ठा. केसरी सिंह बारहट

जीवन परिचय
जिन लोगों ने समाज और राष्ट्र की सेवा में अपना सर्वस्व ही समर्पित कर डाला हो, ऐसे ही बिरले पुरुषों का नाम इतिहास या लोगों के मन में अमर रहता है। सूरमाओं, सतियों, और संतों की भूमि राजस्थान में एक ऐसे ही क्रांतिकारी, त्यागी और विलक्षण पुरुष हुए थे – कवि केसरी सिंह बारहठ, जिनका जन्म २१ नवम्बर १८७२ में श्री कृष्ण सिंह बारहठ के घर उनकी जागीर के गांव देवखेड़ा रियासत शाहपुरा में हुआ। केसरी सिंह की एक माह की आयु में ही उनकी माता का निधन हो गया, अतः उनका लालन-पालन उनकी दादी-माँ ने किया। उनकी शिक्षा उदयपुर में हुई। उन्होंने बांगला, मराठी, गुजराती आदि भाषाओँ के साथ इतिहास, दर्शन (भारतीय और यूरोपीय) मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र, ज्योतिष का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल की। डिंगल-पिंगल भाषा की काव्य-सर्जना तो उनके जन्मजात चारण-संस्कारों में शामिल थी ही, बनारस से श्री गोपीनाथ जी नाम के पंडित को बुला कर इन्हें संस्कृत की शिक्षा भी दिलवाई गई। केसरी सिंह के स्वध्याय के लिए उनके पिता कृष्ण सिंह का प्रसिद्ध पुस्तकालय “कृष्ण-वाणी-विलास” भी उपलब्ध था। राजनीति में वे इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी को अपना गुरु मानते थे। मैजिनी की जीवनी वीर सावरकर ने लन्दन में पढ़ते समय मराठी में लिख कर गुप्त रूप से लोकमान्य तिलक को भेजी थी क्योंकि उस समय मैजिनी की जीवनीपुस्तक पर ब्रिटिश साम्राज्य ने पाबन्दी लगा रखी थी। केसरी सिंह जी ने इस मराठी पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया था।
शिक्षा प्रसार हेतु योजनाएं
केसरी सिंह जी ने समाज खास कर क्षत्रिय जाति को अशिक्षा के अंधकार से निकालने हेतु कई नई-नई योजनाएं बनाई ताकि राजस्थान भी शिक्षा के क्षेत्र में दूसरे प्रान्तों की बराबरी कर सके। उस समय राजस्थान के अजमेर के मेयो कालेज में राजाओं और राजकुमारों के लिए अंग्रेजों ने ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू कर रखी थी जिस में ढल कर वे अपनी प्रजा और देश से कट कर अलग-थलग पड़ जाएँ। इसीलिये सन १९०४ में नेशनल कालेज कलकत्ता की तरह, जिसके प्रिंसिपल अरविन्द घोष थे, अजमेर में ‘क्षत्रिय कालेज’ स्थापित करने की योजना बनाई, जिस में राष्ट्रीय-भावना की शिक्षा भी दी जा सके। इस योजना में उनके साथ राजस्थान के कई प्रमुख बुद्धिजीवी साथ थे। इससे भी महत्वपूर्ण योजना राजस्थान के होनहार विद्यार्थियों को सस्ती तकनीकी शिक्षा के लिए सन १९०७-०८ में जापान भेजने की बनाई। क्यों कि उस सदी में जापान ही एकमात्र ऐसा देश था, जो रूस और यूरोपीय शक्तियों को टक्कर दे सकता था। अपनी योजना के प्रारूप के अंत में उन्होंने बड़े ही मार्मिक शब्दों में जापान का सहयोग करने के लिए आव्हान किया – “जापान ही वर्तमान संसार के सुधरे हुए उन्नत देशों में हमारे लिए शिक्षार्थ आदर्श है ; हमारे साथ वह देश में देश मिला कर (एशियाटिक बन कर), रंग में रंग मिला कर, (यहाँ रंग से मतलब Racial Colours से है जैसे व्हाइट, रेड, ब्लैक) दिल में दिल मिला कर, अभेद रूप से, उदार भाव से, हमारे बुद्ध भगवान के धर्मदान की प्रत्युपकार बुद्धि से- मानव मात्र की हित-कामना-जन्य निस्वार्थ प्रेमवृत्ति से सब प्रकार की उच्चतर महत्वपूर्ण शिक्षा सस्ती से सस्ती देने के लिए सम्मानपूर्वक आव्हान करता है।” अपनी इस शिक्षा योजना में उन्होंने ऐसे नवीन विचार पेश किये, जो उस समय सोच से बहुत आगे थे जैसे “अब जमाना” यथा राजा तथा प्रजा” का