महाकवि का आत्म विश्वास
कविया करणी दान जी एक बार शाहपुरा के शासक उम्मेद सिह द्वितीय से मिलने गए।
रास्ते मे एक किसान से पूछा, “उम्मेद सिंह जी यही बिराज रहे है क्या?”
तो किसान ने अभिमान के साथ कहा आप कुण हो महाराजा सा ने नाम लेयने बतलावा वाला? अन्दाता सुण लेई तो घाणी मे पिलाय देवेला।
तो महाकवि करणी दान जी को मजाक सूझी। उन्होने कहा कि बा सा अगर म्हू थारे अन्दाता ने मुण्डा माथे ही उम्मेदियो केय दूं तो ?
करसा बोला अगर आप महाराजा ने उम्मेदियो केय दो तो म्हारा खेत कुआ और बलद सब आपरा।
करणी दान जी बोले तो चालो म्हारे साथे। दोनो शाहपुरा दरबार मे पहूंचे तो कविया जी ने जाते ही एक दोहा कहा। यहां यह बताना भी प्रासंगिक है कि कुछ दिनो पुर्व ही शाहपुरा की सेना ने भीषण युद्ध मे मराठो को सफ्फरा नदी के किनारे पराजित कर दिया था।
काव्य चमत्कार, चारणोचित मजाक आत्मविश्वास से पुर्ण निडरता का दोहा देखिए
समन्दर पूछे सफ्फरा, आज रतम्बर क्यूंह?
भारत तणे “उम्मेदिये” खाग झकोळी ज्यूंह ।।
समुद्र ने सफ्फरा से पूछा आज लाल रंग में क्यों है?
सफ्फरा ने जवाब दिया भारत पुत्र एक उम्मेदिया है (महाराजा उम्मीद सिंह जी के पिताजी का नाम भारत सिंह जी था) उसने अपनी तलवार को धोया (झकोळा) है।
धन्य है काव्य और कवि।