मंडी रास दासोड़ी मढ में

कविवर मेहाजी वीठू रै रोमकंद छंद री आ कड़ी घणी चावी है- ‘दुति गात प्रकासत रात चवद्दस,रंग करन्नल मात रमै।।’ भळै ई मोकळै कवियां रा इणगत रा छंद अर गीत घणा चावा है जिणां में करनीजी री चवदस री रास रो सरस वरणाव होयो है। आज करनीजी रै मढ दासोड़ी री सांझ री जोत रा दरसण करती वगत एक ‘जांगड़ो गीत’ कैयो जिको करनी भगतां रै निजर कर रैयो हूं-
।।गीत – जांगड़ो।।
चवदस आसाढ चांदणी चंडी,
खळ खंडी धर खागां।
मंडी रास दासुड़ी मढ में,
रीझ अखंडी रागां।।1
कीधो उछब आज करनादे,
तद चौरासी तैड़ी।
सरसज मनां साबळी सगळी,
नाहर चढियां नैड़ी।।2
नवलख सरब मान नैं निमतो,
उतर अकासां आई।
थिर हद रास राचणी थळवट,
मढ दासोड़ी माई।।3
चंगा चीर लोहड़ी लाखी,
अंग आभूखण ओपै।
मेळा करण पूगी मनमेळू,
झूलरियां में जोपै।।4
झळहल जोत दिपै जग जणणी,
सुणणी सेवग सादां।
वणणी भीर आद सूं वरणी
आयल तरणी यादां।।5
छंदां गीत आणंदी छौळां,
झणण झालर झणकारा।
चितधर भाव चाव चिरजावां,
निरमळ घुरै नगारा।।6
बूढी अवर रिळैमिळ बाळी,
नत ताळी दे नाचै।
माणण मौज मिळै मतवाळी,
आज दिहाड़ै आछै।।7
जँगळ धरा जिकी जग जाहर,
मंगल करणी माता।
दंगळ चढी दैतड़ा दळणी,
रीस कियां चख राता।।8
कीधा दरस गीधियै करनी,
दुख हरणी तूं देवी।
सेवग सदा सहायक सेवी,
कर पासै झट केवी।।9
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”