लखमण जी ना छन्दों – कवि आसाजी रोहड़िया “भादरेश”


।।कुळवन्त कळाधर काशपरा।।

।।दोहो।।
पाणंगी पाताल से, नवकळ नाग नरेश,
शेष मटी ने सरजियो, लाजाळो लखणेश,

।।छंद – रूप मुकुंद।।
लखणेश महाभड़ लाज रो लँगर, धन्य धरा धर शेष धणी,
अम भार अपार उतारिय आवण, मानव देह अमूल मणी,
तात दशरथ मात सुमित्रण, ठीक अजोधाय धाम ठवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।1

जग मात हरी जद जाणिये जाहर, नाहर सारिख त्राड नखे,
धख रोम पंजाम सरीखोय धारण, माण पियाम रोढाल मखे,
चख विज समी तद आग चमन्कीय, भोरंग कामठ खेंच भवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।2

रह राघव चिंत रु रोष रुदा मह, काँह उपाय करा कवळा,
अव जानकी हाय विसामण सायर, आह भरी ढही मु अवळा,
धवमे जळ सायर लंघ पराक्रम, चोप धर कुण वीर चवां,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।3

रन बीच किये विचरन रघुवर, मंण्डन जूथ मोराद मनंग,
हडमाण मिले जव पोयण हिरद, बन्धव दोय रो शीत बणंग,
भट सुग्रीव अंगद साथ भड़े, जाम नलंग निल मरद जवां,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।4

वळ देह वखम्भर रिंछाय वानर, भारथ खेलण आय भडंग,
वकराळ पहाड सा काळ डरावण, दोवट चोवट बांध दळँग,
उड़ लंक गयो हनमाण अजायब, पारख सीत परन्त पवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।5

झटगाड पहाडाय झाड़ झपेटण, पाहण लावण वीर पखा,
इति थाह विणो दळ सायर लँघीय, दैत ममीपण जाय दखा,
तव त्रिकुट भंजण वानर तांडव, देख धयो मुह नूर नवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।6

महिधार हुहं दश मेघ मण्डाणीय, त्यों वरताणिय तिर छटा,
धन थाट महि ज्यम दामन राणीय, खाग विंजाणिय दन्त खटा,
भट भट भटाभट आसुर भंजण, खाग रे अंग अंगार खवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।7

तव केई पगा कर केई शिरो धड, तंग महा सह टूक टूका,
भल भाद्रव मेघ शी धार भभक्कीय, श्रोणित सात दिहे न सुका,
भडवीर भूका कर डाकर बंधण, गाडण देह असुर गवा,
कुळवन्त कळाधर काशपरा भड, तोय समोवड कुण तवा,
जीय तोय समोवड कुण तवा।।8

~~कवि आसाजी रोहड़िया (भादरेश)

(आ छंद हजीपण अपूर्ण होय आई श्री पुरामा स्मृति प्रकाशन ना अंगत संग्रह माथी )

टाइप – कवि प्रवीण भा मधुडा राजकोट

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