कान्हड़दे सोनगरा – डॉ. गोविन्द सिंह राठौड़

अलाउद्दीन खिलजी हिंदुस्तान के सभी हिंदू राज्यों को अपने अधीन कर पूरे राष्ट्र पर इस्लामी राज्य का स्वप्न देख रहा था। इसी इरादे से उसने मालवा और गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का निश्चय करके युद्ध अभियान शुरू किया। इस अभियान में वह अपनी सेना को जालोर राज्य के मार्ग से ले जाना चाहता था। अत: उसने एक दूत के मार्फत जालोर के शासक कान्हड़दे से निवेदन किया कि-“वह उसकी सेना को गुजरात जाने के लिये इजाजत दे।” बादशाह के इस निवेदन पर कान्हड़दे ने अपने सामन्तों से विचार विमर्श करके उस दूत के साथ एक साहसी वीर राजपूत शासक की तरह जवाब भेजा-“हम तुम्हारी प्रार्थना किसी भी सूरत में मंजूर नहीं कर सकते। तुम्हारी सेना हमारे गाँव बर्बाद करेगी, मेरी प्रजा को बन्दी बनायेगी, नारियों की मान-मर्यादा भंग करेगी, ब्राह्मणों का अपमान करेगी, गायों का कत्ल करेगी। तुम तो मेरे राज्य से सेना को मार्ग देने का निवेदन कर रहे हो, मेरी धरती पर पैर भी नहीं पड़ने नहीं दूँगा। उसे फिर कह देना ! चाहे आकाश फट जाये, धरा उलट जाये, सूर्य पश्चिम में उगे, फिर भी मेरे वीरों के रहते तुम्हें मेरे जालोर राज्य से मार्ग नहीं दूँगा।”
कान्हड़दे के कठोर और साहस भरे जवाब को पाकर अलाउद्दीन भली प्रकार समझ गया कि वह मेरी सेना को उसके राज्य में से सही-सलामत आगे नहीं जाने देगा। अत: उसने अपनी सेना को मेवाड़ के मार्ग से गुजरात भेजी। अलाउद्दीन की सेना जब गुजरात से वापस दिल्ली की ओर लौट रही थी तब अलाउद्दीन ने एक सेना उलूगखाँ के नेतृत्व में कान्हड़दे के द्वारा मार्ग न दिये जाने के कारण उसे दण्डित करने के लिये भेजी। उस सेना ने जालोर के पास सकराणा में पड़ाव डाला। मुसलमान सैनिकों ने हिंदुओं पर अत्याचार शुरू किया। इस अत्याचार का कान्हड़दे को पता चला तो उसने यह प्रतिज्ञा की कि-“सोमनाथ की मूर्ति और गुजरात के कैदियों को मुक्त करवा कर ही वह अन्न ग्रहण करेगा।”
इसी दौरान गुजरात से लूटे गये धन के बंटवारे को लेकर अलाउद्दीन के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। वे कान्हड़दे की सेना के साथ मिल गये। उन्होंने कान्हड़दे की सेना के साथ मिलकर अलाउद्दीन की सेना पर आक्रमण किया जिसमें असँख्य मुसलमान सैनिक मारे गये। राजपूती सेना ने हिंदू बन्दियों को मुक्त कराया और सोमनाथ की मूर्ति को अपने कब्जे में ले लिया। जिसे कान्हड़दे ने मकाना में एक भव्य मन्दिर बनाकर वहाँ पुन: स्थापित की। हिंदुत्व की रक्षा करके कान्हड़दे ने क्षात्रधर्म का सही अर्थों में पालन किया। प्रजा उसे विष्णु का अंशावतार मानने लगी।
अलाउद्दीन अपनी सेना को गुजरात जाने के लिये मार्ग न देने के कारण कान्हड़दे पर पहले से ही क्रुद्ध तो था ही और अब सकराणा की हार से उसके दिल पर और भी गहरी चोट लगी। वह अवसर की प्रतीक्षा करने लगा कि किसी प्रकार कान्हड़दे को अपने अधीन किया जाये।