न हो कर “यथा प्रजा तथा राजा” का है। शिक्षा के माध्यम से केसरी सिंह जी ने सुप्त क्षात्रधर्म को जागृत करने हेतु क्षत्रिय और चारण जाति को सुशिक्षित और सुसंगठित कर उनके वंशानुगत गुणों को सुसंस्कृत कर देश को स्वतन्त्रता दिलाने का एक भगीरथ प्रयत्न प्रारंभ किया था। इनकी इस योजना में सामाजिक और राजनैतिक क्रांति के बीज थे। केसरी सिंह ने इस विस्तृत योजना में ‘क्षात्र शिक्षा परिषद्’ और छात्रावास आदि कायम कर मौलिक शिक्षा देने की योजना बनाई और सन १९११-१२ में “क्षत्रिय जाति की सेवा में अपील” निकाली। यह अपील इतनी मार्मिक थी कि बंगाल के देशभक्त विद्वानों ने कहा कि यह अपील सिर्फ क्षत्रिय-जाति के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय जातियों के नाम निकलनी चाहिए थी।
‘अक्षर’ के स्वरूप पर शोध-कार्य
शिक्षा के प्रसार के साथ ही वैज्ञानिक खोज का एक बिलकुल नया विषय केसरी सिंह जी ने सन १९०३ में ही “अक्षर स्वरुप री शोध” का कार्य आरम्भ किया। कुछ वर्ष पहले जब इस प्रारम्भिक शोध के विषय पर केसरी सिंह जी के निकट सम्बन्धी फतहसिंह ‘मानव’ ने राजस्थान विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के विभागाध्यक्ष से बात की तो उन्होंने बताया कि अमेरिका की एक कंपनी Bell Incorporation ने लाखों डालर ‘अक्षर के स्वरूप की शोध’ में खर्च कर दिए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि राजस्थान जैसे पिछडे प्रदेश में, और उसमे भी शाहपुरा जैसी छोटी रियासत में रहने वाले व्यक्ति के दिमाग में अक्षर के स्वरूप की शोध की बात कैसे आई?
सशस्त्र क्रांति के माध्यम से देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति का प्रयास
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में ही युवा केसरी सिंह का पक्का विश्वास था कि आजादी सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ही संभव है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महज़ ज्ञापनों भर से आजादी नहीं मिल सकती। सन १९०३ में वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा आहूत दिल्ली दरबार में शामिल होने से रोकने के लिए उन्होंने उदयपुर के महाराणा फतह सिंह को संबोधित करते हुए “चेतावनी रा चुंगटिया” नामक सोरठे लिखे, जो उनकी अंग्रेजों के विरूद्ध भावना की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी। सशस्त्र क्रांति की तैयारी के लिए प्रथम विश्वयुद्ध (१९१४) के प्रारम्भ में ही वे इस कार्य में जुट गए; अपने दो रिवाल्वर क्रांतिकारियों को दिए और कारतूसों का एक पार्सल बनारस के क्रांतिकारियों को भेजा व रियासती और ब्रिटिश सेना के सैनिकों से संपर्क किया। एक गोपनीय रिपोर्ट में अंग्रेज सरकार ने कहा कि केसरी सिंह राजपूत रेजिमेंट से संपर्क करना चाह रहा था। उनका संपर्क बंगाल के विप्लव-दल से भी था और वे महर्षि श्री अरविन्द से बहुत पहले १९०३ में ही मिल चुके थे। महान क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस व शचीन्द्र नाथ सान्याल, ग़दर पार्टी के लाला हरदयाल और दिल्ली के क्रान्तिकारी मास्टर अमीरचंद व अवध बिहारी बोस से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। ब्रिटिश सरकार की गुप्तचर रिपोर्टों में राजपुताना में विप्लव फैलाने के लिए केसरी सिंह बारहठ व अर्जुन लाल सेठी को खास जिम्मेदार माना गया था।
केसरी सिंह जिन युवकों को क्रान्तिकारी दल में भरती करते उनको प्रशिक्षण हेतु अर्जुनलाल सेठी के विद्यालय में भेजते थे जहाँ उनमे देशभक्ति की भावना और क्रांति के लिए अभिरुचि उत्पन्न की जाती थी। उन क्रान्तिकारी युवकों में से चुने हुए युवकों को दिल्ली में रासबिहारी बोस के प्रमुख सहायक मास्टर अमीचंद के पास भेजा जाता था। केसरी सिंह ने अपने भाई जोरावर सिंह, अपने पुत्र प्रताप सिंह और अपने जामाता इश्वर दान आसिया को मास्टर अमीचंद के पास क्रान्तिकारी कार्यों का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए यह जानते हुए भी भेज दिया कि यह मार्ग फांसी और गोली से मरने और आजन्म कारावास में रहने का मार्ग है। तभी क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस ने कहा था “भारत में ठाकुर केसरी सिंह ही एक मात्र ऐसे क्रान्तिकारी हैं जिन्होंने भारतमाता की दासता श्रंखला को काटने के लिए अपने समस्त परिवार को आज़ादी के मुह में झोंक दिया है”
राजद्रोह का मुकदमा
केसरी सिंह पर ब्रिटिश सरकार ने प्यारेलाल नाम के एक साधु की हत्या और अंग्रेज हकूमत के खिलाफ बगावत व केन्द्रीय सरकार का तख्तापलट व ब्रिटिश सैनिकों की स्वामिभक्ति खंडित करने के षड़यंत्र रचने का संगीन आरोप लगा कर मुकदमा चलाया। इसकी जाँच मि. आर्मस्ट्रांग आई.पी.आई.जी., इंदौर को सौंपी गई, जिसने २ मार्च १९१४ को शाहपुरा पहुँच शाहपुरा के राजा नाहर सिंह के सहयोग से केसरी सिंह को गिरफ्तार कर लिया। इस मुकदमे में स्पेशल जज ने केसरी सिंह को २० वर्ष की सख्त आजन्म कैद की सजा सुनाई और राजस्थान से दूर हजारी बाग़ केन्द्रीय जेल बिहार भेज दिया गया। जेल में उन्हें पहले चक्की पीसने का कार्य सौपा गया जहाँ वे दाल व अनाज के दानों से क ख ग आदि अक्षर बना कर अनपढ़ कैदियों को अक्षर-ज्ञान देते और अनाज के दानों से ही जमीन पर भारत का नक्शा बना कर कैदियों को देश के प्रान्तों का ज्ञान भी कराते थे। केसरी सिंह का नाम उस समय कितना प्रसिद्ध था उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय श्रेष्ठ नेता लोकमान्य तिलक ने अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन में केसरी सिंह को जेल से छुडाने का प्रस्ताव पेश किया था।
जेल से छूटने के बाद
हजारी बाग़ जेल से छूटने के बाद अप्रेल १९२० में केसरी सिंह ने राजपुताना के एजेंट गवर्नर जनरल (आबू ) को एक बहुत सारगर्भित पत्र लिखा जिस में राजस्थान और भारत की रियासतों में उतरदायी शासन-पद्धति कायम करने के लिए सूत्र रूप से एक योजना पेश की। इसमें “राजस्थान महासभा” के गठन का सुझाव था जिस में दो सदन (प्रथम) भूस्वामी प्रतिनिधि मंडल (जिस में छोटे बड़े उमराव, जागीरदार) और “द्वितीय सदन” सार्वजनिक प्रतिनिधि परिषद् (जिसमें श्रमजीवी, कृषक, व्यापारी ) रखने का प्रस्ताव था। महासभा के अन्य उद्देश्यों के साथ एक उद्देश्य यह भी था :- “राज्य में धार्मिक, सामाजिक, नैतिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और लोक-हितकारी शक्तियों के विकास के लिए सर्वांगीण चेष्टा करना।” इस पत्र में उनके विचार कितने मौलिक थे उसका अंदाज उनके कुछ वाक्यांशों को पढ़ने से लगता है, “प्रजा केवल पैसा ढालने की प्यारी मशीन है और शासन उन पैसों को उठा लेने का यंत्र ……. शासन शैली न पुरानी ही रही न नवीन बनी, न वैसी एकाधिपथ्य सत्ता ही रही न पूरी ब्यूरोक्रेसी ही बनी। …….. अग्नि को चादर से ढकना भ्रम है -खेल है- या छल है मेरी समझ यही साक्षी देती है।” जिस ज़माने में ब्रिटिश सत्ता को कोई खास चुनौती नहीं थी और रियासतों में नरेशों का एकछत्र शासन था, उस समय सन १९२०-२१ में उनके विचारों में प्रजा की शक्ति का कितना महत्व था कि उन्होंने रियासतों के राजाओं के लिए लिखा – “भारतीय जनशक्ति के अतिरिक्त भारत में और कोई समर्थ नहीं, अतः उससे सम्बन्ध तोड़ना आवश्यक नहीं”।
