की फिर पाजी हाण करै

।।गीत-सोहणो।।
राखै ज्यां सीस हाथ तूं राजी,
की फिर पाजी हाण करै।
अरियां परै खीज अगराजी,
सनमुख माजी काज सरै।।1
आसा सदा पूरणी आई,
धुर विसवासा अडग धरै।
काली भाषा समझ कृपाल़ी,
भाव हुलासा तुंही भरै।।2
देवै जिणनै तुंही दयाल़ी,
सुधमन सेवै जिकै सही।
लेवै आय ओट लोहड़ री,
मन रेवै अणबीह मही।।3
भाल़ै सदा भाव भगवती
सामण टालै विघन सको।
राल़ै आणद रीझ रेणवां,
पाल़ै मावड़ पूर पखो।।4
मन री तूं जाणै महमाई
वेदन तन सूं दूर बहै।
नेहचो हुवै आत्मा निसदिन,
लाज धजा धिन भीर लहै।।5
सैण-भाई सब राखै सुखिया,
मीत सदाई हरस मिल़ै।
सुरराई सुभ निजर संत पर
टग दुखदाई तणी टल़ै।।6
तो किरपा सब भान कवि नै,
देस-गाम घणमान दिए।
गिरधरदान आस तो गाढी,
कान गरज सथ अरज किए।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी