खट भाषा काव्य प्रबीन सागर से

नायिका कलाप्रबीन नायक रससागर के बिरह में बीमार हो गई है। उस का पता नायिका की सखियों को चलता है। दूर दूर से कलाप्रबीन का कुशल क्षेम पुछने के लिए आती है। हर एक सखी अपनी भाषा में उससे उसकी तबियत का हाल पूछती है। गुजरात से आयी सखी गुजराती में, कच्छी सहेली कच्छी भाषा में, महाराष्ट्रीयन सखी मराठी में, मारवाड से आयी सखी ठेठ मारवाडी में, अरबस्तान से आयी सहेली उर्दू में, और बनारस से पधारी ब्राह्मण सहेली संस्कृत में उसकी तबियत का हाल पूछती है। तो आप भी इसका लुत्फ उठाएं।

१. गुर्जर देश की सखी गुजराती भाषा में कलाप्रवीण को आराम पूछती है :-

कहे गुजराती तारी पीडा तो कल़ाती नथी, मन मां मुंझाती डीले दुबल़ी देखाती छे।
न्हाती नथी खाती नथी गीत मुखे गाती नथी, बोलती लजाती बाघा जेवी तुं जणाती छे।।
राती रांण जेवी हती दीसे छे सुकाती जाती, आंखो राती राती तारी छाती ताती ताती छे।
प्रवीण पंकाती तुं तो गुणी मां गणाती पण, भासे एवी भांति जाणे भ्रांति मां भ्रमाती छे।। १

 गुजराती सखी कह रही है, हे सखी तुम्हारी पीडा क्या है उसका पता नहीं चल रहा है, मन में क्यों चिंतित लग रही है, शरीर से कृषकाय लग रही है। नहाना और खाना पीना छोड दिया है, मुख से गीत भी नहीं गा रही हो, बोलने में भी सकुचा रही हो और पागल जैसी क्यों हो गई हो। पहले तो लाल रायण की तरह लग रही थी पर अब धीरे धीरे सूख रही हो, तुम्हारी आंखे लाल लाल और छाती दुर्बल हो गई है। तुम प्रबीन कहलाती हो और गुणवान स्त्रीयों में तुम्हारा नाम था पर अब ऐसा लग रहा है जैसे किसी भ्रांति में भटक गई लग रही हो।

२. कच्छी सहेली कच्छी भाषा में पूछती है :-

सभर करने सुंण गाल भली भेंण मुंजी, मन म मुंझाय मुंजो चोण नाई खिलजो।
दुःख तोजो डीसी जीव जेडलेजो दुःख डीसे, मुलाजो मुकर दर्द चई विज दिलजो।।
खेण पीण मींडे छंडी रातडीं रूंवेती वीठी, नतोती जणाजे मतलभ तोंजे मिलजो।
चेत आडी अवरी पुछोंस भुई के कुठाई, बर्तराथीधी हुवैतो खणा पंखो फुलजो।। २

हे बहिन ! जरा सब्र कर। मेरी बात सुन, तू मन में संशय मत कर। मैं कोई तुम्हारा मजाक नहीं कर रही हूं (मेरी बात हँसी में उडाने वाली नही है) तुम्हारा दर्द देखकर सहेली को दर्द हो यह स्वाभाविक है इसलिए मान मर्यादा को छोडकर मुझे अपने दिल की बात बता। खाना पीना छोड कर रात दिन रोती रहती हो उससे तुम्हारे दिल की तकलीफ का अंदाजा नहीं हो रहा है। किसी की नजर लगी हो या किसी ने मूठ चोट या तंत्र मंत्र तुझ पर किया हो तो किसी झाड फूंक वाले ओझा या तांत्रिक को बुलाकर पूछते है और तुझे देह में जलन हो रही हो तो फूल का पंखा डुला कर हवा डालते हैं।

३. महाराष्ट्रीयन सहेली मराठी में पूछती है :-

Maharashtrianप्रवीणे मी तुझे तोंड पाहुनां सांगती आतां, कुठे गेली फारबरी कांति तुझ कायाची।
चांगली मुलीला आता काय असा रोग झाला, आहे गति है विचित्र ईश्वरांची मायाची।
येन ऊंघा वैधा लाऊं पाहुनघ्या नाडी तुझी, ते तुला देईल फारबरी गोली खायाची।
त्यां पासुन तुझा रोग जाहुन होईल सुख, सांगीतल तुला गोष्ठ हिमी बरी न्यायाची।

