माता

प्रेम को नेम निभाय अलौकिक,
नेम सों प्रेम सिखावती माता।
त्याग हुते अनुराग को सींचत,
त्याग पे भाग सरावती माता।
जीवन जंग को ढंग से जीत के,
नीत की रीत निभावती माता।
भाग बड़े गजराज सपूत के,
कंठ लगा दुलरावती माता।।1।।
प्रात उठे प्रभातिय गावत,
नंद को नंद रिझावती माता।
राम-सिया, घनश्याम-लली
कहिके हमहू को जगावती माता ।
जो जिसकी रुचि है उसके हित
वैसो ही भोग पकावती माता।
सीख सही गजराज सिखावन,
पावन पाठ पढ़ावती माता।।2।।
शीतल बादल की कल छाँह ज्यूं,
है तव बांह सुहावनी माता।
है सुखसारिय मंगलकारिय,
गोद तिहारिय मां भवत्राता।
बाल को ख्याल कमाल रखै,
जमकाल सूं जाय भिड़ै चखराता।
रीझ कवि गजराज पुकारत,
तू शिव तू हरि तू ही विधाता।।3।।
~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’