मजदूर दिवस माथै मजदूर भायां नैं समर्पित

मजदूरां घर सदा दीवाल़ी
मजदूरां घर सदा दीवाल़ी।
मूंडै मुल़क सदा मतवाल़ी।।
लूखा टुक्कड़ कांदो ओलण
टंक कूट नैं कितरी टाल़ी।।
ताजो लावण ताजो पोवण
सोवै आंगण नींद घोराल़ी।।
अपणायत आगार अनोखा
झोखा दे मनवार सचाल़ी।।
ईढ ईसको आगा राखै
जीमै सीरी एकण थाल़ी।।
दिल मोटो दरियाव सरीखो
भाव भायां सा अंतस भाल़ी।।
महल माल़िया चिण चिण देवै
खुद रै छावै छान निराल़ी।।
छल़ छिदरां सूं कोसां आगो
बल़ कल़ जाणै जुगत जोराल़ी।।
बाय पसीनो रतन उगावै
वतन बधावै बात बडाल़ी।।
जात पांत सूं नाही जकड़्यो
पाल़ै नीत सदा सतवाल़ी।।
मजदूरण
मजूरण रै उणियारै में
प्रतख दीखतो
उण विधाता रो रूप
जिकै इण जग नैं रचियो
पण
अरपण कीधो बीजां नैं।
अरे! इणी विध
इण भुजां रै आपाण
कई घड़िया
सतखंडिया
आभै सूं अड़िया
बे महल
जिणां रै सिरजण में
समरपण कीधो
इण जीवण
आपरो जोबन सारो
विसरी ममता मिसरी सी
छिटकाया हांचल़ रा फूल
उजाड़्यो घर
बिगाड़्यो कारज
फगत इणां री नीव
सीसै री करण नैं!
पण !
ऐ सदियां सूं नुगरा
साथी स्वारथ रा
कद पाल़ै हा
प्रीत पूरबल़ी
जद आ
सांझ सवार रै जांदां सूं आंती
मार्योड़ी मांदगी रै हाथां
लड़खड़ाती बूढापै री फेट सूं
भूख सूं बाथेड़ा करती
डाण भरती
आई भमती
इणां रै बारणै
तो फगत
इणां रो इण खातर
एक ई संदेशो हो
ओ घर छोड
बडै घर जा!