उत्तर-जीवन
सन १९२०-२१ में सेठ जमनालाल बजाज द्वारा आमंत्रित करने पर केसरी सिंह जी सपरिवार वर्धा चले गए, जहाँ विजय सिंह ‘पथिक’ जैसे जनसेवक पहले से ही मौजूद थे। वर्धा में उनके नाम से “राजस्थान केसरी” साप्ताहिक शुरू किया गया, जिसके संपादक विजय सिंह ‘पथिक’ थे। वर्धा में ही केसरी सिंह का महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ। उनके मित्रों में डा. भगवानदास (पहले ‘भारतरत्न’), राजर्षि बाबू पुरुषोत्तम दास टंडन, गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’, चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, माखनलाल चतुर्वेदी, राव गोपाल सिंह खरवा, अर्जुनलाल सेठी जैसे स्वतंत्रता के पुजारी शामिल थे। देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ होम कर देने वाले क्रान्तिकारी कवि केसरी सिंह ने 14 अगस्त 1941 को “हरी ॐ तत् सत्” के उच्चारण के साथ अंतिम साँस ली।
चेतावणी रा चूंग्ट्या
सन 1903 में जब देश में भावी सशस्त्र क्रान्ति की तैयारिया चल रही थी तब उधर ब्रिटिश सरकार भी सशक्त और चोकन्नी हो गयी थी। भारत के जनमानस में अंग्रेजों के प्रति राजभक्ति की भावना उत्पन्न करने के लिए तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन ने एक योजना तैयार की। उसने सम्राट के सिंहासन पर बैठने के उपलक्ष्य में सम्राट के प्रतिनिधि स्वरुप दिल्ली में एक विशाल दरबार बुलाया। इतिहास चर्चित मुग़ल दरबार के वैभव और शान-ओ-शोकत को भी फीका कर देने वाला दरबार हो, उसका यह प्रयत्न था। वह चाहता था कि उसके दरबार में सभी राजे महाराजे, नवाब अपनी राजसी ठाट-बाट और वैभव के साथ सम्राट के प्रतिनिधि की अभ्यर्थना हेतु जुलूस में उपस्थित हों। अन्य सभी राजाओं ने इसे अपने लिए गौरव माना परन्तु स्वाभिमानी मेवाड के महाराणा फतह सिंह ने अनिच्छा प्रकट की। परन्तु लार्ड कर्जन के अत्यंत विनम्र एवं चाटुकार दरबारियों के दबाव में उन्होंने भी उस दरबार में उपस्थित होना स्वीकार कर लिया और वे अपनी स्पेशल रेलगाड़ी द्वारा दिल्ली चल पड़े। हिन्दू कुल-सूर्य मेवाड़ के महाराणा का जाना शेखावाटी के क्रान्तिकारियों को अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिये उन्हें रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूरसिंह ने ठाकुर करणसिंह जोबनेर व राव गोपालसिंह खरवा के साथ मिल कर महाराणा फ़तहसिंह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी केसरी सिंह बारहठ को दी। केसरी सिंह बारहठ ने महाराणा के नाम डिंगल में “चेतावणी रा चूंग्ट्या” नामक 13 सोरठे रचे जो साहित्य के साथ साथ राजस्थान के राजनीतिक इतिहास की भी निधि बने हुए हैं। उन्होंने निम्न लिखित सोरठों द्वारा महाराणा को स्मरण कराया कि :
पग पग भम्या पहाड, धरा छांड राख्यो धरम।
(ईंसू) महाराणा’र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै।।1।।
भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे, घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की। मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके। इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है।घण घलिया घमसांण, (तोई) राण सदा रहिया निडर।
(अब) पेखँतां, फ़रमाण हलचल किम फ़तमल ! हुवै?।।2।।
अनगिनत व भीषण युद्ध लड़ने के बावजूद भी मेवाड़ के महाराणा कभी किसी युद्ध से न तो विचलित हुए और न ही कभी किसी से डरे उन्होंने हमेशा निडरता ही दिखाई। लेकिन हे महाराणा फतह सिंह आपके ऐसे शूरवीर कुल में जन्म लेने के बावजूद लार्ड कर्जन के एक छोटे से फरमान से आपके मन में किस तरह की हलचल पैदा हो गई ये समझ से परे है।गिरद गजां घमसांण नहचै धर माई नहीं।
(ऊ) मावै किम महाराण, गज दोसै रा गिरद मे।।3।।
मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा लड़े गए अनगिनत घमासान युद्धों में जिनमे हजारों हाथी व असंख्य सैनिक होते थे कि उनके लिए धरती कम पड़ जाती थी आज वे महाराणा अंग्रेज सरकार द्वारा २०० गज के कक्ष में आयोजित समरोह में कैसे समा सकते है? क्या उनके लिए यह जगह काफी है?ओरां ने आसान, हांका हरवळ हालणों।
(पणा) किम हालै कुल राण, (जिण) हरवळ साहाँ हाँकिया।।4।।
अन्य राजा महाराजाओं के लिए तो यह बहुत आसान है कि उन्हें कोई हांक कर अग्रिम पंक्ति में बिठा दे लेकिन राणा कुल के महाराणा को वह पंक्ति कैसे शोभा देगी जिस कुल के महाराणाओं ने आज तक बादशाही फौज के अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को युद्ध में खदेड़ कर भगाया है।नरियंद सह नजरांण, झुक करसी सरसी जिकाँ।
(पण) पसरैलो किम पाण, मान छतां थारो फ़ता !।।5।।
अन्य राजा जब अंग्रेज सरकार के आगे नतमस्तक होंगे और उसे हाथ बढाकर झुक कर नजराना पेश करेंगे। उनकी तो हमेशा झुकने की आदत है वे तो हमेशा झुकते आये है लेकिन हे सिसोदिया बलशाली महाराणा उनकी तरह झुक कर अंग्रेज सरकार को नजराना पेश करने के लिए तलवार सहित आपका हाथ कैसे बढेगा? जो आज तक किसी के आगे नहीं बढा और न ही झुका।सिर झुकिया शहंशाह, सींहासण जिण सम्हने।
(अब) रळणों पंगत राह, फ़ाबै किम तोने फ़ता !।।6।।
हे महाराणा फतह सिंह ! जिस सिसोदिया कुल सिंहासन के आगे कई राजा, महाराजा, राव, उमराव, बादशाह सिर झुकाते थे। लेकिन आज सिर झुके राजाओं की पंगत में शामिल होना आपको कैसे शोभा देगा?सकल चढावे सीस, दान धरम जिण रौ दियौ।
सो खिताब बखसीस, लेवण किम ललचावसी।।7।।
जिन महाराणाओं का दिया दान, बख्शिसे व जागीरे लोग अपने माथे पर लगाकर स्वीकार करते थे। जो आजतक दूसरो को बख्शीस व दान देते आये है आज वो महाराणा खुद अंग्रेज सरकार द्वारा दिए जाने वाले स्टार ऑफ़ इंडिया नामक खिताब रूपी बख्शीस लेने के लालच में कैसे आ गए?देखेला हिंदवाण, निज सूरज दिस नेह सूं।
पण “तारा” परमाण, निरख निसासा न्हांकसी।।8।।
हे महाराणा फतह सिंह हिंदुस्तान की जनता आपको अपना हिंदुआ सूर्य समझती है जब वह आपकी तरफ यानी अपने सूर्य की और स्नेह से देखेगी तब आपके सीने पर अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया “तारा” (स्टार ऑफ़ इंडिया का खिताब) देख उसकी अपने सूर्य से तुलना करेगी तो वह क्या समझेगी और मन ही मन बहुत लज्जित होगी।देखे अंजस दीह, मुळकेलो मनही मनां।
दंभी गढ़ दिल्लीह, सीस नमंताँ सीसवद।।9।।
जब दिल्ली की दम्भी अंग्रेज सरकार हिंदुआ सूर्य सिसोदिया नरेश महाराणा फतह सिंह को अपने आगे झुकता हुआ देखेगी तो तब उनका घमंडी मुखिया लार्ड कर्जन मन ही मन खुश होगा और सोचेगा कि मेवाड़ के जिन महाराणाओं ने आज तक किसी के आगे अपना शीश नहीं झुकाया वे आज मेरे आगे शीश झुका रहे है।अंत बेर आखीह, पातळ जे बाताँ पहल।
(वे) राणा सह राखीह, जिण री साखी सिर जटा।।10।।
अपने जीवन के अंतिम समय में आपके कुल पुरुष महाराणा प्रताप ने जो बाते कही थी व प्रतिज्ञाएँ की थी व आने वाली पीढियों के लिए आख्यान दिए थे कि किसी के आगे नहीं झुकना, दिल्ली को कभी कर नहीं देना, पातळ में खाना खाना, केश नहीं कटवाना जिनका पालन आज तक आप व आपके पूर्वज महाराणा करते आये है और हे महाराणा फतह सिंह इन सब बातों के साक्षी आपके सिर के ये लम्बे केश है।“कठिण जमानो” कौल, बाँधे नर हीमत बिना।
