कवि स्व. अजयदान जी रोहडिया के जीवन की कुछ रोचक घटनाएं

कवि नरपत दान आसिया की जुबानी अपने नानोशा कवि अजयदान जी रोहडिया के जीवन की कुछ रोचक घटनाएं:
काशी नागरी प्रचारिणी सभा की विशारद की परीक्षा में मेरे नानोशा अजयदान जी लखाजी रोहडिया, मलावा भुगोल में फेल हो गए, फिर क्या था उन्होंने भुगोल के सारे सवाल के जवाब कविता में लिखकर तैयार किए और एक कुंजी काव्यमय भुगोल की बना दी। उनको फिर भुगोल में दुसरी बार परीक्षा देने पर सौ में से तेरानवै नंबर आए.
कुछ उदाहरण:
प्रश्न :भारत में उत्तम बंदरगाह की क्यों कमी है?
जवाब:तट प्रदेश का कटा, फटा, रेतीला, सम है।
इसी लिए भारत में उत्तम बंदरगाह कम है।।
मेरे नानोशा जब कच्छ की ब्रजभाषा काव्य पाठशाला भुज में पढते थे तो उनके गुरू प्रधानाचार्य आदरणीय शंभुदान जी रतनु (पुष्पदान जी गढवी जो कच्छ के पाँच बार लगातार सांसद रहै के पिताजी) हुआ करते थे। कच्छ पाठ शाला के उस समय के संरक्षक विजयराज बावा (कच्छ के महाराव) हुआ करते थे। उनके जन्मदिन के उपलक्ष में विजयराज बावा ने सारे ब्रजभाषा पाठशाला के कवियों की एक काव्य गोष्ठि का भुज के आइना महल में आयोजन किया। शंभुदान जी सारे कवि छात्रों को महल में लेकर उपस्थित हुए। सब को महाराव साहब के सम्मान में एक रचना पढनी थी।
चूंकि मेरे नानोशा को कच्छ ब्रजभाषा पाठशाला में सिरोही की राजमाता गुलाब कुंवर बा ने भेजा था और सिरोही स्टेट उनको आठ या दस रूपये मासिक छात्रवृत्ती भी देती थी। नानोशा ने सोचा कि राजा के वहां थोडा ढंग से जाते है सो उन्होंनें भुज के मोची बजार से आठ रुपये की जूतियां खरीद कर पहनी ताकि उनका व्यक्तित्व कृतित्व के साथ अलग दिखे।
राजमहल में सभी कवि लोग विजय राज बावा को एक एक कर मिल रहे थे और उनके सामने कविता प्रस्तुत कर रहै थे। मेरे नानोशा की बारी आने पर वह भी मुलाकात कक्ष के बाहर अपनी जूतियाँ उतारकर विजयराज बावा को मिलने गए और कुछ कवितायें सुनाई।
बाहर आने पर उन्होंने देखा कि उनकी आठ रुपये वाली बेशकीमती मोजडी कोई चुराकर ले गया। राजा द्वारा दी गई भेंट के कवर में उपहार स्वरूप पाँच रुपये का नोट उन्होंने देखा। उन्होंने यह बात उनके गुरुदेव शंभुदान जी को बताई और मजाकिया लहजे में एक दोहा बोला:
विजयराज के राज में, अजयदान आयाह।
जूती गँवाई आठ की, पाँच रूपये पायाह।।
शंभुदान जी भी खुब हँसे। उन्होंने कहा “अजयदान में आप को वापस महाराव के पास लेकर जाता हूं और आपको यह दोहा फिर से सुनाना पडेगा”। वे नानोशा को महाराव के पास ले जाकर बोले यह राजस्थान के सिरोही जिले के मलावा ग्राम का अजयदान है जिसने अभी अभी एक रचना बनाई है। फिर कुछ ना नुकर के बाद नानोशा ने शंभुदानजी के आग्रह पर वही दोहा सुनाया।
“विजयराज के राज में, अजयदान आयाह।
जूती गँवाई आठ की पाँच रूपये पायाह।।”
महाराव खूब हँसे और फिर अपने दीवान को फ़ौरन आदेश दिया कि अजयदान के कवर में सौ रुपये और डाले जाए।
इस समग्र घटना का जिक्र शंभुदानजी गढवी ने अपनी पुस्तक कच्छ दर्शन में किया है।
आज भी साहित्यिक कविता के साथ साथ कच्छ का चारण समाज मेरे नानोशा को इस दोहै से जानता है।
मेरा विवाह ११ दिसंबर १९९९ को सांबरडा गुजरात में सुखदेव सिंह जी रामसिंह जी गढवी की सुपुत्री लता(चेतना) से हुआ। मेरा गांव खाण और पारिवारिक नाम नरेश है। पिताजी का नाम आवडदानजी है। मेरी इच्छा थी कि मेरी शादी की कुमकुम पत्री काव्यमय हो इसी आशय से मैंने अपने नानोशा से आग्रह किया कि वे मेरी शादी की कुमकुम पत्रिका कविता में बनाकर दें। मेरे इस अनुरोध पर नानाजी ने पांच सवैया बनाकर भेजे जो इस प्रकार से हैं। यह इस बात की साक्षी है कि हमारे बुजुर्ग कितने शीघ्र कवि और साहित्यानुरागी थे। कुमकुम पत्रिका का फोटो भी यहाँ प्रदर्शित है।
