कवि का विलक्षण व लाजवाब उत्तर !

कवि का विलक्षण व लाजवाब उत्तर !
एक बार श्रीमान हिंगऴाजदान जी कविया सेवापुरा को एक सजातिय चारण सरदार ने काव्यात्मक रूप से निम्न स्तर की रचना भेज दी जो कि शोभायमान नहीं थी, उसमें भेजने वाले कवि महोदय का दम्भ अभिमान व अनुशासनहीनता परिलक्षित प्रकट हो रही थी। उसे पहली बार देख कर।
क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात
के अपने उच्च सिध्दान्त को निर्वहन करते हुए कविया साहब ने क्षमा कर दिया। भेजने वाले कवि ने अपनी मनोदशा में इसे हिंगऴाजदान को डरा हुआ मान लिया व अपने स्वभावगत दूसरी बार फिर निम्नस्तर कविता महाकवि को इंगित करते हुए भेज दी। हिंगऴाजदान जी ने उत्तर देना आवश्यक मान कर उसे जो उत्तर लिख कर भेजा वह आप को लिखकर मैं प्रैषित कर रहा हूँ।
!! छप्पय !!
पहलो थारो पत्र देख मैं जाब न दाख्यो।
बीजो कागज बाँच उत्तर देबो अभिलाख्यो।।
अनुचित लिखिया आंक जका तूं नीकां जाणै।
तोई कुत्ता तेम डाढ काढै माढाणै।।
माजना चूक तोछा मिनख ओछा बचन उचारणा।
कुकविता भेज्ज कारा करै मोसूं क्यूं झख मारणा।।
इस सुन पढ कर भेजने वाले कवि का दिमाग ठिकाणै आ गया व आगे कभी भी इस प्रकार की हिमाकत नहीं की व सदैव हिंगऴाजदान जी का आदर किया ।
~~प्रेषित: राजेंद्र कविया संतोषपुरा सीकर