मा अर मातृभाषा
हे मातृभाषा!
तूं म्हारी रग -रग में रमगी है
जिण भांत –
म्हारी जामण रो ऊजल़ो दूध
विमल़ बुद्ध देवण वाल़ो
बो न्हाल़ म्हारी
नाड़ी -नाड़ी में
रम्योड़ो
भाल़ हे !बडभागण
तैं में अर म्हारी जामण में
फरक कांई है?
म्हैं आज तांई नीं कर सक्यो
क्यूं कै
मा री मिसरी सी झिड़कण
ऊपरली गाल़ां
आंख्यां री निरमल़ झाल़ां
आंतरा रो नैयास
हिंयै रो हिंवल़ास
मीठा ओल़भा
म्है दीठा है
सगल़ा थारै ई मारफत
इण कारण ई तो हूं
तैमें अर जामण में
अंतर नीं कर सक्यो
क्यूं कै
मा पालणै हिंडाती
लोरियां गाती
सुणाती बातां
अख्यातां री
भरती रजवट
घट -घट में
देती प्रगट में संदेशो
संकट सैणै रो
कैती सतवट बैणै रो
मिनखापण राखण रो
आंख्यां में लाज
अर परकाज काढण रो
देती ग्यान।
हक री खावण अर
बेहक रै बगावण धूड़
कूड़ सूं किनारो
करण री देती सीख
तीख राखण री जुगत
तैं ई सीखाई है
गुटकी रै साथै
जद ई तो हूं
तैंमें अर जामण में
फरक नीं कर सकूं
जद तांई तन में जीवण है
मन में जीवण री हूंस है म्हारै।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”