लाली

🌺गुजराती के वरिष्ठ कवि आदरणीय संजु भाई वाल़ा की (दोहा ग़ज़ल) कविता का राजस्थानी भावानुवाद🌺
लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल।
नभ रे नेवां सू वहै, अनहद वसु पर व्हाल।।१
तल़ में रमती वीजल़ी, प्रगटेला अब हाल।
मूट्ठी में पकडे शिखा, खेंच’र काढूं खाल।।२
छानां छपनां डोकिया, घट सूं काढे व्याल।
ओल़ख जिण मुसकल घणी, ओल़खतां मन न्याल।।३
ऐ केडा दिन थें दिया, करूं कठे फरियाद।
घणा हलाडूं हाथ पण, बजै नहीं करताल।।४
नवलो नातो जाणियो, झीणै जल़ अनुबंध।
नाव सिकारा याद-तव, मन म्हारौ है दाल।।५
रूणझुण रणके खंजरी, ध्रांग धडुके ढोल।
उण दोन्यूं रे बीच रो, साव अनोखो ताल।।६
विगसंता वा नित नमे, निसदिन देय सुगंध।
साधो एहडा रूंख री, हो भल कडवी छाल।।७
~~नरपत दान आसिया “वैतालिक”