मत किम चूको मोर?

थल़ सूकी थिर नह रह्यो, चित थारो चितचोर।
लीलां तर दिस लोभिया, मन्न करै ग्यो मोर।।1
लूवां वाल़ै लपरकां, निजपण तजियो नाह।
धोरां मँझ तज सायधण, रुगट गयो किण राह।।2
झांख अराड़ी भोम जिण, आंख खुलै नीं और।
वेल़ा उण मँझ वालमा, मोह तज्यो तैं मोर।।3
वनड़ी तज थल़ वाटड़ी, अंतस करा अकाज।
बता कियो तैं वालमा, की परदेसां काज।।4
सूखी लूखी सदन री, जेड़ी तेड़ी जोय।
पाक भला परदेश रा, करै न समता कोय।।5
गहडंबर जाल़ां गजब, पाका पीलू पीव।
वेला उणी अभागिया, जगा न झल्ली जीव।।6
राताचुट भरिया रसां, ढिग ढालू तज ढोर।
वेला उणी अभोमिया, मत किम चूको मोर।।7
मतवाल़ी तज मोरड़ी, मत्त तजी मरजाद।
ऊमां देख असाढ री, आयो थल़ तो याद।।8
केम दिहाड़ा काढिया, मुझ जाणै सह मन्न।
तपती उर रह्यो तरां, तपत विछोहै तन्न।।9
ऐ लीना सब ओल़भा, चित धर सीस चढाय।
आखै तूं जितरी अहो, निमख कूड़ है नाय।।
आ तूं है घर आभरण, छती घरां री छात।
तो सूं घर सोभै तरां, वसुधा जाहर बात।।10
म्हे लोभी म्हे लालची, सखरो नहीं सभाव।
बातां में विलमीज नै, निसचै तजां निठाव।।11
रूप रसां पर रीझनै, अकल तजां फिर और।
भोम भमां परदेस री, काल़जिये तज कोर।।12
फल़ चखिया फिर फिर किता, नवलो रूप निहार।
सम पीलू नह स्वाद को, एक न तो उणिहार।।13
दिस आभै निज देश में, खिमती बीजल़ खास।
ढेल सथै ऐ ढीबड़ा, उर धर हुवो उदास।।14
तर तजिया म्है तुरत ही, पर सज कियो पयाण।
चित घरणी घर चींतनै, उरड़ै भरी उडाण।।15
रे तज अब तूं रूठणो, खमा!छोड अब खीझ।
पांतर ओगण पीव रा, राज करावो रीझ।।16
धर पर इंदर धाहुड़ै, व्योम पल़ापल़ बीज।
आज दिहाड़ो उमँग रो, खमा भँजाड़ो खीझ।।17
रुठ्यां तो नह रस बणै, चित में मिलै न चैन।
व्हाली इण वरसात रो, आवै साव न ऐन।।18
म्हैं खल़ियो मतहीण बो, कुलती तोई कंत।
सीलवंत सुण सायधण, मेह मँडै महमंत।।19
ऐ दिन जाय असाढ रा, छिण छिण जोबन छीझ।
म्हारी दिस तिल जोय मत, प्यारी अबै पसीज।।20
फेर फंसूं नह फंद किण, हेर करूं नह हूंस।
ढँग कर रीझण ढेलड़ी, सांप्रत तो गल़ सूंस।।21
~~गिरधरदान रतनू दासोड़़ी