काव्य कलरव स्नेह मिलन समारोह खुड़द

मानजोग राजेंद्रसिंहजी कविया संतोषपुरा रै आदेश सूं

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।।छप्पय।।
मह पावन मरूदेश, मुदै कियो महमाई।
किनियाणी करनल्ल, आप घर सागर आई।
जणणी धापू जोय, नाम जग इंद्रा नामी।
चारण वरण चकार, वंश रतनू वरियामी।
खुड़द नै अचड़ दीनी खमा, आणद अपणां आपिया।
जूनकी रीत पाल़ी जगत, केवी व्रन रा कापिया।।1

अमरपुरी उणहार, गाम खुड़द गढवाड़ो।
उथिये नवलख आय, इल़ा नित मँडै अखाड़ो।
रमणी जोगण रास, करै रीझै किलकारा।
दत्तचित्त भावां देख, भैर देवै भलकारा।
मन मुदित भाव मढ मातरै, हुई एकठी आणनै।
सागरासधू हिंगल़ा सदृश, जग इंद्रा नै जाणनै।।2

नमो सागरासधू, जगत सारो जस जाणै।
जाहर तूं जगराय, बांच कव छंद बखाणै।
परवाड़ा प्रथमाद, ऊजल़ा इल़ा अखंडी।
पुणां आंरी प्रतीक, जिकी फरकै नभ झंडी।
जातरी असँख आवै जठै, जोत दरस जगदीसरी।
तूं हरस जिकां पूरै तरां, वडम धार भुज बीसरी।।3

व्हो कवियो हिंगल़ाज, विदग वडो वरदायक,
सेवापुरै सुथान, गुणी जस थारो गायक।
चिरजा छंदां चाव, घाट जिण नामी घड़िया।
उगत अमामी ऐम, जुगत अलंकृत जड़िया।
समरपित भाव तोनै सगत, चितशुध भगत चढाविया।
ईखतां जगत गिरधर अखै, मत-वड कनक मढाविया।।4

धुर पढिया उर धार, ऐह आखर अणमोला।
भलकंता भल़़ल़ाट, सको कव भाव सतोला।
मूढ लीवी मैं मान, अंतस मतो अल़सावूं,
इतरी ना आकूत, बतो रच फेर बतावूं।
धोक नै सदर धणियप धरो, महर करो अब मावड़ी।
सागरासधू लख भाव सुज, छत्राल़ी रख छांवड़ी।।5

गुणियां रो इक ग्रुप, काव्य कलरव जस कोटी।
एडमीन अखियात, साख मोहनसिंह मोटी।
भाल़ नवल भूदेव, निडर संरक्षक नामी।
मेंबर सह मतिमान, खास सगल़ा बिन खामी।
भैरसा सुणी रतनू भलम, खुड़द निवासी खास आ।
तेड़िया स्नेह मिलवा तुरत, उर धर नै अपणास आ।।6

ओ कलरव है इसो, जिसो फिर और न जाणूं।
मन सूं जुड़िया मीत, अँजस सारां पर आणूं।
जात पांत रै जाल़, अवस ना एक अल़ूझ्या।
वडपण अनै विचार, साच सहभांत सल़ूझ्या।
साहित रै साथ सँस्कृति सदा, सेवी केक समाज रा।
एक सूं एक आछा अखां, लंगरधारी लाज रा।।7

सुणियो जद संदेश, भयो उत्साह हद भारी।
मन री आ मनवार, सको सैणां स्वीकारी।
मुणियो मोहनसींह, चाव सेती सब चालो।
चित हित चरचा काज, वास खुड़द धर व्हालो।
अवस ही इक पथ कारज उभै, जाणो तीरथ जातरा।
सज्जनां मिलण हेती सहित, मनशुध दरसण मातरा।।8

आयोजन ऊमदा, तुरत उत करण तयारी।
नर नामी नरयंद, जाण ली जिम्मेदारी।
सेवा नै सद्भाव, साच ओढी इण सारी।
भारी भरकम भाल़, अहो इतजाम अटारी।
सुरधरा जेम सजियो खुड़द, भुजां भरोसै भैर रै।
तिण उपर बात साची तवां, मुदै मात री मैर रै।।9

ओ भैरो इम एक, भाल़ सम भैरो भाटी।
मन मोटै मनवार, खिति इण कीरत खाटी।
व्यवस्था वरियाम, आप घर करी अनौखी।
एक पाव तण ऊभ, सजी सेवा तन सोखी।
अंब रै सुतन रतनू उमँग, सजी सेवा मन सरस नै।
सतकार कियो आदर सहित, हिव घर सारै हरस नै।।10

सज आया के सैण, तनमन्न सूं इण टाणै।
ज्यांनै सांप्रत जोय, जाहर धर सारी जाणै।
कव सांदू कैल़ाश, सादगी रूप सचाल़ो।
गरग जोगैसर गुणी, कनकगिर वसुधा वाल़ो।
अरजन गाडण उठै, उठै ई अरजन बीठू।
मीसण मीत मनोज, मान जिको मन मीठू।
ओमसा अनै ओंकारसिंह, भलपण धारी भान रै।
खुशालसा अनै रघुवर खमा!मीत मिल्या घण मान रै।।11

अदत्तां रै उर दाह, दैणियो नीतो दीठो।
रसा बैणियो रीत, मीर उत आयो मीठो।
हेतव ऊ हिमतेस, भलम भारोड़़ी भाल़ो।
नर रतनू नरपत्त, पात न्याती प्रतपाल़ो।
संचालक सिरै वक्ता सधर, गजादान मिल़ियो गुणी।
कमनीय गल्लां कवियां कही, नेही सुखदेवे सुणी।।12

मोही ऊ मदनेस, पात पातावत पेखो।
सज सेवा सनमान, दीह निस करीस देखो।
सतधारी संतोष, अजरो कवी अमराणी।
गजलां मुकत घड़ै, बोलै फिर अजरी वाणी।
आरडी बारठ मिल़ियो अठै, वीदग वाचा विमल़ता।
गीधिये साच देखी गहर, स्नेह नैण उर सरल़ता।।13

बाण सुचंगी बेख, गीत फिर मीठा गावै।
जालेंद्र रा जोय, सबद मन सको सुहावै।
वीरेंदर विखियात, रेंणव रेंदड़ी राजै।
गजलां गजरो गूंथ, सेव शारद री साजै।
कवि शाहपुरै वड कैल़सा, जाडाहर जस लाटियो।
विद्वान केक आय’र वडां, विद्वता धन्न बांटियो।।14

कवियो राजंद कँहूं, खांमची बातां ख्यातां
विनयशील रु विमेक, भाल़ भलपण हर भांतां।
बारठ राजंद वल़ै, सकव धर जाणै सारी।
हित भाषा रो हेर, खरी पण कैवै खारी।
चांपावत अठै रतनो चवां, (जिको)प्रीत पुरातन पाल़णो।
राठौड़ साच रचना रुचिर, ओ निज साख उजाल़णो।।15

ओ किनियो उमराव, बांकड़ली मूंछां वाल़ो।
मिल़ै मुल़कतो मीत, भाव भायां सो भाल़ो।
जो कवियो जगदीश, सैण सारां सदभावी।
जीडी बारठ जोय, भल़ै रखणो सह भावी।
ढारियैधीश मैंदर धिनो, सबरी लेवण सार नै।
सिर चढा हुकम आयो सजन, मन मोहन मनवार नै।।16

–क्रमशः–

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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