खरी कमाई खाय – कवि मोहन सिंह रतनू

खोटा रूपया खावतो, जावे सीधो जेल।
मिल जावे रज माजनो, बंश होय बिगड़ैल।।1
खोटा रूपया खावतो, लगे एसीबी लार।
निश्चय जावे नौकरी, बिगड़ जाय घरबार।।2
खोटा रूपया खावतो, चित्त में पड़े न चैन।
रात दिवस चिन्ता रहे, नींद न आवे नैन।।3
खोटा रूपया खावतो, खून ऊपजे खार।
घर कुसंप झगड़ो घणो, पूत जाय परवार।।4
नेकी सू कर नौकरी, बहणो उत्तम बाट।
नर निरलोभी निडररे, काया लगे न काट।।5
करणा नह हीणा करम, पद परमोशन पाय।
घर रोशन होसी घणों, खरी कमाई खाय।।6
मद पीवे मुजरा सुणे, जार जुआंघर जाय।
करमत खोटा कामड़ा, खोटा रूपया खाय।।7
पत जावे आफत पड़े, हालत बिगड़े हाय।
आहत जीव अधीर व्हे, खोटा रूपया खाय।।8
झोटो ज्यूं लेवे झपट, कपटी नोट कमाय।
पग ज्यांरा बारे पडें, खोटा रूपया खाय।।9
निज परणीने परहरे, परदारा सू प्रीत।
रूल जावे सारी रकम, रिसवत री आ रीत।।10
खरी कमाई खावणी, रहणो हेक रूझाण।
खरी बात केवे खरी, रतनू “मोहन” राण।।11
खोटा रूपया खावतो, जीव नरक में जाय।
कहे “मोहन” सुण कारमिक, खरी कमाई खाय।।12

~~मोहन सिंह रतनू
उप अधीक्षक पुलिस
एसीबी, जयपुर

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