोठ, गुंवार, मूंग-कण मोती है
काचर, बोर, मतीर, मेवा मिस्टाण जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
करै कोयला डील, तपै ज्यूं धाणी है
पच-पच करदै रगत, पसीनो पाणी है
जीवत बाळै खाल, मूंढै मुळकाणी है
खड़यो तावडै़ लाय, धुंवां धकरॊळ उठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
लंबा काळा केस लूंबा लट्ट नागणियां
धीमी चाल मराल जियां गज़गामणियां
पतळी कमरां होठ गुलाबी-सी कळियां
मीठा मिसरी बोल, कंवळ-तन कामणियां
पणघट पग पणिहार, पायल री झणकार उठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
काम पड़यां हर नार, झांसी राणी है
मरज़ादा कुळ लाज, अमर निसाणी है
घुरतां घोर निसाण हुया अगवाणी है
नर सिमरथ मजबूत पगां में पाणी है
हंसता-हंसता सीस, सौंप दै बात सटै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
माणस मूंघा जाण जिता जळ ऊंडा है
भिडि़या दै नीं पूठ, पैंड पाऊंडा है
जीव थकां लै खोस कुणां रा मूंडा है
छेड़यां काळै नाग सरीखा भूंडा है
रण में बबरी सेर, सरीसा भभक उठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
मखमल बेळू रेत, रमै नित राम जठै।
मुरधर म्हारो देश, झोरडो़ गांव जठै ॥
मुरधर रा मोती
(परमवीर चक्र मेजर शैतानसिंह खातर)
फ़र्ज़ चुकायो थे समाज रो,
मुरधर रा मोती, मारग लियो थे रीति रिवाज़ रो।
बोली माता हरखाती, बेटो म्हारो जद जाणी,
लाखां लाशा रे ऊपर सोवेला जद हिन्दवानी।
बोटी बोटी कट जावै, उतरे नहि कुल रो पाणी।
अम्मर पीढयां सोढानी पिता री अमर कहानी।
ध्यान कर लीजे इण बात रो, मुरधर रा मोती दूध लाजे ना पियो मात रो।
सूते पर वार न कीजो, धोखे सूँ मार न लीजो।
साम्ही छाती भिड़ लीजो, गोला री परवा नाहीं।
बोली चाम्पावत राणी, पीढयां अम्मर धर कीजो।
फ़र्ज़ चुकायो भारत मात रो, मुरधर रा मोती, सूरज सोने रो उग्यो सांतरो।
राणी री बात सुणी जद, रगत उतरयो नैना में।
लोही री नई तरंगा, लाली छाई अंग अंग में।
माता ने याद करी जद, नाम अम्मर मरणा में।
आशीसा देवे जननी, सीस धरियो चरणा में।
ऊग्यो अगवानी जुध्ध बरात रो, मुरधर रा मोती, आछो लायो रे रंग जात रो।
धम धम उतरी महलां सूँ, राणी निछरावल करती।
बालू धोरां री धरती, मुळकी उमंगा भरती।
आभो झुकियो गढ़ कांगरा, डैना ढींकी रण झरती।
पोयां पग धरता बारै, पगल्याँ बिलूम्बी धरती।
मान बधाज्यो बिन रात रो, मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो।
चुशूल पर चाय करण री, चीनी जद बात करेला।
मर्दां ने मरणों एकर झूठो इतिहास पड़ेला।
प्राणा रो मोल घटे जद, भारत रो सीस झुकेला।
हूवेला बात मरण री, बंस रो अंस मरेला।
हेलो सुणज्यो थे गिरिराज रो, मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो।
तोपें टेंके जुधवाली, धधक उठी धूवाली।
गोळी पर बरसे गोळी, लोही सूँ खेले होली।
कांठल आयां ज्यूं काली, आभे छाई अंधियाली।
बोल्यो बरणाटो गोलो, रुकगी सूरज उगियाली।
फीको पडियो रे रंग प्रभात रो, मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो।
जमियो रहियो सीमा पर छाती पर गोला सहकर,
चीनीडा काँपे थर थर, मरगा चीन्चाडा कर कर।
सूतो हिन्दवानी सूरज, लाखां लाशा रे ऊपर।
माता की लाज बचाकर, सीमा पर सीस चढ़ाकर।
मुकुट राख्यो थे भारत मात रो, मुरधर रा मोती, फ़र्ज़ चुकायो थे समाज रो।
मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो।
