कवित्त करणीजी रा

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वय पाय थाकी हाकी न केहर सकै शीघ्र
कान न ते सुने नहीं किसको पुकारूं मैं
चखन तें सुझै नहीं संतन उदासी मुख
कौन ढिग जाय अब अश्रुन ढिगारुं मैं
तेरे बिन मेरो कौन अब तो बताओ मात
दृष्टि मे न आत दूजो हिय धीर धारूं मै
कहै गीध चरणन मे छांह मिले थिर
शरण जननी की फिर मन को न मारूं मै १

उदधि अथाह बीच शाह की पुकार सुनी
पाण को पसार नै निसार बार लाई तूं
टूटी लाव कूप मंझ दंभी रूप तूं जुङी
अनंद के कियोअनंद फंद मेट आई तूं
भूप पूगलान मुलतान कैद मे रटी
ओ जेल हों सों काढ शेख चाढ पंख लाई तूं
आद समै आध साद संतन फरियाद सुनी
वेर कवि गीध हूं की देर कैसे लाई तूं २

जदै वा पुकारी सिंह री सवारी साज
विघन विदारी अरूं काज को सुधारी है
म्हारी वारी देर न लगारी भीरधारी मात
दैत वा दलनहारी पात पोखवारी है
कळू मे भरोसो भारी महतारी तोरो आज
ओ मेहारी दुलारी मिहारी रखवारी है
महमा अपारी दुनी हूं पे राज थारी सुन
आई ओ तिहारी शरण दास गिरधारी है ३

विकराल कलिकाल हाल को बेहाल कियो
भाल न करेगी मैया पाल कौन करेगो
रोजी की तोजी नही साधन की सोजी नही
कोजी भई मैया अब पेट कैसे भरेगो
ऐ पूत है कपूत तेरे मन मजबूत ना
धूत जान छोडेगी तो ध्यान कौन धरेगो
जैसे भी हैं तेरी धणियाप के भरोसे हम
ओगन को देखेगी तो काम कैसे सरेगो ४

पात पेअपात हूं की लात को प्रहार देख
अरि के विनाश हेतु मात कब आएगी
बनै कोऊ साय नाय और है उपाय नाय
हाय मात कब तूं तो सिंह को सजाएगी
आलस अथाह करै सुनै नही आह तूं तो
दास हूं की लाज ऊंग कबलो उडाएगी
मात न कुमात होत बात गीध जग कहै
देरी कर आएगी तो सब को हंसाएगी ५

कोपी सिर कान हूं के कान हूं पे हत्थल दी
दियो राजथान भूप मान रिङमाल को
शेख सिर आती संपा टारी वा झपाटो देर
बंधी राखङी के बंधन मे बचायो भूपाल को
कालिय के नाश हेतु बनी विकराल चील
पूगी जाय लार तुंही सुरभी संभाल को
दुशासन मिटायै केतै दासन के हितन
विश्वास है बिखमी वेर संतन रूखाल को ६

बाल पे अथाह नेह देवै नहीं छेह तूं तो
गेह गेह मे भरोसो तोरो बात विश्वास की
गुनाह हूं पे गोर नहीं दोष पे कठोर नाही
दुख मे दुलार देत सार लेत दास की
हारै के सहारे हेत पैंडन सताबी देत
आय के संभारै मात टारै वेर तास की
औरन को छोड अब दोर मत ठौर ठौर
रखै कवि गीध एक आश सुखरास की ७

~~गिरधर दान रतनू “दासोडी”

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