मत जावो परदेस

आवो तो जावो मती, नैणां रहौ नजीक।
गरथ गांठ जिम बांध लूं, बिछुडण री नह बीक॥1
जावण ! री जचती नहीं, मनभावण मनमीत।
सावण में दामण सदा, सँग घन रहै नचीत॥2
जावौ दूर दिसावरां, ठाकर बात न ठीक।
चाकर री चिंता करो, आछी नहीं उडीक॥3
जमी रात है जोर री, जागां दुय लग भोर।
मन री मांडां बातडी, करुं अरज करजोर॥4
थें सोढा सम सैण हुं, धरा सुरंगी धाट।
राज करौ रँग भर रहौ, दिन जोबन दस आठ॥5
अंतस हंदी ओरडी, हिव- हिंडोळा खाट।
बैठौ तो बातां करां, खोलूं ह्रदय कपाट॥6
चम चम बिखरी चांदणी, पूनम जिम मम रूप।
रात रहौ मन राजवी, मौसम रे अनुरूप॥7
सजण रहौ हिव देसडै, मत जावौ परदेस।
मानौ तो अरजी मधुर, औ नींतर आदेस॥8
~~नरपत दान आसिया “वैतालिक”