करूणाष्टक – कृष्णदास छीपा

!!दोहा!!
भव भव बंधन भंजिया कृष्ण सुधारण काज !
करूणा अष्टक कहत हुं मानीजो महाराज !!
!!छन्द-ईन्दव!!
मृग बंद को फंद मुकुन्द कट्यो दुख द्वन्द हट्यो विषयावन में
ग्रही ग्राह प्रचंड समंद विशाल गजेन्द्र की टेर सुनी छिन में
धर उपर घंट गयंद धरयो खग ईण्ड उद्धार कियो रन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!१!!
भयंकर बनी अति दुत भयंकर सीत हरि ज्यों अनीतन में
ललकार हुंकार ही मारि दशानन प्रान लियो अपनापन में
दशकंध के भ्रात अनाथ के नाथ सनाथ कियो गढ़ लंकन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!२!!
पट खेंचत नार पुकार करि अरि भाव भयो दुर्योधन में
हरि, हे हरि, हो हरि, हाय हरि तव क्यों न मरि जननी तन में
तिण बेर न देर लगार करी हरि अम्बर शीर ओढावन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!३!!
मतिमन्द सुरेन्दर अन्ध भयो गयो गौतम गेह व्यभिचारन में
निज नारी के लार विकार करी रिषी श्राप दियो जिण कारन में
रघुराय फटाय मिटाय शिला तन पार करी पद छारन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!४!!
जल पूर नदी भरपूर तठे श्रीराम बैठे उन नावन में
रघुराय के पांव धोवाय दिये हरि पार भये हरि के गुन में
कुलकार कठोर कठोर महाक्रम छूटि गये प्रभु पावन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!५!!
बृज बाल किशोर में छोड़ि सबे सुख राघव काज रहयो रन में
लघु वेश में नाम प्रवेश लियो गुलतान रहयो दुख के दिन में
महाराज निवाज के राज दियो थर थाप कियो सुख के छण में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!६!!
करि कोप अरोप अलोप करि ब्रज मेघ विचार कियो मन में
घन गाज आवाज अग्राज घटा धर व्योम फटा विकटावन में
नर नारि पुकारते धार लियो गिरी गोप रू बाल ऊबारन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!७!!
किरतार ऊद्धार अपार करे नर नारी तिरे हरि के गुन में
ग्रीध व्याघ्र असिद्ध को सिद्ध करे कुल आबाद रहयो कुल ही किन में
कृष्णा तृष्णा सब दुर करो रसना ऊच्चरो छिन ही छिन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चित धारि रहो ऊन में !!८!!
!!दोहा!!
करूणाष्टक जो कहे मगन रहे मन मांहि !
भगत वत्सल भगवंत हैं बूडत पकड़े बांहिं !!१!!
नर नारी नित नेम सुं प्रात सांज करे पाट!!
कष्ट टळे कृष्ण मिळे थीर मन रहे सुख थाट !!२!!
~~कृष्णदास छीपा