मंत्री नै कुण मूंडियो

।।हरिशंकर परसाई के मुंडन व्यंग्य का काव्यानुवाद।।

कहानी के मुताबिक एक मंत्री संसद में पूरे बाल कटाकर आ जाता है, उस पर पक्ष-प्रतिपक्ष में किस तरह से बहस होती है। जरूर पढ़िए।

संसद रै इक सदन री,बात कहूं बतळाय।
मंत्री मूंड मुंडायनैं,आसण बैठो आय।।
सगळा पूछै सैन में, बोले नांय विशेष।
बीती कद आ बारता, कटिया कीकर केस।।
संवेदनवश सागलां, स्वर में धीर समाय।
पूछ्यो पूसारामजी, दूणों दुख्ख दिखाय।।
कुण हा,कद अर के हुयो, कितरा रैया बीमार।
संबल बगसै सांवरो, बिनती बारम्बार।।
हर रै घर सब एक है, नर हो या नरनाह।
जरा मरण इण जगत री, रही सनातन राह।।
सगळा सोचे स्यात में, उठसी मंत्री आप।
बोल हमें बतळावसी, बाबो मर्यो क बाप।।
मंत्री कोरो मुळकियो, हरफ न बोल्यो हेक।
प्रतिपख कानीं पलटतां, जाणै लाग्यो जेक।।
चटकर सगळा चकीजग्या, बोल्यो कर बोबाड़।
बोल’र साच बतायद्यो, रगड़ो करो न राड़।।
मंत्री रै परिवार में, मौत हुई मानीह।
पण अब नाम प्रकासतां, मरै कियां नानीह।।
जनसेवक निज जनन सूं, साँची कह समझाय।
मंत्री जन रो मातहत, सकै न बात छुपाय।।
कहणी पड़सी सदन में, मंत्री नैं निज मुख्ख।
काळा केस कटाण रो, दियो कवण ओ दुख्ख।।
घुँघराळा घनघोर बै, लटियाळा लुळताह ।
जिण में कइअक जानवर, परतख में पळताह।।
लागै मंत्री लालची, अणहुँति कर आस।
काळा केस कटायनैं, करियो जीव विणास।।

मंत्री नंह बोल जबाब दियो,
सिर हाथ उठाय खुजाय लियो,
कछु आँख हुतैं कर सैन कही,
प्रतिपख्ख कनै पल चैन नही,
प्रतिपख्ख प्रबल हुयो पलमें,
बिन नीर समीर जियां नलमे,
फिर शौर अती घनघोर हुयो,
इस छाउर हुतै उस छौर हुयो
मन री मरजी न चलाय सकै,
मंत्री किम केस कटाय सकै,
बिन मौत यदी कटवाय लिया,
कह दो मंत्री निर्दोष कियां,
मरवाय र लीखर ढेर मणा
उजवाड़ दिया घर जूंय तणा,
अब सब्र तणी सब सींव हटी,
जब केस कटा सरकार नटी,
कछु बांह चढ़ाय चिगाय रैया,
कछु भौंह नचा भरमाय रैया,
कछु देख रिया कनखी-कनखी
कछु मौन दंताय चबाय नखी,
अब लेख पखी ललकार लही,
सब ढेर पखी कर मेज गही,
कछु सेन विरोध कार्यो सखरो,
मन मांय विचार करै मुखीयो,
दुसटी जबरो दुख आज दियो
धमचक्क मचीर नची धरती,
मुंडवाय लियो मुंड मूढ़मती,

उठकर मंत्री आखीयो, म्हनैं नहीं मालूम।
कटिया है या नीं कट्या, कहसी सब कानून।।
मैं कीकर कह द्यूं मतै, मुंडन हुयो है मोर।
प्रतिपख री परतीत के, सदा मचावै सौर।।
प्रतिपक्षी पूसो कहै, जाण न बणो अजाण।
खुद नैं खुद रै कटण री, कीकर नहीं पिछाण।।
हुयो हुयो सब ही कहै, सबनैं दीखै टाट।
मंत्री पण ओ मूळीयो, सकै न बोल सपाट।।
दीखै सारै सदन नैं, तूं भी देख तिलोर।
कटियो पर नटियो कियां, सदन मचावै सौर।।
दीखै है या नीं दिखै, सौ कहसी सरकार।
हर कोई देखणहार नीं, देख सकै दरबार।।
कटियो है या नीं कट्यो, इणरो उत्तर हैक।
माथो थारो मूळीया, हाथ फेर कर देख।।
लोढ़ी मोढ़ी लसलसी, चमक रही ज्यूँ चाँद।
ऊपर हाथ उठाय नैं, रगड़ मती कर रांद।।
हाथ उठाकर माथ पर, फेरण रो फरमान।
पक्को ओ प्रतिपक्ष है, षडयंत्री श्रीमान।।
दूजां नै तो दोष द् ये, खुद रा न लाधै खोज।
प्रतिपख नेतो पूसीयो, मूंछ मुंडावै रोज।।
जांच कमेटी जांच कर, निर्णय करसी न्याय।
केस मिहारै करम रा, कट्या क कटिया नांय।।
रहो भरोसै राज रै, सदा इणी में सार।
हाथ फेरसी हेक दिन, सबां परै सरकार।
प्रतिपक्षी पाछा कहै, के करसी सरकार।
हाथ र माथा तिहार है, आ क्यों करै उधार।।
सहमत हूँ मैं सबन तैं, म्हारा हाथ र माथ।
पण ऐ बंधिया पागड़ै, सदा राज रै साथ।
मैं खुद म्हारै माथ पर, फेरूँ हाथ हमेश।
पण सरकारी पोळ रो, आवण द्यो आदेश।।
राज काज री रीत है, प्रतिपख सूं नीं प्रीत।
दोखीड़ा जे दाखद्यै, जाकी कठै है जीत।।

~~डा. गजादान चारण “शक्ति सुत”

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