कवि श्रेष्ठ केशरोजी खिड़िया

स्वामी भक्ति, देश भक्ति व संस्कृति रा सबल़ रुखाल़ा कविवर चानणजी खिड़िया चारण गौरव पुरुष अर जाति रत्न रै रूप मे जग चावा रैया है। जद चित्तौड़ रै किले मे सिसोदियां धोखै सूं वीर पुरुष राव रिड़मल (मंडोर )नै मार र आ घोषणा कराय दी कै कोई आदमी रिड़मल रो दाह संस्कार नी करेला। उण बगत चानणजी चित्तौड़ रै कानी मिली जागीर कपासण मे रैवता। उणां नै आ ठाह लागी कै राव रिड़मल रै साथै विश्वासघात होयग्यो अर अबै उणरी देह री दुरगत होय रैयी है तो वै उठै आया अर रिड़मल री चिता बणाय दाग दियो। कैयो जावै कै सीसोदियां चानणजी नै मना किया कै आप दाग मत देवो अर जे देवणो तेवड़ ई लियो है तो लकड़ी रो एक तिणकलो ई नी उठावण दां। स्वामीभक्त अर चारणाचार री प्रतिमूरत चानणजी कैयो कै म्है दाग देवूंला अर काठ म्हारी हवेली रै कवाड़ां अर छाज रो करूला। दाग होयो पण कपासण जब्त होयगी। इण महान सपूत रै बेटे धरमोजी कांवल़िया री वंश परंपरा मे सगतोजी होया। जिणां री शादी लालस सैजा रै गांव ढाढरवाल़ा होई। सगतोजी रै तीन बेटा होया जालजी, केशरोजी, अर दानोजी। केशरोजी आपरी बगत रा नामचीन कवि होया। सिरै डिंगल़ गीतकार रै रूप मे केशरोजी री ख्याति च्यारां कानी पसरी थकी ही। महाराजा विजयसिंह जोधपुर रा प्रिय कवि अर विश्वासपात्र हा। केशरोजी रै आखरां मे महाराजा विजयसिंह रै गीत रो एक दूहालो —

चमू मेल़ गज चढै विजसाह ढुल़तै चमर
तेगधर जोधहर जबर तालै
त्रंबाटां गजर दे फजर मौसर तरै
हलकधर असुरधर अंबर हालै।।

जद मानसिंहजी जाल़ोर रै घेरै मे हा उण बगत उणां रा केई विश्वासी आदमी भीमसिंह रै डर सूं नाठग्या हा उण अबखी बगत मे सतरे चारण कवि उणां सारू मरणो तेवड़ कांधो दे जुड़िया उणां मे केशरोजी हरोल़ हा

पनो नै नगो नवलो प्रगट केहर सायब बडम कव
महाराज अगर घेरा मही सतरे जद रहिया सकव

केशरोजी, मानसिंहजी नै जद कद आकल़ वाकल़ देखता तद कैता कै “म्हनै पूरो विश्वास है कै आप जोधपुर री गादी विराजलो अर म्है आपरै हाथां सूं गांम अर गज रो कूरब पावूंलो। आ बात म्है यूं ई नीं कैय रैयो हूं बल्कि चाल़राय रै आदेश मुजब कैय रैयो हूं –

चीत री फल़ावट चाल़राया चवै
गीत री फल़ावट जगत गावै
केशरो मान महाराज रै करां सूं
पात गज गांम रो कुरब पावै।।”

जद मानसिंहजी जाल़ोर घेरै मे तंगी री हालत मे हा उण समय कोटड़ा रा वणसूर जुगतोजी, मानसिहजी री सहायतार्थ आपरी जोड़ायत अर आपरै बेटे जैतसी री पत्नी रो सगल़ो गैणो लाय भेंट कियो पण पार नीं पड़ी तो उणां आपरै बेटे भैरजी नै भाडखा महंतजी रैअडाणै राख रुपिया उधार लाय मानसिंहजी नै दिया। इणी गत आ किंवदंती चालै कै उणी समय केशरोजी आपरै भतीज दोलजी नै काल़ू रा दसनामी महंत भवन भारती रै अडाणै राखण गया पण महंतजी यूं ई रुपिया उधार दे दिया। महंतजी केशरोजी रो घणो लाड राखता ।केशरोजी रै आखरां मे –

