महापुरूष देवाजी महियारिया

बुन्दी राज्य के देवा महियारिया एक कुशल राजनीतिज्ञ, वीर, धीर, व विद्यानुरागी पण्डित होने के कारण बुन्दी के राव शत्रुशाल हाडा के परम मित्र व सलाहकार सहयोगी थे। शत्रुसाल उनसे अत्यन्त प्रभावित थे तथा उनकी योग्यता को पुरस्कृत करना चाहते थे। परन्तु देवा महियारिया धन के नहीं सनातन धर्म के मित्र थे। फिर भी शत्रुसाल हाडा के विशेष निवेदन पर लाख पसाव लेना स्वीकार किया व तत्काल अपनी कीर्ति के रखवाले मोतीसर व रावळों को लाख पसाव बांट दिया। राव शत्रुसाल ने इसकी पांच बार पुनरावृति की परन्तु उन्होंने पांचो बार सम्पदा रावळों व मोतीसरों मे बांट दी। देवा ने नारायण मोतीसर को पांच लाख पसाव भेंट किया जिसका दोहा अवलोकनार्थ है —
पांच लाख पसाव दे, सांसण गज सिणगार ।
नेगी कीयो नराण ने, देवै जग दातार।।
शत्रुसाल इस दातारी पर बहुत कायल हुए। वे सदैव अपने हाथों से देवाजी को अफीम पिलाते थे। वृद्धावस्था के कारण देवाजी को कम दिखाई देता था, एक बार जब दरबार विसर्जित हुआ तो उन्हें जूतियां दिखाई नहीं दी और पास खड़े किसी व्यक्ति से पूछा तो राव शत्रुसालजी नें स्वयं अपने हाथों से जूतियां उठा कर इनके पैरों आगे रखी। तब गदगद होते हुए कवि ने कहा था-
पाणां ग्रह पैजार, सुकव अगै धरतां सता,
हिक-हिक वार हजार, पह सूमां माथै पड़ी।।
अर्थात हे शत्रुसाल! तेरी उदारता वरेण्य है, जिसका यह उदाहरण है कि तूने स्वयं अपने हाथों से कवि की जूतियां उठाकर कवि के आगे रखी। ये जुतियां उन सूमो(कंजूसों) के सिर पर मानो हजार बार पड़ी है।