मंगल मूर्ति स्वरुप मनोहर, मंगल मोड़ समे शुभ मानी।
वंदत आदि सुपूज्य विनायक, दीप नवां युग बद्ध सुपाणि॥
रिद्धि ऽरू सिद्धि प्रसिद्धि नवो निधि, लेकर साथ शुची मह-बानी।
प्रिय नरेश-लता शुचि लग्न पे, लेहु प्रसीद सु नन्द-भवानी॥
आत्मज आवडदानजी आसिया प्रिय नरेश चिरायु की शादी।
है सुखदेव जी सांबरडा की सुता सु लता संग याद दिलादी॥
ग्यारे दिसंबर वार शनि शुभ – इसवी वर्ष निन्यानु इत्यादी।
आदरणीय अवश्य पधारिए, आत्मिय मान सनेह अनादी॥
पाते ही कुंकुम पत्रिका ब्याह की, सादर पूर्ण सुस्नेह-उमंगे।
आदरणीय अवश्य पधारिये, प्रीय नरेश विवाह प्रसंगे॥
मोड़ विवाह में बाढ़े अनूपसु, आवहिंगे मेह्मा जो महंगे।
प्रेम पयोधि ह्रदे उमड़े बिच, स्नेह सलिल उतुंग तरंगें॥
प्यारे हमारे समस्त शुभेच्छक और सबंधि शिरोमणि सारे।
मित्र हितैशी बडे लघु बंधव ले परिवार सभी संग प्यारे ॥
खांण पधारन का मत भूलिए, पांवडे सु पलकान पसारे।
राह रहे तक आइये स्नेह से देन शुभाशिष द्वार हमारे॥
उनकी कच्छ पर बनाई हुई एक रचना शेयर करता हूं कि वह कच्छ और कच्छ के वासीयों का कितना आदर सम्मान करते थे। मेरे जन्म से भी पहले, आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व सन १९७४ में हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ कहानीकार कमलेश्वर के द्वारा महाराओ श्री लखपत जी ब्रजभाषा काव्य पाठशाला भुज के पूर्व पाठी कवि साहित्यकारों का सम्मान ब्रजभाषा पाठशाला के भूतपूर्व कवियों का एक सम्मान आयोजन करना तय हुआ। दूर दूर से पूर्व विधार्थी और आचार्यों का आना हुआ और एक अविस्मरणीय आयोजन हुआ जिसका कवरेज बीबीसी हिंदी ने किया। उस समय नानोशा ने कच्छ पर एक कविता पढी थी आप को साझा कर रहा हूं आशा है आप को पसंद आएगी।।
।।नमन उस कच्छ भूमि को।।
नमन उस कच्छ भूमि को, सुयश जिसका भुवन में है।
नमन उस कच्छ भूमि को, कि जिसका मान मन में है।
नमन उस कच्छ भूमि को, भरी जिसमें अमित ममता।
नमन उस कच्छ भूमि को कि जिसमें है सुखद क्षमता।
नमन उस कच्छ भूमि को, जहाँ के स्वच्छ है वासी।
नमन उस कच्छ भूमि को, रही जो काव्य में काशी।
नमन उस कच्छ भूमि को, क्रीडा जहाँ प्रकृति करती।
नमन उस कच्छ भूमि को, जहाँ की धन्य है धरती।
नमन भुज भव्य नगरी को, मुख्यालय कच्छ का जो है।
नमन वास्तुकला इसकी निखरते ही ह्रदय मोहै।
नमन वन बाग उपवन को सरित सर दुर्ग गिरवर को।
नमन इसके है घर घर को तथा विथि डगर हर को।
नमन महाराव लखपत को, जिन्है थी प्रिय ब्रजभाषा।
नमन उनकी सृजित संस्था, जो करती पुर्ण थी आशा।
नमन उनकी यह ब्रज भक्ति, कि जिसकी है अति ख्याति।
नमन उनकी यह आकांक्षा, गिरा जिसके है गुण गाती।
नमन व्रज पाठशाला को, सृजित इनकी जो विश्रुत है।
नमन शिक्षा प्रणाली को, जहाँ कवि पढ हुए द्रुत है।
नमन खिडिया श्री शक्ति को, सराहों उनके स्वच्छ मन को।
नमम गुरु शंभु रत्नु को, अयाची राज कवि कच्छ को।।
इस दुर्लभ तसवीर में बांयी ओर स्व. करणीदान गोपालदान जी रोहडिया, भारापर कच्छ; बीच में कच्छ के राजकवि, कच्छ ब्रज भाषा काव्य पाठशाला के अंतिम आचार्य शंभुदानजी अयाची(पूर्व सांसद पुष्पदान गढवी के पिताजी) जो नानोशा और करणी दान जी के काव्य गुरु भी थे; दांयी ओर मेरे नानोशा अजयदान जी लखदान जी रोहड़िया।
~~©नरपत आसिया “वैतालिक”
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