मां करणी जी रो गीत – कवि खेतसी बारट मथाणिया कृत

।।दोहा।।
विमल देह सिंघ वाहिनी ओपै कळा अखण्ड।
बड़ां बड़ी चहुं विमला मही पाताळ नव खण्ड।।
।।गीत – प्रहास साणौर।।
विमल देह धारीयां सगत जांगल धर विराजै,
थांन देसांण श्री हाथ थाया।
उठै कव भेजियो राज करवा अरज,
जोधपुर पधारो जोगमाया।।१।।
विनती सुणै रथ जुपायो बेलीयां,
सहस फण सेलियां जदन सारा।
तेलीयां वीर सुत वाजता टांमका,
लाख नव फैलीया व्यूह लारा।।२।।
घूघरां तणा झणणाट हुव घमाघम,
वेण रा तंत्र तणणाट वाजै।
नकीबां बोल हणणाट हुय नोबतां,
गयण धर शब्द गणणाट गाजै।।३।।
चिंतामण लधाया जांण दरशण चवूं,
खलकिता दधाया दैत खाया।
राव पग मंडाकर वधाया सुरांणी,
अधाया भाव रा आप आया।।४।।
तापीयो नाथ चिड़िया पवे ठेण तद,
समूरथ मापीयो नकू सोधै।
अचळ मेहा सधु हुकम तद आपियो,
जदी गढ़ थापीयो राव जोधै।।५।।
अवध पनरोतरे संवत् पनरे इला,
बाल चढ़णोत रै वेद वरणी।
गेह बड़ भाग दुनिया तणे गोत रै,
कला साजोत रै रूप करणी।।६
तेंही दध डूबतां जिहांजा तारीया,
धारीया बिलंद व्रत तुरंत धाई।
पूत रिड़माल रै भाग पधारीया,
अनेकां सारीया काज आई।।७।।
हरो अभिलाख कव अमर री हमरके,
जोगणी विसारो मती जाता।
कदम दे दास रो नेस पावन करो,
मूझ सिर धरो धणियाप माता।।८।।
मथाण्यो भाग धिन किरपा फरमावियो,
तोर वधावियो सुकव ताई।
सांभळे विनती धावीया सुरांणी,
बैठ रथ आवीया उठै बाई।।९।।
आखियो जिति घर ओरण थायो इला,
सुभोजन चाखीयो थाळ साथै।
ताम्रपत्र ढ़ाकीयो चाखड़ां थांन तळ,
हतेरण राखीयो आप हाथै।।१०।।
गड़ापड़ बीगड़ै नहीं हरगिज गहूं,
चड़ापड़ न पड़ै रोग चाळो।
न लगे धड़ाधड़ लाय महमद नगर,
भड़ाभड़ भवानी बोल भाळो।।११।।
गांठ मकतूल कर सियावर बांण गिर,
मेर ज्यूं अरोपा कीध माई।
भांण रै ऊगमण थया वृज लोक भल,
अमर नों दिया ए वचन आई।।१२।।
वसु पूगल पती रोकीयो बावलां,
दिये लय चावला त्रास देखे।
आप जद पावला दीघ उतावला,
सायलां करी जद राव शेखै।।१३।।
कृपा अभिलाखियो जेथ भिड़ियो कटक,
तुरंत कर दाखीयो जोर तारां।
समर जीताड़ीयो सूर चंद साखियो,
बीकपुर राखीयो कई बारां।।१४।।
कानीयो त्रिसूलां मार खल कालीयो,
कमर पड़तालीयो जड़ां काढ़ी।
पोसीयो बीक रिड़माल रै पालीयो,
दैत परजालीयो श्वेत दाढ़ी।।१५।।
त्रिहूं जग मिटावण विघ्न तन तापरा,
खपावण पाप रा मूल खोटा।।।
अनेकां परवाड़ा गिणे कुण आपरा,
मात धणियाप रा विरद मोटा।।१६।।
मांण दईतां घणा राकसां मारणी,
भखे पळ धारणी रगत भेळो।
तें कियोो सबोझल मात जग तारणी,
तारणी चारणा वरण चेलो।।१७।।
शोक री दशा नित मिटावण सेवकों,
गुण घणा थोक रा ब्रवण गाडा।
चाड़ तिह लोक री निशुंभ शुंभ बाघ चढ़,
डोकरी गहे खल विकट डाढ़ां।।१८।।
इळा नभ भाळ पाताल खप उपावण,
कंपावण काल विकराल केवी।
सुकर प्रतिपाल किरमाल जग साहणी,
दीपे दाढ़ाल घंटियाल देवी।।१९।।
भांण उदौत रै समै पळ भोगणी,
थोगणी मोत रै समद थागे।।
असुर अरणोत रै मेख आरोगणी,
जोगणी जौत रै रूप जागे।।२०।।
लियां नवलाख थण्ड सुचारण लारीया,
खड़ग ऊभारीया खळां खावै।
वीदगां विकट दुःख पड़ै जिण बारीयां,
धाबली धारीयां तुरंत धावै।।२१।।
सांगली मात धरणा पण सांभळै,
उठै म्रत नांगली भांण ऊगै।।।
आगळी उरध कीधां बड़ी एक मां,
पांगली बार मां तुरत पूगै।।२२।।
ओण गाजै तिकां दाहवै सिघ्र उर,
राह शुद्ध बुवाओ सुरां राया।
अमर री आराधी तिकां धणियाप अब,
छिज्यूं ही रखावो छत्र छाया।।२३।।
शाह रै उग्राहण नाम आया सुणे,
तरीन्द्र जिम वाहरै दलद्र तोड़ै।।।
मुणे कव खेतसी मदद तण माहरै,
जनेता ताहरे नको जोड़ै।।२४।।
चारणा वरण पर कृपा नित चोवड़ी,
तोवड़ी नको मां सूल तोलै।
दीपे हव सांसणां मरजादां दोवड़ी,
एक इक लोवड़ी तणै ओलै।।२५।।
~~कवि खेतसी बारट मथाणिया
प्रेषित: हिंगलाजदान रतनूं “दीनू” चौहटन