कीरत गिरधर आ कत्थी

।।दूहा।।
सायळ सुणती संकरी, धिन देती जन धीर।
तूं चढती केहर तरां, भगवत्ती कर भीर।।
जरणी वाहर संत जन, पह सरणी प्रतपाळ।
हरणी संकट हेतवां, रह करणी रिछपाळ।।
।।छंद – रेंणकी।।
हरणी हर कष्ट समरियां हर दिन, करणी तूं हर काज करी।
सरणी नर रटै सबर रख, सांप्रत, खबर जैण री जबर खरी।
झरणी नित नेह बाळकां, जरणी, वरणी जस इळ बीसहथी।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।१
फसियो इळ पाप बहू विध फंदन, बंधन कितरा है ज वळै।
विसर्यो पड़ दोख तिहाळो वंदन, भाळो मंदन बुद्ध भळै।
इम आप तणो अवलंब, ईसरी, जाप नेम री नह जुगती।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।२
उर मे नह अकल अंग रो, अबळो, सबळ साथ मे नह संगी।
कातर कळहीण कवळ रो कूड़ो, सकळ जांणवै सरभंगी।
परहर तूं कुमत पलक मत पांतर, सरल हुवै मन दे सुमती।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।३
जांणू अब नांम एक जग जांमण, क्यूं ढिग दूजां आस करूं।
ओगण सब माफ करै ममआई, धाई पख मे ध्यांन धरूं।
दिल दूजां तणी बात नह दाखूं, राखूं आस न एक रती।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।४
जावै ओ मांण आंण पण जासी, बिखमी वेळा आंण बणी।
तूं केहर तांण टेक कज करनल, धाबळयाळी हेक धणी।
थिर जांगळराय थेट सूं थारो, समथ सहारो है सगती।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।५
इतरी अरदास सांभजै अंबा, रख जगतंबा रखवाळी।
निरभै रह दास तिहाळी निजरां, तास मेटजै इक ताळी।
अविचळ उर राख अटळ मो अणथक, भरै हिंये मे तो भगती।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।६
सांभळ सुरराय सताबी सायळ, आयल बेगी आव अबै
राखण तूं सरम होयनै राजी, सांप्रत जांणै मरम सबै
अणडग विसवास खास ही उरधर, कीरत गिरधर आ कत्थी।
तरणी कळु नीर डूबती, तारण, भीर करै मा भगवती।।७
।।कवत्त।।
मरम तणी लख मात, लंब हथ जेज न लाई।
बीसहथी विसवास, अटल मन रहियो आई।।
संभळ सताबी साद, साय तूं आय सचाळी।
करै दुसरो कवण, कळु मे मदत किरपाळी।।
गीधिये तणी सारण गरज, बीसहथी झट बावड़ी।
तन रोग सोग मेटै तुरत, मन चंगो कर मावड़ी।।
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”