कविता की ताकत

मोरबी जहाँ से मैने इंजनीयरिंग करी थी उस पर बनाई हुई रचना । इस रचना के पीछे एक कहानी जुडी हुई है मेरा चार साल का इंजनीयरिंग छह साल तक लंबा हो गया और उस पर सेवन्थ सेमेस्टर में मेरे ए टी के.टी एक सब्जेक्ट में आई। जिसकी वजह से एट्थ सेमेस्टर के बाद भी मुझे एक महिना और रुकना पडा। तब मैंने यह कविता ऐसा सोच कर बनाई कि फेयरवेल फंक्शन में पढूंगा। रचना बन गई तो माटेल खोडियार धाम गया और मां के चरणों में यह कविता रख कर प्रार्थना करी कि इस रचना का गहन असर श्रोताओं के मन में पैदा करना।
जब फेयरवेल के फंक्शन में मुझसे उदघोषक ने ऐसा पूछा कि मोरबी के बारे में आप का क्या खयाल है तो यह कविता उस के जवाब में मैंने सुनाई यह कहकर कि हालात बदल जाते है तो खयालात अपने आप बदल जाते है। और दिल की भावनाए घर साथ लेकर जाना नहीं चाहता श्रोताओं में बाँट देना चाहता हूं।
सभी को पता था कि पुरे डिपार्टमेंट में सप्लीमेन्टरी जिसको आया वह मैं ही था। जिन प्रोफेसर के सब्जेक्ट में सप्लीमेन्टरी आई वे हमारी कॉलेज के प्रिन्सीपल भी थे।
इस रचना का उनपर और साथ साथ अन्य मित्रों पर इतना गहरा असर हुआ कि बाद में प्रिन्सीपल सर नें मुझे व्यक्तिगत तौर पर मिलने को उनके कक्ष में बुलाया और सारे पेपर वापिस देनें को प्रोत्साहित किया और मुझे हिम्मत बंधाई।
वो इस कविता से इतने प्रभावित हुए कि मुझे हर पेपर में परीक्षा खंड में व्यक्तिगत रूप से अच्छे पेपर की शुभकामना देनें को आते थे। और बाद में मेरा फर्स्ट क्लास आया।।
कविता सुनने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें —
🌸अलविदा🌸
अलविदा में जा रहा हूं।
याद है तुझको,
यहाँ आया था मैं पहले पहल ही,
साथ ले सपनें हजारों,
छोड राजस्थान के अपने हजारो,
दिल में था अरमान इन्जीनियर बनूंगा,
हाँ शुरू में अजनबी बिलकुल नया था।
पर समय का चक्र जो चलने लगा,
एक दिन फिर दूसरा ढलने लगा,
तू नहीं अब अजनबी मुझको रही थी,
मैं तुम्हारी हर जगह को जानता था।
मैं तुम्हारी हर डगर पहचानता था।
ग्रीन चोक को पहचानता था,
दरबार गढ को जानता था,
और नगरदरवाजे की नक्काशियों को,
देखकर बाखानता था।
विजय कहाँ जय हिन्द कहाँ सुपर कहा है,
जानता था मैं कि चित्रकूट कहाँ है।
अलविदा मैं जा रहा हूं।
याद है तुझको ,
शाम को मच्छु नदी के पार जब,
मैनें तुम्है देखा जो झिलमिल रोशनी में,
मुझको लगा ऐसा की हाँ पेरिस यहीं है।
कह उठा फिर दिल कि हाँ!पेरिस यही है।
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अलविदा में जा रहा हूं।
याद है तुझको,
मैनें तुम्हारी गोद में प्यार के सपनें बुनें,
इजहार के सपनें बुनें।
कोई मुझे अपना कहे।
कोई मुझे अपना चुनें।
सोचता रहता था हरपल बैठकर संग दोस्तों के पाली पर।
इजहार मैं उससे करूं,
इकरार मैं उससे करूं,
कि प्यार मैं उससे करूं,
दिलदार मैं किसको करूं,
जानती है तू उसे अय! दिलजली,
जो मेरे दिल को बहुत ही भा गई थी।
देखकर तू खुद जिसे शरमा गई थी।
दिखनें में जूही की कली थी।
बात मिसरी की डली थी।
पर मिरा इजहार इक तरफा निरा था।
उसने मुझे ठुकरा दिया था।
मेरे सपनों पे कोई पानी फिरा था।
याद है उस दिन अचानक मुँहजली तू,
मेरी उस नादानियत पर हँस पडी थी,
तूझ को किसी की कब पडी थी,
आँखे मेरी सावनझडी थी।
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अलविदा !मैं जा रहा हूं।
अलविदा !वन वाटिका को,
अलविदा! अट्टालिका को,
अलविदा!विथि डगर को,
अलविदा!हर एक घर को,
अलविदा !है उन फूलों को जो मुझे भाये बहुत थे,
अलविदा है उन शूलों को जिनसे जखम पाए बहुत थे।
अलविदा! गुजरें दिनों को,
अलविदा!बरसों महिनों को,
अलविदा!वाघजी ठाकोर तुमको!
अलविदा!लखधीर जी को,
पर शिकायत एक मुझको आप से है,
आप नें ऐसे शहर को क्यूं चुना,
जो कि इन्जीनीयरिंग के लिए उपयुक्त न था।
अलविदा!आबादियों को,
अलविदा!बरबादियों को,
अलविदा !कोलेज तुझको,
अलविदा!होस्टेल को भी,
अलविदा!सब को,
शायद ही मिलन अब हो।
अलविदा!मैं जा रहा हूं।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
अलविदा!मैं जा रहा हूं।
पर देखकर के प्यार हूं हैरान तेरा,
हो गये छह साल फिर भी छोडनें का नाम क्यूं लेती नहीं है?
एक डायन की तरह मेरे बदन से,
अब तो पीछा छोड क्यूं चिपकी हुई है।
हादसे,नाकामियां बरबादियां है।
तुमने यह सबकुछ दिया है शुक्रिया है।
अब तुझे में छोडकर के जा रहा हूं।
प्यारे राजस्थान मैं घर आ रहा हूं।
अलविदा!अय मोरबी मैं जा रहा हूं।
मैं यहाँ आकर बहुत पछता रहा हूं।
मोरबी की कुछ झलकियों के साथ कविता के कुछ सन्दर्भ
विजय, सुपर और जयहिंद ये तीन मूवी थिएटर थे
शाम का नदी किनारे का झिल मिल रोशनी का शहर का नजारा पेरिस जैसा था। लखधीर जी महाराज साहब शिक्षा प्रेमी थे जिन्होने इन्जीनियरिंग कॉलेज खुद के महल में बनाकर सरकार को सुपुर्द किया था। स्वयं भी पेरिस युनिवरसिटी से सिवील इन्जीनियरिंग की पढाई करी थी उन्होंने। सो मोरबी नगर के स्थापत्य में वह झलकियां दिखती है।
वाघजी ठाकोर: लखधीर सिहजी महाराज के पिता जी मोरबी के महाराजा
मोरबी मणि मंदिर
मोरबी – नगर दरवाजा (नेहरु गेट)
मोरबी – ग्रीन चौक
मोरबी – दरबार गढ़
~~नरपत आसिया “वैतालिक”