मधुर सुर भासणी मान माता

।।गीत प्रहास साणोर।।
उगत दे भारती ऊजल़ै आखरां अंब,
रचण छंद भगत नैं मात रीझै।
जुगत झट उपावो साहित गुण जाणवा
कवी रो सगत ओ काज कीजै।।1
ऊजल़ै वसन चढ हंस हद ऊजल़ै
वरदधर ऊजल़ी देय वांणी।
आपरी कृपा सूं सैण मन ऊजल़ै,
प्रसन्न चित देखियां वीणपांणी।।2
गद्य री माल़ नित गूंथलूं गुणांनिध,
पद्य रा चढावूं पुसप पावां।
ऐहड़ी खामची समापै ईसरी,
आपरै चरण री ओट आवूं।।3
सबद दे शारदा ऐहड़ा सरसता,
भावदे वरसता नेह भाल़ो।
हितू नित मिल़ै मन मूझ सूं हरसता,
तुंही अरि दरसता करै टाल़ो।।4
डींगल़ां समझ गुण समापो दासवां,
अरथ रै भेद रो मरम आपो।
देय जुगबोध री जांण निज डावड़ां,
कुबद्ध नैं मावड़ा आप कापो।।5
ग्यान इतियास रो गहर दे गुणी नैं,
जिकी वरतमान री बात जांणूं।
समझलूं शास्त्र धरम रो सार सह,
महर कर रीझ री मौज मांणूं।।6
कृपानिध सांभल़ै अरज कमल़ासणी
दोष छंद नासणी करूं दाता।
वंदवै गीधियो कवी मुखवासणी
मधुर सुर भासणी मान माता।।7
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी