माँ करणी सूं विनती – मनोज चारण (गाडण) “कुमार”
।।छंद रोमकंद।।
इण धाम धरा पर नाम रहै, कर मात तुहीं किरपा हमपे।
करणी शरणै अब तोर पङे, धर हाथ तिहारो माँ सर पे।
कळू-काळ दकाळ करै फिरतो, माँ साय सहाय तूं ही करती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।१।
मन मांहि रटूं हर बार रटूं, तव नांम रटूं पल ना पलटूं।
हर सांस लियै बस तोहि रटूं, बिन तोय नहीं एक सांस गिटूं।
इण जीवण मैं हर ठौर तुहीं, बस तोर भरोस फिरै जगती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।२।
बळ तोर फिरूं जग मांहि सदा, डग दोय चलूं जब तूं कहती।
तन मांहि रहै बळ ताकत तूं इक तोर भरोस रहै जगती।
जगती जब दूर किया करती, तब तूं हि बचाव करै सगती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।३।
हम हैं मति हीण सुणो सगती, बुध रो लवलेश नहीं हमपै।
इक तोर भरोस फिरां जग मैं, बिसवास करां तुम ही तुमपै।
अब देय हमें सुमती सगरी, शरणै मह आय करां भगती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।४।
बळ देय अभै कर माँ सगती, घट मांहि कहो किम ना बसती।
तव बाळकिया अरदास करै, किम देर लगै कह माँ सगती।
मन मांहि भरो तुम भाव घणा, मनभावण पूर तुहीं करती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।५।
जग जीवण खोट घणूं तकङो, पकङो जकङो तुम ही इसको।
तुम ही तगङो अघ पापन को, हम जाय कहां कहते किसको।
धरणी पर पाप बढ़े जबरे, अब आय पुकार करै धरती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।६।
घनघोर मचै करळाट सुणो, सरणाट हुवै अब पापन को।
गरणाट चढ़ै अब पाप घणूं, विष व्याप रहै जणु सांपण को।
घुटती घणघोर घटा दिखती, इण मांह उजास तुहीं करती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।७।
धरणी धन धाम दिरा करणी, अर धेन दिराय करूं भगती।
तव बाळक याद करै नित रो, अब सीर खजान दिरा सगती।
अणपार हुया सब राह अभी, अब पार लगाय तुहीं सगती।
करणी करणी बस नाम रटूं, तरणी भव पार तुहीं करती।८।
~~मनोज चारण (गाडण) “कुमार”