मनहर नाचै मोर

वादल़िया वल़िया थल़ी, सधरा घुरै सजोर।
छटा अनोखी निरख छिब, मधरा बोलै मोर।।1
आयो सुरपत उमँगियो, काल़ी कांठल़ कोर।
ढब सज लाडो ढेल रो, मनभर नाचै मोर।।2
भल उमड़्यो अध भादवै, तण तण वासव तोर।
जबर सवागत जेणरी, मनसुध सजियो मोर।।3
छुरंगाल़ै किनो छत्र, गहर सुणी नभ घोर।
मंगल़ थल़ में भाल़ मन, महियल़ नाचै मोर।।4
तण तण दहै टहूकड़ा, जोबन छकियो जोर।
रल़ी पूरबा रीझियो, मनहर नाचै मोर।।5
धवल़ा भीज्या धोरिया, छता निहार्या छोर।
विमल़ विछायत वेकल़ू, महि जिण रीझ्यो मोर।।6
उतराधी दिस उमड़ियो, रसा मिटावण रोर।
प्रीत पुरंदर परघल़ी, मन लख हरख्यो मोर।।7
धरहर आभै धावड़्यो, घरहर कीनी घोर।
हर निज पूरण हरखतो, मगरै नाचै मोर।।8
वासर मांही वादल़ा, दरस रातरो दोर।
निरख हरस धर नाचिया, मनां सरस नैं मोर।।9
धव, धण रीझ्यो ढेलड़ी, सुण नभ वादल़ सोर।
छांह लैण निज छत्र री, मन छक नाचै मोर।।10
सरवरिया भरिया सरस, तिरिया मिरिया तोर।
हरिया मगरा हेरिया, मन करिया नच मोर।।
दहै कड़ाक दामणी, जोबन छाकी जोर।
प्रीत पल़ाका पेखनै, मन सजियो नच मोर।।12
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”