मननें तुझको पा लिया
🌺मननें तुझको पा लिया🌺
जब तू धावा बोलती, पलकों की जागीर।
तब तब मैंने थामली, हाथ-कलम-शमसीर॥1
जब तू मुझ पर पीर का, डाले सखी अबीर।
तब मन बनता राधिका,-कान्हा ,रांझा -हीर॥2
जब तू मुझपर नेह की,करे सखी बौछार।
तब उर गोमुख से बही,कल-कल कविता-धार॥3
जब तू मुझ पर खीज के, गरजत बन घन घोर।
तब कविता- चपला- चमक, आलोकित हर छौर॥4
दुःख की भर दी डायरी, सुख का सूना पत्र।
कलम -सखी! ढूंढा तुझै,यत्र तत्र सर्वत्र॥5
मुझमैं तुम्हारी चाह की,जलती रहती दाह।
वाह ! वाह की चाह ना, कर दे रहम निगाह॥6
करके आह कराहता, औ’ तू कहती वाह!
चाह नहीं चिंता नहीं, बिलकुल बेपरवाह॥7
मन ने तुझको पा लिया, तन से होकर दूर।
सखी! कहो कैसे कहूं, है खट्टै अंगूर॥8
~~वैतालिक