हब्बीडो़
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर, बाजण दै भच्चीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
निरेताळ री झाटक राटक, उठ्ठण दे हब्बीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
खटक बसोलो रटक बजावै, हळ थाटै खातीडो़ रे।
पीळै बादळ खेत पूगियो, हळ ले कर हाळीडो़ रे।
भातो ले भतवारयां हाली, ले बळद्यां रै नीरो रे।
बेली धीरो रे।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर, बाजण दै भच्चीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
फ़ाटी-सी धोती अंगरखी, हूगी लीरो-लीरो रे।
रगत पसीनो धरती सींचै, ओ लाडेसर कीं रो रे।
जीवत खाल तावडै़ बाळै, ओ कुण मस्त फ़कीरो रे।
बेली धीरो रे।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर, बाजण दै भच्चीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
पेट पड़यो पातळियो खाली, भूखो हळियो बावै है।
भूख-तिरस नै मार तपस्वी, पच-पच खेत कमावै है।
उतर खालडी़ बांठां लागै, जद आवै कातीरो रे।
बेली धीरो रे।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर, बाजण दै भच्चीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
हिमत राखज्यै मत घबराई, दुख घणेरा आवैला।
अलख जगा खेतां में बेली, हीरा बिणज कमावैला।
आवैला मैणत कर बाळद, लाख-लाख रो हीरो रे
बेली धीरो रे।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर, बाजण दै भच्चीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
मुरधर री धोरा धरती रो, मीठो-गुटक मतीरो रे।
टीबै माथै बैठ साथीडा़, कनक-काकडी़ चीरो रे।
खटमीठा काचर रसभीणा, स्वाद अनोखो बीं रो रे।
बेली धीरो रे।
झटक झाड़बड़ रटक सूड़ पर, बाजण दै भच्चीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
निरेताळ री झाटक राटक, उठ्ठण दे हब्बीडो़ रे,
बेली धीरो रे।
मिळया दो पंछीङा अणजाण
इमीं रस गगरी छळकावे।।
उमंग री घटा उमट घनघोर, बिजळी पळके दांता में।।
मिळया दो पंछीङा अणजाण, चाँदणी झीणी रातां में।।
करे मन कुचमादी कुचमाद,
उमट आँधी सी उर छाई।।
रग रग आयो समंद ऊफाण,
मूसळा धारा बरसाई।।
सेज में करे किलोळ, जिंया लाली परभाता में।।
मिळया दो पंछीङा अणजाण, चाँदणी झीणी रातां में।।
गुलाबी होंठ कमल रा पात,
हवा में हलचल हिलतां ही।।
झिलमिल पूनम रो परकास,
घूंघटो ऊपर उठतां ही।।
हवा रो रंग बदळ जावे, मधुर अधरां मुसकातां में।।
मिळया दो पंछीङा अणजाण, चाँदणी झीणी रातां में।।
भोंहां तणी इन्दर धनुस,
गात रंग हिंगळू री डळिया।।
कळाई कोमळ कमल री नाळ,
आंगळयां फूल खिल्ले कळियां।।
कोयल सुर बोली में रस घोळ, पावती बातां बातां में।।
मिळया दो पंछीङा अणजाण, चाँदणी झीणी रातां में।।
चाँद री चमक चाँदनी सूं,
गुलाबी मैलो हुवै सरीर।।
सीप मुख मोती रे परवाण,
हलक सूं ढळतो दीखे नीर।।
संवारी कारीगर किरतार, लगी इक उमर बणाता में।।
मिळया दो पँछिङा अणजाण, चाँदनी झीणी रातां में।।
नगद नारायण भाई रे नगद नारायण!!
मर जावै बिन गोळी लागे,
भणंकार पङन्ता कानां में!!
रंग रग में रगत उफाण करे,
गरमी आवै ज्यूँ इन्जण मे!!
मानों रे सांची समझावंण,
बाकी खाली सब रामायंण!!
भज नगद नारायण नारायण,
नगद नारायण भाई रे नगद नारायण!!
बिन थारे हर उदघाटण में,
गरमी नीं आवै भासण मैं!!
थारे बिन रोळा सासण में,
फाका पङ जावै रासण में!!