आपरै नाम री सरण हूं आवियो
मौज गज गांम री करण मोनै
पाट जस नाम रा केसरो पढै ले
तिलक दसनाम रा नमो तोनै

पण जद मानसिंहजी जोधपुर पाट विराजिया उण बगत वृद्ध होवण रै कारण दुजोग सूं केशरोजी रो सुरगवास हो चूको हो जिण सूं उणां री इच्छा मुजब मानसिंहजी रे हाथां ओपतो सनमान नी हो पायो। गादी बैठतां ई मानसिंहजी आपरै आफतकाल़ रै सगल़ै सहयोगिय्ं रो अंजसगोग आघ कियो पण केशरोजी खुद हा नी अर लारै कोई जोगतो अर पूगतो पारिवारिक सदस्य नी होवण सूं मानसिंहजी नै केशरोजी री भूमिका याद नी रैयी। जोग सूं कीं महीणां या वर्षां पछै नवलजी लालस मानसिहजी नै केशरोजी री भूमिका री याद दिरावतां कैयो कै हुकम आपरो काम तो पार पड़ग्यो पण केशरै जेड़ो मोटो कवि यूं ई गांम -गांम करतो गयो –

साम रो काम सजियो परो
राम – राम यूं ई रयो
केशरो हुतो मोटो कवि
(जको )गांम – गाम करतो गयो।।

मानसिंहजी जेड़ै संवेदनशील अर गुणग्राहक राजा नै इण बात रो पिछतावो होयो कै म्है एक जोगतै आदमी रै त्याग नै भूलग्यो। उणां नवलजी नै कैयो कै “केशरोजी रै लारै कोई है तो बुलावो म्है दो गांम देवूंला क्यूंकै आप दो वार गांम – गांम कैयो है। “कांवलियां सूं केशरोजी रै भतीज दोलजी नै बुलाय मानसिंहजी दो गांम इनायत किया – ढाढरियो अर जीवणबेरो।

केशरोजी समकालीन कवि समाज अर वीर समाज मे बहु सम्मानित कवि रै रूप मे ख्याति प्राप्त हा। आपरा ऐतिहासिक वीर पुरुषां माथै लिखित डिंगल गीत भाव अर भाषा री दीठ सूं तत्कालीन काव्य री सिरै बानगी है। भक्ति विषयक गीत अर छंदां मे तेमड़ाराय रा गीत अर छंद ,चाल़राय रा गीत ,करनजी रा गीत , राम भक्ति रो गीत अर भैरूनाथ रा गीत अर झमाल उल्लेखणजोग है।

केशरोजी रै भैरूंजी रो घणो इष्ट हो सो इण गीतां मे कवि भैरूं रै प्रति जिकी श्रद्धा अर विश्वास व्यक्त कियो है वो स्तुत्य है। म्हारा मित्र अर आपां सगल़ां रा स्नेही महेन्द्रसिंह खिड़िया इणी केशरोजी रै भतीज दोलजी री वंश परंपरा मे है। इणां रे स्नेह रै वशीभूत म्है केशरोजी री आज तक अल्पज्ञात अर अणछपी रचना “भैरूंनाथ री झमाल”आप सगल़ां रै पठनार्थ प्रस्तुत कर रैयो हूं।

भैरूजी री झमाल

केशरोजी खिड़िया री कही – गिरधरदान रतनू दासोड़ी रै संग्रै सूं

श्री चंडी सुत तो सिमर ऐही गरज अमाप
कंवरांगुर तूं काटजै मोटो दुख मा बाप
मोटो दुख मा बाप क डाकण मंत्र रो
तूं कर बेग सहाय क डोरो तंत्र रो
महाराजा सच मान उछकां माहरो
तूं जाणै ज्यां जाण क बालक ताहरो१

तूं मामो पातां तणो तात रच्छा ततमन्न
मेटै मती मंडोवरा मामा रो सनमन्न
मामो रो सनमंद मुहंगा मोलरो
तैं आगोलग कीध महाघण तोलरोे
छपिया पाप उछेड़ अचंभो चोल़बो
आप तणा व्रद छाप मती ले ओल़बो २

पहली पहली पापणी सबलो कीधो सोर
तैं आयां डाकण तणो जगपत लगै न जोर
जगपत लगै न जोर इसो तूं जगत मे
सम्रथवान जवान अपंपर सगत मे
पिंड धाड़ायत आण लग्या खल़ पादरू
वाहर बेगी आव विनादू वाहरू ३

