पुस्तक लोकार्पण – काव्य कलरव काव्य संग्रह

काव्य कलरव काव्य संग्रह के लोकार्पण का अवसर अतिथियों के उत्प्रेरक एवम उम्दा उद्बोधनों, कवियों की प्रभावी काव्य-प्रस्तुतियों तथा समागत मित्रों की गरिमामयी एवम अपनत्व भरी उपस्थिति से अविस्मरणीय बना।
‘‘साहित्य समाज का दर्पण है लेकिन यह दर्पण सामान्य दर्पण की तरह मात्र बाह्य संसार की दृश्यमान चीजों को ही प्रतिबिम्बित नहीं करता वरन यह ऐसा विलक्षण दर्पण है जो समाज के प्रति समर्पण को प्रतिबिंबित करता है। सकारात्मक समर्पण की प्रेरणास्पद छवियों को सामाजिकों के समक्ष अभिव्यक्त कर अपनी संवेदना एवं संचेतना के बल पर करणीय एवं अकरणीय कार्यों की सम्यक पहचान कराने का काम साहित्य करता है, ऐसे साहित्यिक सृजन को एक वाट्सएप समूह द्वारा संरक्षित, संवर्द्धित एवं प्रोत्साहित किए जाने पर मुझे अपार खुशी है। इससे मुझे भरोसा है कि साहित्य सृजन की सरस सलिला सतत प्रवाहित होती रहेगी।’’

कार्यक्रम अध्यक्ष श्रीमान ओंकारसिंह लखावत – अध्यक्ष, धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण

लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि पूर्व विधायक श्री सी डी देवल ने व्हाट्सएप जैसे क्षणजीवी उपक्रम के माध्यम से मसिजीवी लोगों की मंशा के मुजब स्थायी सृजन को बढ़ावा देने का शानदार कार्य करने पर कलरव परिवार को साधुवाद देते हुए कहा कि हर जिम्मेदार नागरिक को अपनी सामर्थ्य के हिसाब से श्रेष्ठ कार्य करना चाहिए और साहित्य सृजन एवं साहित्य संवर्द्धन अतिश्रेष्ठ कार्य हैं, और वह भी सोशल मीडिया के माध्यम से। इस सृजन से नए युग की नयी ताकत का नवीनतम एवं नव्य उपयोग करने की राह बनेगी और कलरव समूह उसमें मील का पत्थर साबित होगा।
समारोह के विशिष्ट अतिथि तथा राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर भंवरसिंह सामौर ने आज के युग को अनन्त संभावनाओं से युक्त युग की संज्ञा देते हुए कहा कि समय के बदलाव को समझते हुए हर व्यक्ति को अपने आपको अपडेट होना चाहिए तथा अपनी क्षमताओं को समाज और देश के हित में लगाना चाहिए। उन्होंने काव्य कलरव समूह की युवा प्रतिभाओं के सकारात्मक चिंतन को रेखांकित करते हुए काव्यकलरव पुस्तक की सामग्री को अतीव उपादेय बताया तथा कहा कि प्राचीन छंदों में नवीन विषयों को अभिव्यक्त करने तथा नवीन छंदों में प्राचीन ऐतिहासिक गौरव को अभिव्यक्त करने का अनुपम प्रयोग करने की आज सबसे बड़ी आवश्यकता, जिसके विनायक कदम इस संकलन से गतिमान होने लगे हैं।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के पूर्व सचिव एवं लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि श्री पृथ्वीराज रतनू ने काव्य कलरव पुस्तक पर पाठकीय समीक्षा दृष्टि डालते हुए इस संकलन को संस्कार सुमनों से सुसज्जित गुण-गुलदस्ता बताया तथा कहा कि हिंदी, राजस्थानी एवं उर्दू तीन भाषाओं की श्रेष्ठ, सामयिक एवं संग्रहणीय रचनाओं के इस गुण-गुलदस्ते की खुशबू का कमाल यह है कि इसमें से रह-रह कर महनीय महकार फूटती है, जिसमें कभी राष्ट्रभक्ति की सुगंध आती है तो कभी सांप्रदायिक सौहार्द की सुवास, कभी नीति की नसीहत तो कभी भक्ति की भागीरथी के कलकल निनाद का ऐहसास होता है, कभी शृंगार की सरस रसधारा तो कभी शांतरस का सहज झरना कानों को झंकृत करता है। उन्होंने कलरव परिवार को सोशल मीडिया की दुनिया का अद्वितीय एवं आइडियल परिवार कहते हुए युवा पीढी को इनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
विशिष्ट अतिथि तथा राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक श्री लक्ष्मणदान कविया ने आज के युग को तकनीकी का युग कहते हुए सोशल मीडिया को प्रचार प्रसार का सशक्त माध्यम बताया तथा कहा कि लोकार्पित पुस्तक वर्तमान समय की महती आवश्कता की पूर्ति का प्रबल प्रयास है, ऐसे अनेक एवं बहुमुखी प्रयासों की दरकार है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में काव्य कलरव समूह के एडमिन तथा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में उप अधीक्षक पुलिस पद पर कार्यरत राजस्थानी के प्रखर कलमकार श्री मोहनसिंह रतनू ने स्वागतोद्बोधन देते हुए काव्य कलरव परिवार के आचार बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा समूह देशभक्ति की भावना को बढावा देने, सांप्रदायिक सौहार्द के भाव को प्रोत्साहित करने, जाति-पांति की संकीर्ण दीवारों को तोड़ने के सकारात्मक प्रयास करने तथा संस्कार निर्माण हेतु सुभट सीख देने का सतत कार्य करता है। उन्होंने कहा कि इस समूह में शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, प्रशासन, पुलिस, राजनीति, कृषि, व्यापार एवं समाज के हर तबके के सकारात्मक सोच वाले 125 लोग हैं, जो अपने अपने क्षेत्र में दक्ष होने के साथ ही अपने सामाजिक एवं सार्वजनिक दायित्वों के प्रति सजग हैं।

राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजेन्द्र बारहठ ने वर्तमान परिदृश्य में सोशल मीडिया की भूमिका एवं उपादेयता को सहज स्वीकार करने का आह्वान करते हुए कहा कि सोशल मीडिया के अनेकानेक उपक्रमों की आज अपनी अपनी अहम भूमिकाएं हैं, जिनके माध्यम से हम युवा पीढी को स्वाध्याय एवं सृजन की मुख्य धारा से पुनः जोड़ सकते हैं। उन्होंने व्हाट्सएप के श्रेष्ठतम उपयोग करने वाले कलरव समूह को अग्रगण्य समूह कहते हुए इसे सकारात्मक कदम बताया।
कलरव परिवार के मुख्य संरक्षक तथा वरिष्ठ साहित्यकार श्री नवल जोशी ने सबका आभार ज्ञापित करते हुए कलरव समूह के युवा कलमकारों में भारत का भविष्य तलाशने का आह्वान किया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने तथा साहित्य का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से सकारात्मक पहल करते हुए घोषणा की कि हमारा समूह आज से संकल्प करता है कि हम अपने कार्यक्रमों में पुष्पमालाओं एवं पुष्पगुच्छों की जगह राजस्थानी साहित्य का श्रेष्ठ साहित्य भेंट कर अतिथियों का स्वागत करेंगे।
लोकार्पण समारोह में श्री नरपत आवड़दान आसिया ‘वैतालिक’ की कृति ‘मेहाई-सतसई’ का भी लोकार्पण संपन्न हुआ। डिंगल शैली की परंपरागत छंदों में सृजित भक्ति काव्य की इस पुस्तक को सभी वक्ताओं ने अनुकरणीय बताया। कवि श्री वैतालिक ने पुस्तक में से कतिपय रचनाओं का छंदपाठ किया, जिसे सुनकर सबने समवेत स्वर में कवि को दाद दी।
लोकार्पण समारोह के बाद आयोजित राष्ट्रीय काव्यगोष्ठी में हिंदी, राजस्थानी एवं डिंगल पिंगल के छंदों की सरस सलिला बही, जिसमें हर श्रोता झूमता नजर आया। वर्तमान समय में चुटकुलों तथा अश्लील तथा द्वि-अर्थी संवादों की मार झेलते कविमंचों से निहायत अलहदा अंदाज में आयोजित इस काव्यगोष्ठी में शुद्ध काव्यपाठ हुआ। काव्यगोष्ठी में कवि भंवरसिंह सामौर, लक्ष्मणदान कविया, वीरेन्द्र लखावत, योगेश्वर गर्ग, नवल जोशी, मोहनसिंह रतनू, कैलाशसिंह जाड़ावत, डॉ राजेन्द्र बारहठ, डॉ गजादान चारण, नरपत दान आसिया, कवियित्री वीणा सागर, जगमालसिंह ज्वाला, नीतिराज सांदू, महेन्द्रसिंह छायण, संतोष कुमार सा, रेंवत दान सा, हिंगलाजदान ओगाळा, अवधेश देवल ने प्रस्तुतियां दी।
काव्यगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मश्री चंद्रप्रकाश देवल ने साहित्य सृजन के वृहद फलक पर विहंगम दृष्टि से प्रकाश डालते हुए साहित्य के लिए युगबोध की शर्त पूर्ण करने की अनिवार्यता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि रचनाकार यह ध्यान रखे कि वह इक्कीसवीं सदी में रचना कर रहा है, जो कि वैश्वीकरण की सदी है, जो तकनीकी एवं प्रोद्योगिकी की सदी है। हमारी रचनाओं के नायक, रचनाओं का प्रतिपाद्य तथा प्रतिमान वर्तमान प्रासंगिकता से जुड़े होने चाहिए। श्री देवल ने काव्यगोष्ठी में प्रस्तुत डिंगल छंदों की प्रस्तुतियों के लिए कवियों को साधुवाद देते हुए अधिकाधिक स्वाध्याय एवं सामयिक संदर्भों की जानकारी का आह्वान किया। काव्यगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर हाकमदान चारण ने साहित्य को कालजयी थाती बताते हुए कविता को जनजाग्रति का सशक्त माध्यम बताया तथा कहा कि कविता ने आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों की ताकत बनने का कार्य किया। आज के समय में भी इसकी उपादेयता निर्विवाद है।
कार्यक्रम अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री श्री जोगेश्वर गर्ग ने कविता की धार को हथियार एवं औजार बताते हुए उसके सकारात्मक प्रयोग की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी सरस रचनाओं से श्रोताओं को झूमने पर विवश किया। लोकार्पण समारोह एवं काव्यगोष्ठी का संयोजन डॉ गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ ने किया।
~~आलेख: डा. गजादान चारण “शक्तिसुत”