श्रीकृष्ण-सुदामा प्रीत का गीत – दुर्गदानजी जी

ठहीं भींत सोवण तणी तटी रे ठकाणे,
कुटि रे ठकाणे महल कीना।।
मिटी रे आंगणे जड़ी सोनामणि,
दान कंत रूखमणी तणे दीना।।1।।
झांपली हती ओठे प्रोळ आवे झकी,
जिका न ओळखी विप्र जाहे।।
बाँह गहे सुदामो तखत बेसाड़ियो,
मलक रो धणी कियो पलक मांहे।।2।।
बांमणी हती सो करि लखमी तणे बराबर,
नाथ रा हाथ री छोळ नरखो।।
बाप हो बाप वासुदेव रा सहसबळ,
सुदामो कर लियो आप सरखो।।3।।
कृष्ण रिझयां थकां अमोलख कबाड़ो,
जेज लागी नहीं तरत जोड़यो।।
सुदामा तणो दाळद्र प्रभु सांभळे,
तांदळा जिमतां थको तोड़यो।।4।।
भींत पीळी अने सहु दशा भळहळे,
अजब कारीगरे गजब गोती।।
महल रे थम्भ प्रवाळ मंडिया,
माळ रे जरूखे जड़या मोती।।5।।
कठहड़े नंग हीरां तणी कोरणी,
जरूखे पन्ना पंख राव जड़िया।।
महल रे जरूखे जड़या क्रोड़ीक नंग,
अथाग महलां सरे नंग अड़िया।।6।।
चंदन वळीयां तणा पाट चिराविया,
थाट चंदन अने लहण दूणी।।
लेहण तणी भजन री लहर,
देहण हरा तणी पांच दूणी।।7।।
मदवंत यूं चोकड़े जड़या घूमे मतंग,
पाहेगां तुरी लाखेंग प्राजा।।
अंक वाळयो मने कृष्ण देतां अधक,
रंक विप्र हतो सो कियो राजा।।8।।
विछाया दलेसा राय आंगण वसे,
चाँदरणी तणा ओसाड़ छाजे।।
भेर कर माळ री होय अजब भल,
वेद हद नगारे ठौर वाजे।।9।।
नकीबां तणा ललकार हो ओहनस,
पुत्र परिवार सोहे हुकम पाळे।।
खवासी उभा सोहे समर ढोळे खड़ा,
भगत ठाकर कियो जगत भाळे।।10।।
वधावण आवे के त्रिया अलबेलियां,
बेलियां साथ जयकार बोले।।
फरत नत थैलियां रोक फरमाण री,
खांनगीदार कोठार खोले।।11।।
रसोड़े होय मनवसी रसोईयां,
वादळा जरी पोसाग वागो।।
तोड़यो दाळद्र भगत सुदामा तणो,
लुळे कवि दरगलो पाय लागो।।12।।
~~दुर्गदानजी कृत
टंकण – मीठा मीर डभाल