(यो) बीराँ हंदो बोल, पातल साँगे पेखियो।।11।।
हे महाराणा यह समय बहुत कठिन है इस समय प्रतिज्ञाओं और वचन का पालन करना बिना हिम्मत के संभव नहीं है अर्थात इस कठिन समय में अपने वचन का पालन सिर्फ एक वीर पुरुष ही कर सकता है। जो शूरवीर होते है उनके वचनों का ही महत्व होता है। ऐसे ही शूरवीरों में महाराणा सांगा, कुम्भा व महाराणा प्रताप को लोगो ने परखा है।अब लग सारां आस, राण रीत कुळ राखसी।
रहो सहाय सुखरास, एकलिंग प्रभु आप रै।।12। ।
हे महाराणा फतह सिंह जी पूरे भारत की जनता को आपसे ही आशा है कि आप राणा कुल की चली आ रही परम्पराओं का निरवाह करेंगे और किसी के आगे न झुकने का महाराणा प्रताप के प्रण का पालन करेंगे। प्रभु एकलिंग नाथ इस कार्य में आपके साथ होंगे व आपको सफल होने की शक्ति देंगे।मान मोद सीसोद, राजनीत बळ राखणो।
(ईं) गवरमिन्ट री गोद, फ़ळ मीठा दीठा फ़ता।।13।।
हे महाराणा सिसोदिया राजनैतिक इच्छा शक्ति व बल रखना इस सरकार की गोद में बैठकर आप जिस मीठे फल की आस कर रहे है वह मीठा नहीं खट्ठा है।
दिनांक 30 दिसंबर 1902 को महाराणा फतह सिंह को दिल्ली के रास्ते में चित्तौडगढ़ के पास सरेरी नामक स्टेशन पर उनके अंतर्मन को झकझोर देने वाले ये सोरठे ठा. गोपाल सिंह खरवा ने उनके हाथ में थमा दिए। जब महाराणा की ट्रेन भीलवाडा से आगे सरेरी स्टशन पे आयी तब तक वे उन सोरठों को पढ़ चुके थे। इन्हें पढ़ना था कि उनका सुप्त आत्म गौरव जाग उठा और उनकी प्रतिक्रया थी कि यदि ये सोरठे उनको उदयपुर में ही मिल गए होते तो वे हरगिज वहाँ से दिल्ली के लिए रवाना नहीं होते। 31 दिसंबर को वे दिल्ली पहुंचे परन्तु उन्होंने वहाँ जाकर भी दरबार में न जाने का संकल्प ले लिया था। वे जुलूस व दरबार में सम्मिलित नहीं हुए। दरबार में महाराणा की कुर्सी खाली ही पडी रही और इस घटना ने समूचे राजस्थान में एक नवीन उत्साह का संचार कर दिया।
।।महाभारत का प्राकृतिक नीति-पाठ।।
क्रांतिचेत्ता अग्रदूत वीरवर ठाकुर केसरी सिंह जी बारहठ साहब ने, अंग्रेजों की अजेय शक्ति जिसके राज में सूरज कभी भी अस्त नहीं होता था, उससे टक्कर में क्रान्तिकारी अपने को दुर्बल समझने लगे थे, उस किंकर्तव्यविमूढ समय में ईस्वी सं. 1931 में असहयोग आन्दोलन के समय में ऐक घनाक्षरी कवित्त लिखकर आजादी के दीवानों में नवीन ऊर्जा का संचार कर दिया और बाजी को पलट कर दिखा दिया। यह दूसरा बड़ा व महत्वपूर्ण अवसर था जब बारहठ साहब ने ब्रितानी साम्राज्य पर करारा वार किया था। पहला वार करके महाराणा साहब को दिल्ली दरबार में जाने से रोक ही दिया था।
बारहठ साहब ने ऐक घनाक्षरी कवित्त के माध्यम से चेतना का संचार किया कि …..देखिये, महाभारत के महासमर में कौरव महाशक्ति के सामनें पाण्डवों की स्वल्प सैन्य शक्ति ने श्रीकृष्ण की सहायता से विजयश्री का वरण किया था, उसी भांति वर्तमान समय में भी भारतवर्ष की जनशक्ति आपसी सहयोग, समता एवं एकता के बल पर महात्मा मोहनदास कर्मचन्द गांन्धी के निर्देशन में अवश्य ही विजयश्री का वरण करेगी।
और इससे भारतीय जन मानस में नवीन ऊर्जा का संचार होकर दुगुने चौगुने जोश से आजादी की अलख देश में सर्वत्र व्याप गई, और सुपरिणाम पाया।
।।घनाक्षरी कवित्त।।
धर्मछलि छद्मतें छिपाय छलीछीनें छोनि,
द्रोनभरि भीष्मभेदें स्वारथ की सिध्दी हेत।
बनें धृतराष्ट्र अंध दुर्यौधन शक्ति गहि,
कर्ण के सहारे दुःशासन निभाये लेत।
शल्य हो हिये में उठें तबें पंचशक्ति मिलि,
अल्पहू युधिष्ठिर व्है भीम बल तें उपेत।
