केशरी कीर्ति कळश

महान क्रांतिकारी केशरी सिंह बारहठ ने शब्दांजळी
।।दूहा।।
गणणाई केहर गिरा, आभ धरा आवाज।
सह कंप्या पापी सिटळ, गोरा सांभळ गाज।।1
तन रो कियो न सोच तिल, मन सूं रह मजबूत।
जन हित में जुपियो जबर, सो धिन किसन सपूत।।2
शासक सह शोसक हुवा, जन रै लगै झफीड़।
तैं समझी उर में तुरत, पराधीन री पीड़।।3
सांप्रत सीख्यो सधरपण, आंक आजादी ऐक।
दोरी लागी देसी री, पराधीनता पेख।।4
परतंत्र भारत पड़्यो, हर जन मन सूं हार।
उठियो तूं अगराजतो, जन करवा जयकार।।5
आत्म बळ उर में इधक, पिंड अणूंती पौच।
दुख निवारण देसी रो, सूख रो कियो न सोच।।6
उतन आजादी कारणै, झटका दुख रा झेल।
गंजण दळ बळ गोरियां, अड़ियो तूं अजरेल।।7
काढण सह गोरा कुटळ, खाय मनां में खार।
इम लीधो कंध ऊपरै, भारत हंदो भार।।8
दुखी हिंद धर देखनै, दिल सूं व्है दिलगीर।
आयो आळस मोड़तो, भचकै केहर भीर।।9
राखण रजपूती रसा, धिन मजबूती धार।
केहरियै किसनेस रो, सिरै सपूतीचार।।10
मोभी भारत मातरा, हाथां दुख हरियाह।
जुद्ध केशरिया जूपियो, करनै केशरियाह।।11
बणियो वाहर भोमरी, जाहर जंग में जूप।
केहर थाहर कोपियो, रंग रै नाहर रूप।।12
जिग आजादी जूपियो, पूरोही परिवार।
केसरिया किसनेस रा, है रंग तनै हजार।।13
त्याग सदन घरणी तजी, सुख रा तजिया साज।
अड़ियो अंगरेजां अडर, रास उथाळण राज।।14
पूजनीय परिवार सह, जापै जन मन जाप।
जोर भ्राता व्हौ जोरड़ो, पूज्य पूत प्रताप।।15
जिग आजादी जूपियो, पूरो ही परिवार।
कीरत भारी केहरी, सह जाणै संसार।।16
माता सूं बड मानतो मात भोमरी रो मान।
पूत थारो प्रताप वो, जाणै सकळ जहान।।17
रंग आजादी राचियो, इळ पातल अगवाण।
प्राण देय राख्यो प्रतख, मात भोम रो माण।।18
फैंगरियाफिरंगाण जद, धर रो हाल्यो धीर।
जूड़ियो जंग में जोरड़ो, वसु हरावळ वीर।।19
बंधन सुख रा वीर सह, तोड़ै दिया तड़ाक।
केसरिया किसनेस रा, भूरिया पैंड भड़ाक।।20
काम आजादी नित किया, नाम हुवो नवखंड।
भांगण मद तूं भूरियां, दूठो देवण दंड।।21
हळखड़ रै हित कारणै, हितू हरावळ होय।
तैं आसा पूरी तदन, जन जन री धिन जोर।।22
नह लुकियो रहियो निडर, बहियो सतवट वाट।
सहियो संकट सूरमै, रखवाळी रजवाट।।23
तूं लड़कियों किसनेस तण, रोळण गोरां राज।
स्वाभिमान अर सुतंत्रता, सो लावण स्वराज।।24
मरट भोमरी रो मेटियो, परजा गोरां पींच।
तैं ऊभा कीधा तुरत, सबदां ताकत सींच।।25
जरणी तो जणियो जबर, इळ री करण उबेल
डूबत तरणी देसरी, झटके लीनी झेल।।26
गरब गोरां रो गाळियो, पिंड में राख्यो पाण।
कारण इण ही कारणै ही, मुलक पूरै में माण।।27
फतो पतै रो पोतरो, झुकबा दिल्ली जाय।
तैं संभळी बातां तदन, लागी तो उर लाय।।28
स्वाभिमान स्वधर्म री, लोपण नह दी लीक।
चुबता बोड़्या चूंटिया, साची दीनी सीख।।29
कुबुद्ध रची कर्जन कुटळ, नुगरै दिल्ली नीच।
स्वाभिमान वट सूकतो, सकवी दीनो सीच।।30
उतरै नह अहसाण तो, निरणा लेवां नाम।
केहरिया किसनेस रा परभातै परणाम।।31

~~गिरधर दान रतनू “दासोडी”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.