आभै पटकै ज्यान नै है धर झेलणहार
धर कोरो ऊतर धरै वांरै कूण आधार
वा़रै कूण आधार सुधारो आपजी
बावन वीरां हूंत पधारो बापजी
तूं बिन दूजो कौण कसै इण तापसूं
आप कहो मा बाप बडो कुण आपसूं४

दाव लगायो दुसमणां ताव दिखायो तोर
करणाकर बेगो करो जितरो थांरो जोर
जितरो थांरो जोर अपंपर जाहरां
थागै कूण समंद भुजाडंड थाहरां
उतावल़ कर आव क खेड़ उतावल़ी
रावल़ सावल़ भाल़ बडाई रावल़ी५

माथो पड़तां जीभड़ी बोली नहीं अमाप
अन्नदाता उण जीभरो कहो पछै कुण काम
कहो पछै कुण काम अनादू कत्थणी
मथ वेदन समरत्थ अकत्था कत्थणी
वर अमर ब्रहमाण धनंकर बोलिया
तैं धर अबंर एक तराजू तोलिया ६

वडावडी सारां वडी सुर नर नाग सबीब
म्है नह देख्या देस मे तो जेहड़ा तबीब
तो जेहड़ा तबीब भवसागर तारणा
धरपत करूं प्रकार क हेकण धारणा
लाज गुवाज कुवाद तुहाल़ी देखियो
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कर हेलो म्है कह्यो धाय सकै तो धाय
काती केरा मेह ज्यूं के गुण पछै कहाय
के गुण पछै कहाय अवसर चूकियै
रेणायर जल़ पार पछै किम कियै
बांधणहार प्रवीण अवधां बंधणो
सांधणहार सवाय क तुंही संधणो८

डूंगर कदै न डिगियै सरवर न सूंकत
ज्यांरो ठाकर जब्बरो तो चाकर मैमंत
तो चाकर मैमंत अंगजी तोर सूं
जोरावर वड जोर वडां रा जोर सूं
करड़ा डगर मछक तुछ कर कपियै
वित मत मेति प्रमाण तूं डगर थपियै ९

सब धीनी भीज्यां घरां विचले नह को पार
किसी उणारत ज्यां नरां भैरव सा भरतार
भैरव सा भरतार गुणां भरपूरसा
गोरा गंज वरीस क तेज गरूरसा
गज गांमां देवाल़ तरंगां गंगरी
लाल तणै महाराज विराजै लंगरी १०

आस करै आराधियो नैड़ो जिको नरांह
परवाई रा मेह ज्यूं घण व्रद आव घरांह
घण व्रद आव घरांह सु जेज न घर तणी
तो आयां सुधरत क आ वेल़ा तो तणी
चांवडजी री आण क चल आवो चांपरा
आप करो प्रतपाल़ क चाकर आपरा ११

अंबारथ नह ऊजल़ै जाडी छाह जिकाह
कुण गंजै केहर कहै तूं रिछपाल़ तिकांह
तूं रिछपाल़ तिकांह भरोसै ताहरै
सरणै चारण वंस सुरांपत साहरै
घर संपत खेम नवै निध थावसी
जेती करी पुकार विलै नह जावसी

इण झमाल़ रचण रै पेटै चारण समाज में आ किंवदंती चालै कै महाराजा विजयसिंह रै किणी कुंवर नै अचाणक कोई भयंकर बीमारी होयगी।लागो कै कुंवर बचेलो नीं।उण बगत महाराजा ई सोच में पड़ग्या अर इण आफत सूं उबरण री तजबीज आपरै शुभचिंतकां नै पूछी। उण समय किणी केशरैजी रै दोखी दरबार नै बतायो कै केशरैजी इष्टबल़ी आदमी है अर इणां रै भैरूं अरस -परस है ।आप तो केशरैजी नै कैवो। दरबार झट केशरैजी नै उपाय करण रो कैयो। कवि समझग्यो कै कोई नै कोई चाल हो चूकी है।अब नटणो तो मोत नै बुलावणी है। उणां उणी बगत आ चाडाऊ झमाल रची। कैयो जावै कै ज्यूं ई बारहवो छंद पूरो होयो उणी बगत कुंवर री तबीयत मे सुधार होवण लाग गियो। हकीकत किती है ओ तो नी कैयो जा सकै पण कवि रो एक एक आखर सिद्ध मंत्र ज्यूं लागै।

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