महर कर मामड़जा माई – कविवर श्री शुभकरण जी देवल
अरज म्हारी साँभल़जो आई, महर कर मामड़जा माई।टेर।
जिण पुल़ बीच जवन जुलमाँ सूँ अघ बधियो अणपार।
महि अघ हरण सदन मामड़ रै आवड़ लिय अवतार।
सगत नित भगताँ सुखदाई।1।
पतंग तणो परकास पल़क में लोवड़ ओट लुकाय।
विषधर तणो हर्यो विष बाई झट दिय भ्रात जिवाय।
सकल जग जाणी सकल़ाई।2।
कैद हूँत निज तात काढ किय अधिप तणो अवमाण।
सिन्ध छोड़ कीधो सुर राणी पूरब दिस प्रस्थाण।
तात री रिच्छा कै तांई।3।
तात भ्रात मग चलता थाक्या जोगण वा गति जाण।
बड़ला परै कुटुम्ब संग बैठत बल़े भयो विमाण।
बहतो बड़ जोजन त्रय जाई।4।
भूपत भरम हरण भव भामा महिष बाखल़ो मार।
एक चल़ू में उदर हाकड़ो उदधि लियो उतार।
छिति पर कीरति वा छाई।5।
माड धरा बिच आय मारियो असुर तेमड़ो आप।
दूर कियो भू भार दयालू तू हरणी त्रय ताप।
जोगणी जय हो जगराई।6।
सादी करण करी जद सठता सो कुल़ दियो नसाय।
सम्मा नै दिय राज सिंध रो गिरजा गिरवर राय।
विरद आसा पूरण बाई।7।
सगती माँन करी जो सेवा वां पायो वरदान।
भाटी वंस माढ धर भोगी जाणत सकल जहान।
आज लग बाताँ चलि आई।8।
दीखै नहीं जगत में दूजो आप बिना आधार।
बाल़ विलाप अबै तो बाई धणियाणी चित धार।
बिरद मत बीसरजो बाई।9।
है सुभकरण सरण में हरदम मेटो दुख मंहमाय।
चिरजा भेट करी चरणां में देवी करजो दाय।
गहर कीरति तोरी गाई।10।
महर कर मामड़जा माई।
~~कविवर श्री शुभकरण जी देवल कृत
(श्री भूदेव आढा द्वारा प्रेषित)