कविता की खोज
इब्ने-बतुता की तरह, यह कविता की प्यास।
भाव विश्व से हो शुरू,चली मनोआकास॥1
मन मोरक्को में मिला, उस को एक फकीर।
बोला खोजा शब्द मैं, पाले कविता हीर॥2
छंदोलय के ऊंट पर, लाद दिया सामान।
इब्ने बतुता उड चला, राह बडी अन्जान॥3
ध्वनि,तुक,यति,रस, राग के,सूखै मेवे साथ।
औ’ दोहो के तीर को, लादा हाथों हाथ॥4
चलता दिन भर अनवरत, सोता सारी रात।
मनका मस्त मलंग है, बांटै बस जजबात॥5
कभी गज़ल के गांव मैं, कभी छंद के देश।
इब्ने बतुता घुमता, कभी मुक्त परिवेश॥6
राजे रजवाडे सभी, करै मान सम्मान।
इब्ने बतुता ने खडी, करी बडी पहचान॥7
श्रौता कविता लूटतै, जब मिलता एकांत।
इब्ने बतुता हो दुःखी, हो जाता तब शांत॥8
ज्यू इसाई सब धरम, काफिर औ’ इसलाम।
हर रजवाडै धुमकर, सबको करै सलाम॥9
देशाटन जंगल ,मरू, सहरा का कर पार।
इब्ने बतुता आ गया, शब्द नगर के द्वार॥10
तुगलक -के दरबार में, छोड स्वयं घरबार।
आ पहुंचा तो खुब ही, किया गया सत्कार॥11
शुरू शुरू मैं खुश हुआ, पाकर के सम्मान।
इब्ने बतुता बन गया, जन जन की पहचान॥12
तुगलक कच्चे कान का, कहा जाइयै चीन।
इब्ने बतुता ने सुना, हुआ बडा गमगीन॥13
पर यह तो सुलतान का, था उसको फरमान।
इससे पहूंचा चीन मैं, रखने उसका मान॥14
इब्ने बतुता हो दुखी, चला मिली ना हीर।
झूठै शब्दौ का नगर, झूठा पडा फकीर॥15
जा पहुंचा वह चीन में, लिये याद की बीन।
उसके दिल पर छा गया, अलादीन का जीन॥16
वापिस पहुंचा देस में, खुब हुआ सम्मान।
ले हाथों में लेखनी, भरी पृष्ठ में जान॥17
याद लडी दे दी पिरो, लय भावों के संग।
इब्ने बतुता ने लिखै, सारे चित्र प्रसंग॥18
लिखते लिखते भाव को, मिला शब्द का साथ।
कविता वाली हीर को, पाया हाथों हाथ॥19
सच्ची मन की पीर को, उसने समझा हीर।
जिसकी लिख कविता ललित, खुद बन गया फकीर॥20
अक्षर अक्षर को पिरो, भरे छंद मैं भाव।
हीर -कविता ने भरै, मन के रिसते घाव॥21
इब्ने बतुता ने लिखी, जिसकी एक किताब।
जिस को तुमने है पढा, सच मुच अभी जनाब॥22
~~नरपतदान आवडदान आसिया “वैतालिक”