करुं शबद रा खाजरू

मदिरा प्हैली धार री, डिंगळ री डणकार।
जाजम जमगी जोर री, आवौ सब सिरदार।।1
हुं मां रो, मां माहरी, किण रे उण सूं काह।
मन मांनै वा पुरस दूं, बिनां किया परवाह।।2
करुं शबद रा खाजरू, भाव तणी दूं धार।
पीवै माता प्रेम सूं, सदा करै स्वीकार।।3
शबद बोकडो बलि करुं, झेल कलम कर खाग।
चढियौ जो मां रै धकै, जागा उणरा भाग।।4
शबदां री जद दी बली, बही रगत री धार।
दुध चढायौ मात नें, उणरा छांटा डार।।5
लय छंदां रो चूरमौ, यती, गती रा रोट।
रोज बणावै पुरसतौ, नपौ रसौयौ ठोठ।।6
रासो ख्याति वेलियां, परवाडा परसंग।
भांत भांत रा भावतां, भोजन घणै उमंग।।7
नव विध भोजन वापर्या, अतुकांत अणपार।
गज़ल गीत कविता नज़म, मां न करै इनकार।।8
मुक्तक, माहिया, हाइकू, क्हाणी वळै निबंध।
पुरसै कव जन प्रेम सूं, गध्ध -पध्ध प्रबंध।।9
मांय मसाला मोकळा, दुहा सोरठा छंद।
दोधक, गाथा, रोमकंद, सुंदर जेण सुगंध।।10
पुरसे कवि जन प्रेम सूं, मात करै स्वीकार।
लख नव संग ले कोळिया, जीमै बारंबार।।11
कोई म्हानै कांउ के, करुं नही परवाह।
म्हूं आवड रो डावडौ, धावड वड पतशाह।।12
नशो मात रा नाम रो, पीवूं भाव अथाह।
मनै नहीं किणरी पडी, रहतौ बेपरवाह।।13
~~नरपत आसिया “वैतालिक”