हे प्रवीण तुम्हारा मुख देखकर कह रही हूं कि तू उदास है। तुम्हारे चेहरे की कांति कहां गायब हो गई? हे प्रिय राजकुमारी तुम्है ऐसा क्या रोग लगा गया? यह तो दैव (भाग्य) की कोई विचित्र गति है। हमें उसका कुछ निदान करने दे, वैद्य को बुलाने दे जिससे वह नाडी देखकर तुम्हारी बिमारी का निदान कर सके और कुछ अच्छी गोलीयां दे सके। जब तक तुम अपनी बिमारी का हमें निदान नहीं करने देंगी तब तक तेरी तबियत ठीक नहीं होगी यह बात सत्य ही मैं तुझको कह रही हूं।

४ मारवाड देश की सखी मरूभाषा में पूछती है :-

Marvadiम्हाकौ थें क्हैणो न मानां थांको हियो थरू व्हैना, बोल जको कांई थानें हुवो एडो दुखडो।
हाथांजोडी कां छां थांनें कांई थें चिंता करां छां, जको माडू जेडो आज वै ना थारो मुखडो।
प्रवीण रायां री बेटी मती करो एडी बातां, इसो किये थांने अठे उपजे न सुखडो।
मोकळो है धन थारे, लोव़डी लाखां री थारी, सोना जिस्यो चंगो थारो वडो है झरूखडो।। ४

मेरा कहना मान नहीं रही है, तेरा ह्रदय स्थिर नहीं है। बता तो सही तुझे किस बात का दुःख खाये जा रहा है? मैं हाथ जोड कर निवेदन कर रही हूँ कि तू किस बात की चिंता कर रही है? आज तुम्हारा चेहरा आनंदित मनुष्य के जैसा क्यों नहीं दिख रहा है। प्रबीन बाईसा आप तो राजकुमारी हो, इस तरह की उलूल जुलूल बात न करें, ऐसा करने से किसी का भला होने वाला नहीं है। तुम्हारे पास तो अकूत धन है, लाख रूपये की तुम्हारी लोवडी (साडी) है और स्वर्णिम सुंदर राजमहल का तुम्हारा झरोखा है।

५. अरबी सखी उर्दू जुबान में हाल पूछती है :-

arebianनूरे आफ़ताब माहताब है चहेरा तिरा, सितारों से चश्म बुलबुल सी जुब़ान है।
हुआ है जिगर तेरा दर्द में गिरफ्तार, सबही सुना वरास्त जानु मेरी जान है।
खांविंद खलक रखै तैसे रहो खुशहाल, जिसकी औलाद जानुमंद वे जहान है।
फना कर फिकर जिकर क्या प्रबीण भेण, खलक में बावा तेरा खुद खानदान है।। ५

तुम्हारा चेहरा सूर्य-चंद्र की तरह तेजस्वी और तुम्हारी आँखे सितारों की तरह चमकती, और बुलबुल सी तुम्हारी जबान मीठी है। आज तुम्हारा दिल किस पीडा से ग्रस्त है? तू इस दुनिया में मेरी सबसे प्यारी दोस्त है, इसलिए अपनी सारी हकीकत मुझे बयाँ करदे। कुछ छुपा नहीं। यह दुनिया जिसकी संतान है ऐसे परमात्मा हमें रखें उस स्थिति में हमें रहना चाहिए। हे प्रबीन बहन तमाम चिंता फिकर छोड दे, व्यर्थ ऐसी बातो का जिक्र मत कर, तुम्हारे पिता तो दुनिया में बादशाह है।

६. बनारसी ब्रह्मकन्या संस्कृत में पूछती है :-

Banarsiवचनं वदामि ते हिताय त्वत सुखायचाहं, भुत्वा सावधाना तत श्रुणु भाग्यशालिके।
केयं कृताभिना भुत्वा त्वयं त्यं चाक्रदंता, मा वदस्य कारणत्वमृदुलमृणालिके।
त्वमसि विधावति प्रभावति क्षमावति, किवदामित्वा सदगुणी मणिमालिके।
धेर्य धुत्वा भुत्वा स्थिरा तु विनिष्ठं कुरू, बुध्धिमतिं भवत्वं प्रवीण भूप बालिके।। ६

मैं तुझे तुम्हारी भलाई के लिए कुछ वचन कह रही हूं सो हे बडे नसीब वाली, ध्यान देकर सुन। हेकमल के समान नेत्रवाली, तू व्यर्थ में भय से ग्रसित होकर क्यों आक्रंद कर रही है, उसका कारण मुझे बता? तू विधावती, प्रभावती, क्षमावती है, अनेंको सद्गुणों रूपी मणियों की माला की तरह है इसलिए मैं और तुझको क्या बताऊँ? तू स्थिरचित्त होकर धैर्य धर। तेरी सारी दुविधाए दूर हो जाएगी। हे प्रबीन राजकुमारी तू तो बुध्धिशाली है ऐसा करना तुझे बिलकुल शोभा नहीं देता।

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