अर्जुन नकुल सहदेव भाव मोहन लै,
पावें जय भारत यों प्राकृत को पाठ देत।
~~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)
।।बारहठ केसरीसिंह जी और कोटा महाराव उम्मेदसिंह जी।।
।।कहाँ वे लोग, कहाँ वे बातें।।
महान क्रान्तिवीरों के अग्रणी केसरीसिंह जी के आभा मण्डल से घबराकर ब्रिटिश सरकार के वायसराय व गवर्नर जरनल आदि अंग्रेज अफसरों द्वारा साजिश रचकर मेवाड़ महाराणा व शाहपुरा राजाधिराज दोनो को दबा कर बेदखली की कार्रवाही के द्वारा केसरीसिंहजी की समस्त अचल सम्पति जागीरें हवेली आदि जब्त करवा दी गई और इस राजशाही परिवार को दर दर का भिखारी बना दिया गया। इस पर भी वे उस नर नाहर का हौंसला और राष्ट्र के साथ भक्ति व प्रेम को डिगाने में सफल नही हो सके। जब जब्ती की कार्यवाही के दौरान रियासत के सिपाही आदर व सम्मान के साथ शाहपुरा स्थित हवेली को जब्त करने आये तब के राजपूत कोतवाल व उसके स्टाफ ने केसरीसिंह जी की पत्नी मांणिक कुंवर जी को निवेदन किया कि कार्रवाही करना हमारी मजबूरी है पर आप हवेली में से कीमती सोना चांदी और अन्य सामान ले जाने के लिए स्वतंत्र है। इस पर मांणिक कुंवर जी मात्र अपने श्वसुर बारहठ कृष्णसिंहजी रचित “राजपूताने का अपूर्व इतिहास” के हस्तलिखित लगभग तीस रजिस्टरों को अपने साथ लिया जो कि उन्हे समस्त हीरे जवाहरात आदि से भी प्रिय थे। इस प्रकार की परिस्थिति की मात्र कल्पना से भी आज कोई कठोर ह्रदय मानव तक सिहर जाए मगर माणिक कुंवर जी इन जिल्दों को लेकर अपने पीहर कोटा चली गई।
कोटा महाराव उम्मेदसिंहजी को समस्त घटना क्रम का ज्ञान था। ऐसे विकट समय में उन्होने अपने धर्म और कर्तव्य के साथ अपनी सनातन व उजली परम्परा का पालन किया। ब्रिटिश हुकुमत के दबाव को नजर अन्दाज करते हुये यह कहकर कि भाई अपनी बहिन की विपन्नावस्था में मदद करने के लिए ब्रितानी सरकार द्वारा पूछकर नहीं अपितु सनातन धर्मानुसार माहेरा व अपनी बहिन का दाय भाग उसे प्रदान कर अपने को उऋण समझता है, और मैं भी मेरी बहिन मांणिक कंवरजी के रहने के लिए आवास बनाकर देने में स्वतंत्र हूं और इसके लिए ब्रितानी हुकुमत की मुझे इजाजत की आवश्यकता नहीं है। कोटा महाराव उम्मेदसिंहजी ने कोटा में ही विस्तृत मैदान में ऐक बढिया भवन बना कर प्रदान किया जिसका नाम भी “मांणिक-भवन” ही रखा गया।।
इस अवसर की सार्थक व महत्ती मदद करने पर केसरीसिंहजी के ह्रदयोद्गार थे।
।।दोहा।।
कहत विज्ञ इतिहास को, पुनरावर्त प्रयोग।
नृप उमेद कवि केहरी, कृष्ण सुदामा योग।।
महाराव उम्मेदसिंहजी एक आदर्श प्रजावत्सल नरेश थे, व तत्कालीन राजाओं में उनकी सानी के इनेगिने ही थे। सदाशयता, न्याय प्रियता, सादा जीवन व प्रजाहित में संलग्न रहना उनके मुख्य गुण थे। ई. सन 1914 में जब केसरीसिंहजी पर ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह आदि जुर्मों का संगीन अभियोग चलाया तो उस समय एक ओर अंग्रेजी सरकार के साथ पूर्ण स्वामिभक्ति निभायी और दूसरी ओर केसरीसिंहजी व उनके परिवार के प्रति जैसी सदाशयता व उदारता का परिचय दिया वह अपने आप में असाधारण, अनिवर्चनिय, अकल्पनिय था। इन्ही महाराव का निधन 27 नवम्बर 1940 में हुआ था तब ठाकुर केसरीसिंह जी बारहठ साहब ने उनके प्रति शोकोद्गार स्वरूप मरसियै के द्वारा श्रद्धांजली अर्पण की जो कि आज इतिहास के सुनहरे अक्षरों में अंकित है व साहित्यानुरागी सज्जनों हेतु भी अति उच्च कोटि का संग्रहणीय काव्य है।
।।कवित्त।।
दया का अथाह सिंधु प्रेम का प्रवाह वह,
सच्चा नरनाह प्रजासुख में झुला गया।
रंचहूं न कुटिल प्रपंच न्याय मंच पर,
