मातृ-वंदना – अजयदान जी लखाजी रोहडिया

आती उतालीह, ताळी सुण तीजी श्रवण।
करणी करुणाळीह, बिरुदाळी सोचो बिरद।।1
बेगी चढ बबरीह, जबरी आई न जोगणी।
जबरी जेज करीह, कफरी वेळा करनला।।2
गरब अधम गरणीह, हरणी अनहद अर अर्यां।
हे उजळ बरणीह, कर करुणा अब करनला।।3
निज करणी निरखेह, नेह तजो न निरंजणी।
मैया मेर रखेह, कपूतां पर नित करनला।।4
अवर न को अवलंब, जग मांहि जगदंबिका।
अनुग्रह कर अविलंब, प्रसन्न विहो परमेशरी।।5
आफत मांहि आप, साय करो सगति महा।
म्हारै थुं मा-बाप, किरपामय हे! करनला।।6
करियो लख खोडोह, छोड्यौ धीरज चौथुवै।
जरणी पग-जोड्यौह, हत्थौडो निज हाथ ले।।7
तरणी वणिक तिराइ, कैद छुडाई शेख री।
तुटी लाव जुडाइ, अणदारी अरु ईशरी।।8
कान्है जद नह कार, मतहिण मांनी मातरी।
बाघण बण उणवार, प्राण हर्या परमेसरी।।9
प्रण निज रो पाळीह, करै रुखाळी किंकरों।
आवै ऊताळीह, मतवाली मेहासधू।।10
आ! डोकरडी आज, साज सजै मृगराज चढ।
लोवडियाळी लाज, काज हमारे करनला।।11
संकट सागर मांय, निज जीवन नौका वहै।
महर करै महमाय, पार करै परमेसरी।।12
धारी किण विध धीर, धिनियांणी धाया नहीं।
अनुचर देख अधीर, करो दया झट करनला।।13
अशरण शरण उगार, जेज न अब कीजै जरा।
सेवक निज चित धार, करे अनुग्रह करनला।।14
~~स्व अजयदान जी लखदानजी रोहडिया मलावा रचित