परन्तु इन्हीं दिनों एक ऐसी घटना घटी जिससे अलाउद्दीन को कुछ समय के लिये जालोर पर आक्रमण स्थगित करना पड़ा। अलाउद्दीन के दरबार में पंजू पायक था। जिसने बादशाह के सम्मुख कुश्ती के दाँव-पेच प्रदर्शित किये तो बादशाह ने उससे पूछा कि-“तेरे समान ऐसा कोई दूसरा खेल खेलने वाला योद्धा है ?” तब पंजू ने कान्हड़ेद के राजकुमार वीरमदे सोनगरा चौहान का नाम बताया। बादशाह ने वीरमदे को दिल्ली आने के लिए आमंत्रित किया। वीरमदे अपने चाचा राणगदे एवं अन्य योद्धाओं के साथ दिल्ली पहुँचा।
दिल्ली दरबार के समक्ष वीरमदे और पंजू के बीच कुश्ती का आयोजन किया गया। पंजू ने काफी दाव-पेच लगाये पर आखिर में वीरमदे ने उसको धराशायी कर दिया। वीरमदे की अद्भुत वीरता को देखकर बादशाह की पुत्री सिताई उस पर मोहित हो गई। उसने वीरमदे के साथ विवाह की इच्छा बादशाह को बताई। बादशाह ने अपनी बेटी को बहुत समझाया कि-“मैं तो पूरे हिंदुस्तान का इस्लामीकरण करना चाहता हूँ और तुम एक हिंदू काफिर को वरण करना चाहती हो, इससे बड़ा मेरा क्या दुर्भाग्य होगा?” तब सिताई ने अपने पिता से कहा-“अब्बाजान ! आप हिंदुओं की उदारता, विशालता समझ ही नहीं पाये। वे सम्पूर्ण विश्व को अपना कुटुम्ब मानते हैं, वे सबके सुख की कामना करते हैं। आपका यह धर्म कैसा है जो निर्दोष लोगों का कत्ले आम करवाता है। राजकुमार वीरमदे मेरे पूर्व जन्म के पति हैं?”
बादशाह ने अपनी पुत्री को हर प्रकार से समझाने का प्रयास किया। फिर भी जब वह नहीं मानी तो बादशाह ने हार मानकर वीरमदे को अपनी बेटी देने का प्रस्ताव भेजा। वीरमदे ने बड़ी सूझ-बूझ, चतुराई से काम लिया। उसने बादशाह को कहा कि-“हमारे पास इतनी धन-सम्पत्ति नहीं कि हम शाही रीति-रिवाज के साथ ठाट-बाट से बारात लेकर आ सकें।” इस पर बादशाह ने वीरमदे को शाही खजाने से भरपूर रुपये दिये। वीरमदे ने विवाह के लिये कुछ समय माँगा और राणगदे को जमानत के रूप में वहीं छोड़कर स्वयं जालोर चला आया।
जालोर पहुँच कर वीरमदे ने शाही खजाने के धन से किले की प्राचीरों को मजबूत करवाया और शहर के चारों ओर एक सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करा दिया। उसने भावी युद्ध की आशंका से किले में भरपूर खाद्य सामग्री भी इकट्ठी कर ली। अलाउद्दीन काफी समय से वीरमदे की प्रतीक्षा कर रहा था कि वह बारात लेकर आयेगा। पर जब उसको यह पता चला कि उसने तो शाही खजाने के धन से किले और शहर को सुदृढ़ कर लिया है और अब युद्ध के लिये तैयार है, किसी भी लोभ-लालच या दबाव में अपना धर्म बेचने वाला नहीं है तो वह क्रोध से तिलमिला उठा। उसने एक विशाल सेना के साथ जालोर पर चढ़ाई कर दी।
अलाउद्दीन की सेना ने जालोर के पास सुन्दर सरोवर के निकट पड़ाव डाला। वहाँ पड़ाव डालने के पश्चात् बादशाह ने पहले गोलण भाट को वीरमदे के पास भेजा और कहलाया कि-“दिये गए वचनों के अनुसार तुम मेरी बेटी से विवाह करो।” वीरमदे अपनी मर्यादा व कुल परम्परों पर अड़ा रहा और विवाह के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा कि-