मिट जावै सारी करङावंण,
सुपणै में लागे बरङांवण!!
भज नगद नारायण नारायण,
नगद नारायण भाई रै नगद नारायण!!
हैं नगद नारायण अंटी में,
नौ खूंन माफ गारंटी में!!
जा निकळ सापतौ घट्टी में,
दागों नीं लागे भट्टी में!!
अवतारी ओ-कळजुग तारण,
कर सांझ सवैरे गुण गायण!!
भज नग नारायण नारायण,
नगद नारायण भाई रे नगद नारायण!!
खींचताण सा
खींचताण सा – खींचताण सा।
कागला ई हँस री उडे उड़ान सा…..खींचताण सा।।
खींचताण सा – घम्मसाण सा।।टेर।।
इक चुम्बक सत्ता रे चिपक गीयो,
छोटकिया चुम्बक मिल एको कियो।
हाँ भेली हूँ मिली भुं मैं भुं,
वै खोश खुर्सी पर कब्जो कियो।
सत्ता रे खातर लोभी लड़पड्या,
झपटा झपटी मैं कुर्सी डोल्गी।
मौको पा हथल पटक कर उठी,
आपसरी तूँ ताँ मैं म्याऊं बोल्गी।
जीवतारा गुदडा पुग्या मुँसांण सा…..खींचताण सा।।
खींचताण सा – घम्मसाण सा।।
तन तो मिल्या पण मन अंतारा,
ऊपर सु दिखे घणा सांतरा।
चोले री खौली मैं फंण सांप रा,
किरडा गोइल्डा घणा भाँतरा।
तन बदलू दल बदलू रंग बदलू रे,
मतलबी पुरा आपो आपरा।
आँरो भरोसो करे सोई मरे,
साथी न सिरी सगे बापरा।
खिचडे री हांडकी आई उफाँण सा…..खींचताण सा।।
खींचताण सा – घम्मसाण सा।।
आँणो न जाँणो मँगाणो नही,
लेणों न देणो चुकाणो नही।
जोखो न धोखो नीं संकाँ फिरो,
बोतल भर पडसी लूकाँणो नही।
ख़ुद ही हो मधुशाला प्याला भरो,
घर-घर पड़ेलो अब जाणो नही।
बासी न बुसी है गरमा गरम,
तुरतां तुरंत लो शरमाणो नही।
आपरो ही आप पियो छाण-छाण सा…..खींचताण सा।।
खींचताण सा – घम्मसाण सा।।
हिच्चकी आई व्हैला
जुनी घङियाँ री ओळूं रे, समचे हिच्चकी आई व्हैला, भावां रे समंद हबोळा में, कोई गीतां गाई व्हैला।।
पुरवाई शीतल झोंका में,
मैवासी मोर टऊंका में।।
खळ खळ नद नीर खळका में,
पळ पळ कर बीज पळकां में।।
धर धर धर अम्बर धरूकां में, कोई रे चित छाई व्हैला,
जुनी घङियाँ री ओळूं रे, समचे हिच्चकी आई व्हैला।।
कविता लिखता री घङियाँ में,
आखर आखर री कङियाँ में।।
गीतां री लुम्बक लङियाँ में,
सावण री रिमझिम झङियां में।।
किणी री सांस उसांसां में, अटकी भटकी धाई व्हैला,
जुनी घङियाँ री ओळूं रे, समचे हिच्चकी आई व्हैला।।
बागां में खिलती कळियाँ में, टोळी मण्डराती अळियाँ में।।
वसंत रीतु रंग रळियां में,
चंगां पर गातां गळियां में।।
फागण री झीणी रातां में, कोई रे मन भाई व्हैला,
जुनी घङियाँ री ओळूं रे, समचे हिच्चकी आई व्हैला।।
आसा री ऊँची मैङी पर,
पावङियां चढता पग धरतां।।
लम्बी सी ढळती रातां में,
मनङै ने बातां बिलमाता।।
हिवङै री फाटक री आगळ, जङतां ठोकर खाई व्हैला,
जुनी घङियाँ री ओळूं रे, समचे हिच्चकी आई व्हैला।।
साथण सूं करतां बातां में,
मैंदी रचवातां हाथां में।।
तीजां पर गीत गवातां में,
नैणां री नाजुक घातां में।।
सूरत बण मूरत नैणा में कोई रे चित छाई व्हैला,
