लीला पांणी नेस आवड मढ रो शबद चितराम

IMG-20150109-WA0011गीर रा जंगल रे माय एक जगह है जठे आवड जी महाराज रो मढ है। जंगल अर झाडी इतरी गाढी है के सूरज री किरणां धरती पर दीसै नी। म्है उण बात ने आवडजी महाराज री पुराणी मिथक कथा सूं प्रकृति रे सागै समन्वित करी। अगर किणी आदमी रे मन में इण बाबत री कोई शंका कुशंका वा तर्क हुवै तो वै लीलापाणीनेस जाय ने जंगल री झाडी देख सके जठै आज भी आवड जी महाराज प्रकृति री वनराजि री अनुपम लोवडी/भेळियो ओढर आज भी रोज सूरज नारायण ने साक्षात रोक रह्या है।

दोहौ इण तरह सूं है।
मन शंको करजो मती, खरी जगह लो खोज।
लीलापाणी नेस रवि, आवड रोके रोज॥

आप सबने लीलापाणीनेस नेस री प्राकृतिक छटा अर आवडजी महाराज रे मढ रे चितराम रा दूहा/सोरठा/तुंबेरा दोहा/बडा दोहा सादर।

॥लीलापांणी नेस आवड मढ रो चितराम॥

लीला पांणी नेस मढ,बैठ सदा बिरदाळ।
आवड मावड बाळ, रखवाळी निश दिन करै॥137
गाढा जंगल गीर में, डणकै जँह डाढाळ।
गढवी री गाढाळ,आई आवड ओपता॥138
लीलांपांणीनेस मढ,हरी भरी वनराइ।
बैठर आवड बाइ,खेलै प्रकृति खोळलै॥139
गहकत मोर चकोर घण,चातक आदि विहंग।
कुदै वळै कुरंग, आवड मढ रे आंगणै॥140
वड पींपळ अर खेजडी,सुंदर तरवर छाय।
मोद करै मन माय,ऊठै बिराजी आवडा॥141
जंगल मँह मंगल़ हुऔ, सकळ अमंगल दूर।
आवड अवनी नूर,बैठी लीला नेस मढ॥142
मृग शावक कूदै घणा,खूब रहै खरगोश।
मढ आगै निरदोस,आवड मावड आप रे॥143
वनराई वडला समी, गाढी वळे घटाळ।
छाय देख छतराळ,बैठी लीला नेस मढ॥144
मझ वन गहकै मोरिया, कोयल रो कलशोर।
जाणक चिरजा गूंजती,आवड री अठपोर॥145
धींगी धर पर गीर री,लीलां पांणी नेस।
मावड आवड मोद सूं,बैठी वठै हमेश॥146
बावळ, आवळ,बोरडी,खाखर ,खेजड, खेर।
थूं लीली नाघेर,बैठी विध विध आवडा॥147
पगदंडी घण पातळी,हरी भरी वनराइ।
सदा बणै शाकंभरी,विचरै आवड आइ॥148
वानर ,मृग ,चीतल वळै,चातक पिक चित धार।
आवड नें अणपार, जपै जिनावर वन तणां॥149
लीलां पांणी नेस मढ,लीलो लीलो घास।
आवड रो आवास, गाढा वन मँह गजब रो॥150
है हरियाळा डूंगरा, खळकै नदियां खाळ।
भली ठौड ने भाळ, वठै बिराजी आवडा॥151
जूठौ जग जंजाळ,सांची इक आवड सगत।
रहती नित रखवाळ,लीलां पांणी नेस री॥152
खळ खळ वाळा खळकता, नद नाळा अप्रमाण।
आवड रा अइठाण,लीलां पाणी नेसडे॥153
लीलां पाणी बोहळा, लीलां पाणी नेस।
चारै धेनु हमेश, आवड वन मँह आसिया॥154
डालामत्था डणकता,आवड रे आदेस।
लीलां पाणी नेस,गूंजै दिशा दिगंत घण॥155
पंचानन भारत तणां,वसता जठै विशेस।
गीर जंगल में हालतौ,आवड रो आदेस॥156
डणकै डाढाळा घणा,जगह जगह पर जेथ।
ऊपर बैठी आवडा,नवकुळ नाग समेत॥157
तमरां, भमरा गूंजता,करै विहग कलशोर।
गूंजै धाबळ वाळ रव,अहनिश आठ पहोर॥158
कल कल झरणां, वाहळा; खळ खळ करता शोर।
जाण नाम हिंगळाज रो,जपै आवडा जोर॥159
मन- पांखाळे पमँग चढ,लीलांपांणी नेस।
पूगर कविता पेश किय,आवड रे आदेश॥160
वेली वळगी वेल सूं,गाढी घण वनराइ।
ओपै आवड आइ,पहर प्रकृति रो भेळियो॥161
आवड वनराई तणो, सदा भेळियो ताण।
रोकै सूरज राण,लीला पांणी नेस नित॥162
मेघ – भेळियो; वन तणी, हरी कंचुकी धार।
सगत सहज शिणगार,आवड मावड ओपती॥163
सूरज ढँकियो तें सगत, महिरख कारण मात।
प्होर सवा परभात,वनराई धाबळ धरै॥164
गाढा जंगल गीर री, धाबळ कर वनराइ।
ओढै आवड आइ,जिण पर झाकळ हीरला॥165
गाढी वनराई गजब, फबै जेण घण फूल।
आभूखण अणमूल,ओपै आवड मात रे॥166
राम गीरि धूनै रहै,बाई सदा बिराज।
आवड वड अधिराज, कमळ कमळ पर देख तूं॥167
कुरजां चातक शुक बतक,होलां हंस हमेश।
सर जिण तट मढ आवडां,लीलै पांणी नेस॥168
मन शंको करजो मती,खरी जगह लो खोज।
लीलांपाणी नेस रवि,रोके आवड रोज॥169
गाढै वन नित गीर में,शीतल़ मंद समीर।
नित नित खळकत नीर,आवड मढ रे आंगणै॥170
झींगुर री झालर बजै,चंचरीक गुंजार।
अनहद नाद अपार,घंटारव नित मात मढ॥171
घमर बिलोवण घूमतां, दही दूध री छोळ।
सदा मात रे नेसडै, मांखण छाछ बहोळ॥172
महिखी चरती मोकळी,लीलैपाणी नेस।
उर धर हेत हमेश,घर घर आवड ब्राजिया॥173
नाग नेतरां नित करै,रखै रवाई मेर।
घररर सांझ सवेर,मही बिलोवत मावडी॥174
भैसडल्यां भमराळियां,डरै जेण डाढाळ।
उणने दोहत आवडा,भली भेळियावाळ॥175
मन सूं नरपत मावडी, हाजर रहै हमेस।
लीलापाणी नेस, दीजो दरसन आवडा॥176
~~वैतालिक

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