मांमो लाजै भाटियाँ, कुळ लाजै चहुवांण।
वीरम परणे तुरकड़ी, उल्टो उगे भांण॥
वीरमदे ने अपने योद्धाओं को दुर्ग के परकोटे पर जगह-जगह नियुक्त करके युद्ध की पूरी तैयारी कर ली। दुर्ग को सजाकर परकोटे पर हर्षोल्लास के साथ दीपक जलाये गये। अपनी सेना के मनोरंजन के लिये नाच-गाने का आयोजन किया गया। किले की शोभा और राजपूत वीरों का जोश देखकर बादशाह दंग रह गया। वीरमदे और उसके काका मालदेव ने युद्ध की ऐसी चाल चली कि वे रात में किले से नीचे उतरकर शाही शिविर पर धावा बोलते और कई सैनिकों का सफाया कर देते। इस प्रकार यह युद्ध अभियान सात दिन तक चलता रहा, जिससे शाही सेना में खलबली मच गई।
अलाउद्दीन निरुपाय हो गया और जब उसे विजय की कोई आशा नहीं रही तो उसने अपनी सेना को दिल्ली कूच का आदेश दिया। उसकी सेना का मालदेव ने मेड़ता तक पीछा करके अनेक म्लेच्छों को मार गिराया। उनके घोड़े छीन लिये। अलाउद्दीन मन ही मन जलता रहा, प्रतिशोध की भावना दिनों-दिन बढ़ती गई। उसने एक विशाल सेना जालोर पर चढ़ाई के लिये फिर भेजी। कान्हड़दे ने भी बादशाह का मद चूर करने के लिए युद्ध की व्यापक तैयारी की। उसने सैनिक सहायता के लिये सांचोर, थिराउ, अमरकोट, कच्छ, जांगलू, नाहेसर, देवेर, बाड़मेर, सिंध, सपादलक्ष, नरवर, सोझत, आबू, पालनपुर, सिवाणा, महेवा, भाद्राजूण, मंडोर आदि के अधिपतियों को संदेश भेजे। जिससे छत्तीस राजकुलों की सेना आतताइयों से धर्म युद्घ करने जालोर पहुँच गई।
खिलजी की सेना ने जालोर पहुँचकर स्वर्णगिरी का घेराव कर लिया पर कई दिनों के घेराव के बाद भी किला हाथ नहीं लगा तब बादशाह ने मलिक निजामुद्दीन के नेतृत्व में एक विशाल सेना और भेजी। कान्हड़दे ससैन्य किले से उतरा और मलिक की सेना को घेर कर उस पर आक्रमण किया। मलिक बुरी तरह मारा गया।
अपनी सेना की करारी हार देख अलाउद्दीन को जालोर विजय की कोई आशा न रही तो उसने युद्ध समाप्ति का निश्चय कर अपने डेरे-डांडे समेट दिये। पर दुर्भाग्यवश इसी बीच इस युद्ध में एक अप्रत्याशित मोड़ आया। कान्हड़दे ने पूर्व में दो दहिया राजपूतों को खून करने के अपराध में सूली की सजा दी थी। उनके कंकाल जो एक दूसरे के विपरीत लटक रहे थे, हवा के झोंकों से सन्मुख हो गये। इस पर कान्हड़दे हँसकर बोले-“ऐसा लग रहा है कि दहिये संगठित होकर किले को लेना चाहते हैं।” पास में खड़े बीका दहिया को यह बात खटक गई। वह रुष्ट होकर खिलजी के सेनापति से जा मिला। उसने किले का सारा भेद बताने की बात कही तो सेनापति ने उसे गढपति बनाने का प्रलोभन दिया। तब खिलजी सेना ने सुरंग लगाकर किले की दीवार को एक जगह से ध्वस्त कर दिया और वे रातों-रात किले में घुस गये।
बीका की धर्मपत्नी हीरा को अपने पति की काली करतूतों का पता चला तो उसका हृदय काँप उठा। अपने स्वामी और राज्य के प्रति विश्वासघात और नमकहरामी करने पर वह इतनी क्रोधित हुई कि ‘तासली’ के भरपूर एक ही वार से अपने पतिदेव को यमलोक पहुँचा दिया और उसने सारी सूचना कान्हड़दे को दे दी। कान्हड़दे अपनी सेना को किले में इकट्ठी कर युद्ध के लिये तैयार हो गये। उन्होंने साके का निर्णय कर लिया।