राजा प्रजा बीच गांठ भक्ति की घुला गया।
जनता के जीवन में जीवन मिलाय सदा,
ब्रह्म के समान व्यापि द्वैत को भुला गया।
उजड़े बसाने वाला सूखे सरसाने वाला,
नेह से हँसाने वाला जगको रूला गया।।
।।सवैया।।
भूप उमेद रहे हँसते, अपराधहु पै कटु बैन कह्यो ना।
भाव उदार रखी समता, निज अन्य के धर्म में भेद गह्यो ना।
दीन दयाल विशाल हिये, खुद कष्ट सह्यो पर-दुख सह्यो ना।
गाज परो विधना के अकाज पैं, आज गरीबनिवाज रह्यो ना।।
~~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा (सीकर)
इन्ही केसरी सिंह जी के निधन पर राजस्थान के कवियों ने अपने पीछोलों (सौरठों) में बड़े करुणा-उदगार प्रगट किये –
ठाकुर कल्याणसिंह गांगियासर द्वारा प्रगट उदगार –
कहरियो हो केहरी, भल रजवाडां वीर।
चारण जाति में चतुर, धरां किणी विध धीर।।
महिपत नीको मानता, आदर करता आय।
कठे गयो अब केहरी, लांबो दुःख लगाय।।
सुणता हा म्हे साचली, केहरी मुख खरिह।
आख्खे कुण क़लियाण, अब बाणी जोस भरिह।।
केसरीसिंह सिंह के समान राजस्थानी रियासतों के वीर थे। वे चारण जाति में चतुर थे, अब किस प्रकार धीरज रखें? राजा लोग उन्हें अच्छा मानकर उनका आदर करते थे लेकिन केसरीसिंह अब लम्बा दुःख लगाकर कहाँ चले गए? हम केसरीसिंह के मुख से सच्ची व खरी बात सुनते थे लेकिन अब वैसी जोश भरी वाणी कौन सुनाये?
केसरीसिंह बारहठ के निधन पर ठाकुर मनोहरसिंह जी ने कहा –
विधना कियो अकाज, गाज परो तव काज पै।
आई रंच न लाज, हरतां जग सूं केहरी।।
विधि ने यह बुरा काम किया जब कि कार्य पर वज्र गिरा। विधि को संसार से केसरीसिंह को हरते तनिक भी लज्जा नहीं आई।
केसरीसिंह के निधन पर एक अन्य के मुंह से ये उदगार निकले –
हाकल ख़तवट देश, बोलि वीरता रा वचन।
देसी कुण उपदेश, कडवा तो बिन केहरी।।
झूंठा झुघटियाह, असर हुवै किम अधपत्यां।
चुभता चुन्घटियाह, कुण ले तो बिन केहरी।।
हे केसरीसिंह तुम्हारे बिना अब इस रजवट देश को वीरता भरी वाणी से ललकार कर कौन उपदेश देगा?
अब झूठे वचनों से अधिपतियों पर किस प्रकार असर पड़ सकता है? तुम्हारे बिना अब चुभते चुंगटीये कौन भरे?
केसरी सिंह जी के गांव का। नाम देवपुरा नही सही नाम देवखेड़ा है आप इस नाम कौ edit करे।
सुधार दिया हुकम। हार्दिक आभार आपका।
कोटा शहर में निवास करते हैं। भवन का नाम ‘माणिक भवन’ हैं। विशाल सौदा जी वर्तमान में उनके वारिस हैं। व्यक्तिगत नम्बर यदि चाहो तो हैं मेरे पास।
ठाकुर केसर सिंह बारेठ जी ऐतिहासिक गांव रामगढ़ बारां में हमारे ठिकाने पर भी रुके थे।
माई एडो पुत जन जे जेडो केह़री बारहट।
नी तो रिजाजे बांजडी मती गवई जे नुर ।।
महान देशभक्त केशरी सिंह बारहठ को शत् शत् नमन जिन्होंने अपने पूरे परिवार को देश को आजाद कराने के लिए देश के प्रति समर्पित कर दिया
Keshri singh ji ki baaki ki family kaha h agar aapko pta h to plz btao me milna chahungi aese veeryodha ki family se
Udaipur Aur Jodhpur…..
Aur kesari Singh ji pr likhi ek book h jo udaipur ke gulab bagh library me available hai. Aasha hai ki aap fan ho jaaogi Unki
बहुत धन्यवाद पाठको को ये सोरठे उपलब्ध करवाने के लिए जय माँ करणी, जय माँ शारदे
Keshri Singh Barhat Rajasthan ke gourav he . jai rajsthan
NAMAN
मातृभूमि पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महान क्रांतिकारी श्री केसरी सिंह जी बारहठ को शत शत नमन
सुन्दर रचना आभार और जय माताजी की
चारण साहित्य के बारे में बताने वाले को मेरी और से धन्यवाद और जय माता जी री
बहुत आभार हुकम| जय माताजी री|