मा देवनगा

मा देवनगा रो जनम दुरसाजी आढा रे बेटे आढा भारमलजी री वंश परंपरा में आढा केसवजी रै घरै हुयो। आपरो ब्याव वैरसी करमसिंहोत रै साथै हुयो।
किंवदंती है कै आपरै वरदान सूं ई जोधपुर महाराजा सूरसिंहजी नै पुत्र प्राप्ति हुई जणै उणां, इणांनै बीजल़ियावास गांम भेट कियो। इण विषय में नैणसी परगनां री विगत में लिखे है – “सोझत था कोस ४ दिखण था जीवणो। दत राव श्री सूरजसिंहजी रो कं. गजसिंघजी रो। आसियो वेरा करमीसोयोत री बहू देवलिंगा आढी नुं संमत १६६४ रा माहवद ११।”
किंवदंती है कै जद देवनगा रै चमत्कारां री खबर महाराणा अमरसिंहजी कनै पूगी तो उवै देवनगा री पारखा करणनै पसूंद पधारिया। देवनगा राणाजी नै लवाजमै साथै भोजन करण नै निंमतिया। ऊभघड़ी घी री व्यवस्था नीं हुई तो देवनगा एक बावड़ी सूं दो कुड़ियां(घी रखने का बर्तन) पाणी री भरा’र मंगाई। पाणी नै घी में बदल़’र उणां मिठाई बणाई अर राणैजी नै चमत्कार दिखायो। जिणसूं प्रभावित हुय महाराणा अमरसिंहजी देवनगा नै ‘देवियां रो मेहरड़ो’ भेट कियो। कह्यो जावै कै पसूंद सूं देवियां रै मेहरड़ै तक एक सुरंग ही जिकी चमत्कार सूं बणी अर उवा उण गुफा में जाय’र पूरी हुवती जठै मा देवनगा आपरै माल़ा फेरण नै एक गुफा बणाई।
उण गुफा रै पाखती पहाड़ नै चीर’र भक्तजनां एक भव्य मढ(मंदिर) बणायो जठै दिनांक 19/8/19 नै म्हैं इण चमत्कारिक अर रमणीक पावन जागा रा दर्शन किया। उण बखत तो मा रै चरणां में भाव-सुमन ई अर्पित कर सकियो पण आज मा नै शब्द-सुमन अर्पित कर रह्यो हूं। मा देवनगा रै चमत्कार री केई किंवदंतियां चावी है पण आज फखत संक्षेप में ई आपरै नजर-
।।देवनगा री स्तुति।।
।।दूहा।।
देवनगा दुरसाहरी, केसव सुता कहाय।
आढां कुल़ धिन ऊपनी, वसुधा सुजस बधाय।।
ऊजल़ वरियो आसियो, वरधर वैरीसल़्ल।
पावन धरा पसूंद री, गढवाड़ां बह गल़्ल।।
उदयापुर अमराण नै, रीझी बिरवड़ रीत।
कटक्क तिरपत कूलड़ी, जोर कियो अघजीत।।
निरमल़ कीधो नीर रो, तमां बावड़ी तेल।
सँकल़ाई निजरां सही, खलक देखियो खेल।।
विध विध बातां बह विमल़, आढी री इल़ आज।
सांप्रत राजा सूर रो, कियो मनोरथ काज।।
गावै जस गोढांण सह, मांनै धरा मेवाड़।
मुरधर कीरत मोकल़ी, महियल़ जांणै माड़।।
।।छंद – गयामालती।।
मही मेदपाटं विदग मंडण,
धर पसूंदं तूं धणी।
तप त्याग दिनकर ध्यान तारां,
जपै माल़ा जोगणी।
वन बाहर विचरण बाघ वाटां,
गुढै नदियां गाजणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।1
पग दुरस रो घर करण पावन,
परगटी बण पोतरी।
सद सीर पाल़ं गाल़ शत्रु,
गहर भीरं गोतरी।
ऊजल़ा आढा किया अवनी,
वाह तनुजा तूं बणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।2
मुरधरापत जद सुणै महिमा,
ओट सूरो आवियो।
सरवणां साहल़ सांभ सगती,
बाल़ इक बगसावियो।
चख जोत में रख कसर चंडी,
रीझ साथै रूठणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।3
कमधज्ज अम्मर रखण कीरत,
भणी भगती भाव सूं।
इल़ा बीजल़ियावास उणदिन,
चरण अरपी चाव सूं।
आ खरी व्रन में बहै ख्याती,
सकव कानां घण सुणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।4
पह अमर नै वड दियो परचो,
बीसहथ सम बिरवड़ा।
निज नीर सूं कर घिरत निरमल़,
कियो जीमण भर कड़ा।
पतियाय ग्यो चित्तौड़पत पल,
जांच बल़ कल़ जामणी
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।5
उण बखत धर अमरेस आपी,
‘देवियां रो महरड़ो’।
महि जपण माल़ा मात महियल़,
नमो थपियो नेहड़ो।
जिथ रमै नवलख जोड़ झूल़र,
भैरवा जस जिथ भणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।6
सद संत री नित हो सहायक,
अणद निसदिन आपवै।
तूं कूड़ क्रतघण उपर कड़कै,
कड़ा़ं जड़ जिण कापवै।
फट न्याय कर खत करै फरगत,
कसर बातां ना कणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।7
हरियाल़ चहुंदिस फबै हरदिस,
भाखरं मनभाविया।
ज्यां बीच कँदरा बाहर झँगर,
थांन थिर उथ थाविया।
पड़ चरण चारण पढै प्रभता,
धार गिरधर पख धणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।8
।।छप्पय।।
दयाल़ी देवनगा, भुजां थारै व्रन भांमी।
सांमण गिर शिक्खरां, नेस थपियो थिर नांमी।
मुरधर नै मेवाड़, सको जांणै सँकल़ाई।
गाढ धरा गोढांण, माढ मांनै महमाई।
जांगल़ में जस गिरधर जपै, उकत समापै ईसरी।
अबेढी बार पड़ियां अवस, ताल़ सजै तूं तीसरी।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”