राजपूत वीरों द्वारा साके का समाचार पाते ही रनिवास की स्त्रियाँ जौहर व्रत के लिये तैयार हो गई।
महारानियों ने कान्हड़दे और वीरमदे के युद्ध प्रस्थान से पूर्व उनकी आरती उतारी, कुंमकुंम तिलक किये, अक्षत-गजमोती चढ़ाये और मन ही मन आशापुरी माता से प्रार्थना की कि हे मातेश्वरी ! हमारे रणबाँकुरों को रण में विजय देना, अक्षय कीर्ति देना। वीरमदे की माताओं ने उसके शीश पर हाथ फेरते कहा-“वत्स ! रण में सहर्ष जूंझना। क्षत्रियों को तो माताएँ सदैव यही शिक्षा देती आई हैं कि-
इळा न देणी आपणी, हालरियां हुलराय।
पूत सिखावै पालणै, मरण बड़ाई मांय॥
वीरमदे ने माताओं के चरण स्पर्श किये और उत्साहपूर्वक युद्ध के लिये प्रस्थान कर गया।
कान्हड़दे की जयंतदे, उमादे, भावदे, कमलादे रानियों की अगवानी में राजपूत नारियों ने पूजादि सम्पन्न करके सुन्दर परिधान पहने, तुलसी पत्र व गंगाजल लिया, याचकों, भाटों, ब्राह्मणों, चारणों को दान-दक्षिणा दी और वे हरि स्मरण करती हुई बड़े शांत भाव से आशीर्वचन कहती हुई चन्दन चिताओं की ओर बढ़ती-बढ़ती उन्हीं में समा गई।
अपनी मान-मर्यादा की रक्षार्थ जालोर नगर की हर गली में जौहर की लपटें दिखाई देने लगी। 1584 चिताओं में छत्तीस कौम की ललनाएँ अपने बच्चों सहित हर-हर महादेव करती अपना बलिदान दे कर भस्म हो गई। अपने पतियों के स्वागतार्थ वे स्वर्ग में पहले ही पहुँच गई। और उधर जौहर ज्वाला का प्रकाश सांचोर (करीब 60 किलोमीटर दूर) तक दिखाई दे रहा था।
कान्हड़दे की सेना ने केसरिया वस्त्र धारण किये, कसूंबा की आपस में मनुहारें ली और अपनी पागों पर तुलसीपत्र चढ़ाये। बंदीजन योद्धाओं का यशोगान कर रहे थेे। बाजे, नगारे-निशाने की रणभेरी के निनाद से आकाश गूंज उठा। इतने मेें कान्हड़दे ने साके की मांगलिक वेला जानकर पौळपात (बारहठजी) कोे हुक्म दिया कि गढ़ के दरवाजे खोल दिए जायें। गढ़ के दरवाजे खुलते ही सैनिक हाथों में तलवारें, भाले, बर्छियाँ, कटारियाँ लेकर हर-हर महादेव के युद्धघोष के साथ शत्रुओं पर टूट पड़े। दैत्य-देवों की तरह घमासान युद्ध होने लगा। कान्हड़दे की सेना ने जबरदस्त साका किया जिससे मुसलमानों को धराशायी कर दिया गया। इसी बीच भावी परिस्थितियों को देखते हुए कान्हड़दे के ज्येष्ठ राजकुमार वीरमदे का राजतिलक किया गया।
कान्हड़दे अपने घोड़े पर सवार दोनों हाथों की तलवारों के प्रहार से शत्रुओं को काटता बढ़ रहा था। उसने आतताइयों को मार गिराया।
अंत में स्वर्णगिरि का वह शेर रण में लड़ता-लड़ता अपनी मातृभूमि के लिये अपना बलिदान देकर स्वर्ग पहुँच गया। पिता को वीरगति पाते देख वीरमदे सिंह गर्जना के साथ और भी रौद्र हो गया। वह तुर्कों को गाजर-मूली की तरह काटने लगा।
