मन मान्यै री बात

मन री सत्ता घणी मजबूत है। मन री गति अपार। बिना सवारी मन तीनूं लोकां री जात्रा करतो आनंद री ल्हरां लेवै। मन री सत्ता सूं संत अर फकीर ई घबरावै। ओ ई कारण है कै कबीर जियांकलै फक्कड आदमी नैं ई मन नैं नियंत्रण में राखण सारू कलम चलावणी पड़ी। कबीर री रचनावां मांय ‘मन को अंग’ नाम सूं मोकळी साखी लिखीजी है।
मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर।
मन के मते न चालिए, पलक पलक मन और।।
कबीर आद मोकळा संतां री सीख सुण्यां पछै ई मानखो तो मन री सत्ता नैं ई मानै अर मनगत मोजां माणै।
आदमी कितरो ई घाटो-मुनाफो सहण करल्यै पण मन नैं मारण री बात सहण नीं कर सकै। मन मानै बा बात हुज्यावै तो भलां ई कित्तो ई घाटो हुवो, चूं ई नीं करै। अबार री ई बात ल्यो। बैंकां, डाकघरां अर एटीएमां री कतारां मांय खड़्यां, दुख पावता, दाबीचता-चींथीजता लोगां मांय सूं दुबळै सूं दुबळै नैं पूछै तो वो आपरो दुख भूल’र देस रै हित में माननीय प्रधानमंत्रीजी रै निर्णय नैं ओपतो बतावै। इतरा दिनां बाद ई जनता रै सब्र रो बांध नीं टूटण रो कारण ओ ई है कै मोदीजी री घोषणा जनता रै मनजची घोषणा है। इण कारण भलां ई मरणो-खपणो पड़ै पण जनता मोदीजी रै साथै रैवणी चावै।
प्रकृति मांय इयांकला अनेक उदाहरण है, जठै मिनख नैं अचरज हुवै पण बै काम जुगां जुगां सूं अनवरत चाल रिया है। मन मान्यै री बात माथै प्रकृति रा कई जीव-जिनावरां अर पेड़-पौधां री बात करतां अबार री हालत सूं परेशान अर अचंभित बुद्धिजीवियां नैं कैवणी चावूं कै –
1- भंवरो एक छोटो सो जीव है। फूलां रै रस रो ग्राहक। मोटो रसियो। एक फूल सूं दूजै फूल पर मकरंद चूसतो घूमै। भंवरो नैं प्रकृति सूं इयांकली चोंच मिली है कै बो करड़ै काठ में आपरी चूंच सूं कोचरो कर’र आपरै रैवण सारू कोटर बणावै। पण वो ई भंवरो कई बार छिपतै दिन कमल रै फूल रो रसपान करतो हुवै अर अठीनै सूरज छिपज्यावै। सूरज रै छिपतां ई कमल रो पुष्प बंद हुज्यावै। रसपान करतो भंवरो उण फूल में नजरबंद यानी जेळ हुज्यावै। इण कमल रै फूल में बंद ओ भंवरो रातभर उण फूल में बंद रैवै अर सूरज निकळ्यां फूल पाछो खिलै जद बारै निकळै। भंवरै नैं उणरा भायला पूछै कै भाई तूं करड़ै काठ में बेजका काढण री ताकत राखै फेर ईं कंवळै कमल में रातभर जेळ क्यूं सहण करी तो भंवरो कवै.. ‘‘मन मान्यै री बात’’।
२- आग अर पतंगै री बात आपां सब जाणां। जियां ई आग जगै, पतंगां च्यारां कानीं सूं उड-उड आग मांय पड़णां सरू हुवै। आग आपरी लौ नैं हिलावती पतंगां नैं मनां करै पण पतंगा तो बळ’र ही मानै। अब कुण समझावै कै पतंगै रो फायदो जींवतो रैवण में है का आग में पड़’र बळण मांय।
३- जंगळ मांय सिकारियां सूं डरतो हिरणियो बापड़ो आपरी ज्यान बचावण सारू भाजै। आपरी पूरी ताकत लगा’र हिरण सिकारी सूं बचणो चावै पण जियां ई सिकारी हैकारो (एक विशेष प्रकार री ध्वनि) करै तो हिरणियो उण हैकारै री नाद सूं नेह रै बस तुरंत बठै ई रुकै अर पाछो मुड़’र सिकारी रै सामो जोवै। सिकारी छळ कर’र उणरी छाती मांय तीर का गोळी लगावै अर उणरा प्राण पंखेरू उड़ जाय पण हिरणियो आपरै नाद-प्रेम नैं कद छोडै। ठा नीं वो घाटै में है का मुनाफै में पण वो सदियां सूं इयां करतो आयो है।
४- चकोर अेक पंछी है, जिको चांद सूं प्यार करै। वो धरती माथै जद आग रा बळबळता खी’रा यानी अंगारा देखै तो उणनैं लागै कै अै चांद मांय सूं टूट’र पड़्योड़ा चांद रा टुकड़ा है इण कारण वो चकोर बां अंगारां नैं आपरी चौंच सूं उठा’र चाबै। इणसूं उणरी चौंच बळै। उण चकोर रै सामी कोई जे अेक थाळी मांय कपूर अर अेक मांय अंगारा मै’लै तो वो भलांई कपूर कित्तो ई ठंडो अर सुगंधित हुवो पण चकोर तो अंगारां में ई मुंह घालै, कपूर रै सामै ई नीं देखै।
५ इयां ई शेर कित्तो ई भूखो हुवो, घास अर कपास कोनी खावै। हंस भलांई भूख सूं बिलखतो अर प्राण निकळता हुवो तो ई मोती ई चुगै, नीं तो लांघो सही।
सदियां सूं इयांकला अनेक उपक्रम आपरी गति सूं चालै। हर बात नैं हाण-लाभ, घाटै-मुनाफै, फायदै-कुफायदै रै पालड़ां में तोलणियां लोग आं बातां नैं कद समझ सकै। प्रकृति रोजीनां आपरै क्रिया-व्यापारां सूं आपांनैं सिखावै। मन जिण चीज नैं मानै उण सारू तर्क-वितर्क स्वीकार कोनी करै। इण कारण मन मानै उण बात में तर्क-वितर्क अर घाटै-मुनाफे री ओळी नीं घालणी चाईजै।
~~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”