जुनी घङियाँ री ओळूं रे, समचे हिच्चकी आई व्हैला।।
आज़ादी रा रखवाला
click here to open YouTube videoकवि कानदान जी “कल्पित” की प्रशंसा में अन्य कवियों के उद्गार इस प्रकार हैं:-
झुरखे काना झोरङो, चारण वरण चकार।।
सीखङली सबसूं सिरै, अवल़ू गाई आप।
कीकर भूलां कानजी, छोङ गया थे छाप।।
सिरजी कविता सोवणी, गाया इदका गान।
मरुधर माटी मांयनै, कण कण मांही कान।।
~~शंभू बारठ कजोई।।
कानदान सा कल्पित को शत शत नमन।
जलमें नह हर देस में, नह जलमें हर बार।
~~उद्धव विश्नोई
युग पुरुष कानदानजी कल्पित को कोटी-कोटी नमन।।
कविता बांचण कानजी. ऐकर पाछो आव।।
देखो जंगल देसमे. पद अध्यापक पंच।
कंठ मधुर सुर कानजी. मद पी लूट्या मंच।।।
~~एम एस रतनू
यूं लागै मुरधर री माटी भरी गुवाङ लुटिजी है
नित भटकी नूंवी पीढ़ी नै मारग कूण बतावैला
कलम धणी रै निधन देश री भावी भंवर घुटिजी है।।
स्व. कल्पित साहब री पावन स्मृति नै कोटि कोटि निंवण
~~प्रहलादसिंह झोरङा
करसा वाली कवतड़ी, गांवा बारम्बार।।
~~उदाराम खिलेरी
कही ज साची कान ॥
सीखङली गुण सांतरी,
गाईजै शुभ गान ॥
~~मीठा मीर डभाल
पाछा आजो कान तूं, हिंवड़े हरख उपाड़।।
नहीं कान बिन ओपणो, मंच नगर देशाण।
एकर अवस् पठावजे, नेह करनला जाण।
कान बिन गावै कवण, बेटी हुवै बहीर।
सिर धर हाथ निभायजो, बहन भाई रो सीर।
धर धोरां री कीरति, थां बिन कवण करेह।
एकर पाछो आवरै, कान्हा भळे घरेह।
~~ठाकुर जगदीश बीठू
बंतळ ऐल्लै शब्द रस, गहरी अंतश पैठ।
गुणीजण यादियो कान कव, नगर झौरङा नग।
अंतश रे आभार ईम, नमण दौउ गुणी पग्ग।
~~नारायण सिंह चारण
सुन ल्यो इन्द्रा गाँधी जी। kandan ji की लिखड़ी original रचना पढ़णी है कृपया शेयर करके अनुग्रहीत करें।
दादाश्री कानदान थारीं सिखड़ली सिरमौर,
मखमळ बैळू रैत रमै, हिचकी सुणजै गौर,
आजादी रा रखवाळा, मुरधर रा मोती जौर,
खिंचताण,नगद नारायण,पंछीड़ा सुणा पौर,
गायन घणा मुरधर मे, ज्यूं सावण का लौर,
कविता सुणता यार करां, पुरखे पुरखे डौर,
झुर-झुर रोवै बीकाणो, झुर-झुर रोय नागौर ।।
श्यामसुंदर बामणियां बीकानेर
Inki book order krni ho to kha se kren
Inn kalyug me bhagwan bharose gadi…..iska main title kya h ….Kansan kalpit hi ki Kavita Ka ….kya koi batayega ….mujhe ye pdni h
प्लीज खिंच तान कविता उपलब्ध करवाये
जोड़ दी हुकम। आभार।
मरुधर थारी धरती ने ।हे हजारो वरदान
कभी ही तो जन्मी मीरा कभी कानदान
मायड़ ऐडा पूत जणै
जिसा जनिमिया कवी कानदान
कानदान जी कल्पित की कविताओं में लोकजीवन सहजता से साकार हो जाता है.
में साहित्य का ज्यादा जानकर तो नही हु मगर कवि कानदान जी कल्पित सिखडली जब भी पढ़ता हु सुनता हु मेरे आँखों से आसू जरुर निकलते है पता नही इस कविता में कितनी करुणता है
मुरधर रा मोती. ….कानदान जी कल्पित