बादशाह ने वीरमदे को जिन्दा पकड़ने का आदेश दे रखा था। वीरमदे ने दो पहर तक शत्रुओं से बड़ी वीरता व अदम्य साहस के साथ युद्ध किया। पर असंख्य शत्रुओं ने उस परमवीर को अपने घेरे में ले लिया। उस पर तुर्क तलवारों के वार पर वार करने लगे। उसका ज्यूं ही शीश कटा वह द्रुतगति से कबन्ध युद्ध करने लगा। उसकी तलवार बिजली की तरह प्रहार करती आतताइयों को धराशायी कर रही थीकि किसी ने कबन्ध पर नील(गुली) का छींटा डाल दिया। छींटा लगते ही झूंझार वीरमदे प्राणोत्सर्ग कर गया। इस तरह वीरमदे साढ़े तीन दिन जालोर का राज्य करके वीरगति को प्राप्त कर स्वर्ग में अपने पिता से जा मिला।
इस युद्ध अभियान में कांधल देवड़ा, लक्ष्मण, सोभ, जैता देवड़ा, जैता बाघेला, लूणकरण, सोमदेव व्यास, झाँझण भंडारी, गाडण सहजपाल, अडवाल बीहण, धारा सोढा, भांण कांधल आदि योद्धा काम आये।
तुर्कों के अत्याचार, आतंक के विरुद्ध लड़े गये इस ऐतिहासिक युद्ध में लाखों वीर शहीद हो गये पर अलाउद्दीन की बेटी- सिताई के प्रणय की रस्म अभी होनी शेष थी। सिताई की धाय सनावर जो इस युद्ध में साथ थी, वीरमदे का मस्तक सुंगधित पदार्थों में रखकर दिल्ली ले गई। वीरमदे का शीश दिल्ली पहुँचा तो सिताई ने हिंदू धर्म के रिवाज के अनुसार शीश के साथ अग्नि स्नान करने की इच्छा प्रकट की। सैनिकों ने वीरमदे का शीश थाल में रखकर शाहजादी के सम्मुख प्रस्तुत किया। पर शीश शाहजादी को देखते ही घूम गया। यह देख शाहजादी सिहर उठी। उसने कहा-
चटक फाड़द्यूं चीर नैं, तोडूं नवलख हार।
सनमुख होज्या रे सोनीगरा, भौ-भौ रा भरतार॥
वह फिर करबद्ध होकर विनय करने लगी कि “हे राजकुमार! इसमें मेरा क्या दोष है ? आप मेरे भव-भव के भरतार हैं। आपके सिवा मैंने स्वप्न में भी किसी अन्य पुरुष का वरण नहीं किया है। मैं आपके संग फेरे खाकर अग्नि स्नान करना चाहती हूँ।” सिताई ने वीरमदे को अपने पूर्व जन्म का स्मरण दिलाया तब मस्तक स्वत: ही उसके सम्मुख हो गया। शाहजादी ने शीश के साथ फेरे की रस्म सम्पूर्ण की और उसे अपनी गोदी में लेकर अग्नि स्नान किया ।
अपने देश की अखंडता, स्वतंत्रता, स्वाभिमान, कुल गौरव-परम्परा और प्रजा की रक्षार्थ आतताइयों से कई वर्षों तक घमासान धर्म युद्ध करते-करते एक देशद्रोही नमकहरामी के झूठे लालच में पड़ने के फलस्वरूप आखिरकार स्वर्णगिरि जालोर राज्य की दो पीढ़ियों और उनके साथ लाखों वीर-वीरांगनाओं के बलिदान के बाद ही वि.सं. 1368 की वैशाख सुदि पंचमी को गढ़ टूटा। पर गढ़ के अधिपतियों, वीर-वीरांगनाओं का इस ऐतिहासिक लम्बे संघर्ष में न कभी साहस, धैर्य, स्वाभिमान, मान-मर्यादा और संकल्प टूटा और न कभी अपनी मातृभूमि के प्रति नेह छूटा। राजस्थान के एक छोटे से राज्य के महावीरों व वीरांगनाओं ने दिल्ली की खिलजी सल्तनत के विरुद्ध कैसा भयंकर अट्टहास कर जीवन का अमरत्व पा लिया।
~~ डॉ. गोविन्द सिंह राठौड़
Sir please add Dhunanagam Rajkot District. Isharani (Rohdiya)
बहुत अमुल्य जानकारी देणे के लिये धन्यवाद I मुझे कान्हाड्दे और सोनगीरा के बारे और जानकारी चाहिये कृपया संदर्भ दिजीये I
आपको सन्दर्भ मिले तो मुझे भी बताना