किरसाण बाईसी – जीवतड़ो जूझार

।।दूहा।।
तंब-वरण तप तावड़ै, किरसै री कृशकाय।
करण कमाई नेक कर्म, वर मैंणत वरदाय।।1
तन नह धारै ताप नै, हिरदै मनै न हार।
कहजो हिक किरसाण नै, सुज भारत सिंणगार।।2
गात उगाड़ै गाढ धर, फेर उगाड़ी फींच।
खोबै मोती खेत में, सधर पसीनो सींच।।3
कै ज सिरै किरतार है, कै ज सिरै किरसाण।
हर गल्ल बाकी कूड़ है, कह निसंक कवियाण।।4
पोह राचै ओ पोखवै, इण में झूठ न एक।
वो हिरदै बो बडम है, नर ओ हिरदै नेक।।5
मैणत सूं सह मुलक नै, करै निचिंत किरसाण।
पिंडां अन्न धिन पूरणो, काया निज कड़पाण।।6
कदै खसै भिड़ काल़ सूं, वलै कदीयक बाढ।
हार नहीं नह हें करै, गजब रखै तन गाढ।।7
कदै जाल़ सरकार रै, कदि जाल़ साहूकार।
फसियो ई फूलै फल़ै, धर हल़धर धिनकार।।8
पिंड निज पौरस धार पुनि, तण राखै निज टेक।
भूइ सारी म्हैं भाल़ियो, ओअन्नदाता एक।।9
तन निज रो नह सोच तिल, नह रखै घर नेह।
ओ तो जोगी अहरनिस, सींचै खेत स्नेह।।10
अड़ै अडर नित आंधियां, खड़ै अड़ीखंभ खेत।
करुणा दिल किरसाण रे, हिरदै हरजन हेत।।11
सूड़ साथ अड़सूड़ सज, धूड़ सांपड़ै धीर।
पीड़ सकल़ निज पांतरै, महि मीरां रो मीर।।12
साह देखिया देश में, सह अंतस संकुचाव।
मन करसो महराण मन, चित हित सबरो चाव।।13
समै कुसमै एक सम, ओ नीं हुवै अधीर।
किरसो लाटै कीरती, मन रो सदा अमीर।।14
आयै नै आदर सहित, रीझ पिलावै राब।
कुल़ री नित किरसो रखै, अंग मैणत सूं आब।।15
किण आगल़ कर ना मंडै, उर में नीं अभिमान।
दानी सिरहर देश रो, देवै सबनै दान।।16
अमर आस इक ईश सूं, शुद्धमन रखण सदीव।
अवरां पूरण आस ओ, जोखम रखणो जीव।।17
उत्तम खेती जग अखै, खरी कमाई खास।
भोम पुत्र किरसाण भण, हर मन करण हुलास।।18
रात दिवस पचतो रहै, लेस न आल़स लाय।
काढै घाटी कठण कर, खाटी मैणत खाय।।19
पतियारो इक परम रो, हरि शरम रख हाथ।
सदा करम सुखियारथा, देख करै दिन-रात।।20
धड़ै पड़ै नीं धरम रै, रंच रचै नीं राड़।
परहित रै कारण पचै, अपणो काज उजाड़।।21
श्वेद सींच सींचै रुधिर, छक दे बांठां छार।
महि किरसै नै मानजो, जीवतड़ो जूझार।।22
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”