मज़दूरां री पीड़

मज़दूरां री पीड़ पिछाणै
इसड़ी आँख बणी ही कोनी
इण पीड़ा नै तोल दिखाद्यै
इसड़ी ताक तणी ही कोनी
मज़दूरां री आ मजबूरी
हर मजबूरी सूं मोटी है
म्हांरै चीज असंभव जग में,
वा राम नहीं, बस रोटी है
अखबारां रै आलेखां में,
आ मजबूरी छाई देखो
कवियां री कलमां भी इणनै,
गीतां गजलां गाई देखो
जनवादी कंठां सूं इणनै
आरत सुर आलापी लोगां
पुरस्कार पावण रै सीगै,
पोथ्यां माँहीं छापी लोगां।
भाँत भाँत रा प्रश्न उठाया,
देय दलीलां भाँत भाँत री
करी नुमाइश म्हारी लोगां,
नड़ी नड़ी अर आँत आँत री
सगळां सारू अन्न उपावै,
उणरै घर में तोड़ो क्यूँ?
जको जगत रा फोड़ा मेटै,
उणरै हरदम फोड़ो क्यूँ?
प्रश्नां सूं कद पेट भरीजै
कद म्हारै सौराई आवै
रोजगार री बात बण्यां ई
आँ होठां सरसाई आवै
एक मई री देय बधाई
घावां लूण लगाओ क्यूँ?
सांसां री धुकती सिगड़ी नै,
दया-हवा सिलगाओ क्यूँ?
म्हे थांरी इज्जत रा रक्षक
मैणत कर कर महल बणावां
म्हे ई चुनड़ी और पोमचां
रंग रंगीला रँग चढ़ावां
म्हे ई ढोल घुरावां थांरै
शहनाई पर सरगम ल्यावाँ
घूमर घाल दिखावां थांनै
राग रागण्यां गाय सुणावां
छोटै सूं मोटो हर टाणो
सदा सुधारां साचै मन सूं
मालक म्हारा खरी मजूरी
दे दीजे बस आछै मन सूं
म्हां खुद्दारी री खरी कमाई
खावणियां नैं जीवण दो
रहम-अमी नैं अळगो राखो
बस पेय हलाहल पीवण दो
फाट्योड़ै कपड़ां री फोटू
खींचण सूं अब करो सबूरी
आथमतै रवि रा अनुराग्यां!
मत बेचो म्हारी मजबूरी।
~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’
एक मजदूर की बेबसी का बड़ा ही जीवंत और मर्म स्पर्शी वर्णन किया है आपने डॉक्टर साहब।बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं