माया पंचक

कोउ करत उपवास, कोउ अन खात अलूणा|
कोउ खात फल कंद, कोउ बोलत कोउ मूना|
कोउ ठाडे तप करत, कोउ ऊंधै सिर झूलत|
मन क्रत कूं सत मान, मोख मारग से भूलत|
वासना ह्रदय त्यागे बिना, विफल करत बनवास है|
कहै ब्रह्ममुनि हरि प्रगट बिन, सब माया के दास है||१
जडिया बूटी जोय, कोउ किमीया बनावै|
काहू के बस वीर, कोउ समसान जगावै|
कोउक नागा फिरत, कोउ तापत नित धूनी|
कोउक मन की कहत, कोई कह हुई रू हुनी|
धरे भेख पाये बिना, मरत भूख रू प्यास है|
कहै ब्रह्ममुनि हरि प्रगट बिन, सब माया के दास है||२
अम्री बाजि करत, घोर कोउ होत अघोरी|
कोउक वाचा सिद्ध, देत धन छोरा छोरी|
कोउ करत जल स्नान, कोउ पावक मँह पैसे|
कोउक पीवत पौन, गुफा गिरवर मँह बैसे|
पेसंत कोउ पाताल मँह, उडै कोउ आकास है|
कहै ब्रह्ममुनि हरि प्रगट बिन, सब माया के दास है||३
करत सरोदाकूट, काल कष्टनकुं बांधै|
इडा पिंगला आदि, पंच भूतन स्वर साधै|
म्रतक जिवावत कोय, कोउ विध्या सब जाने|
निकट दिखावत दूर, दूर कुं निकटहि आने|
नवनिधि अरु अष्टहि सिधि, रहत निरंतर पास है|
कहै ब्रह्ममुनि हरि प्रगट बिन, सब माया के दास है||४
करामात कोउ करत, कोउ जग सिध्ध कहावै|
कोउक साधत कल्प, जीर्ण जोबन दरसावै|
कोउ हिमालय गलत, कोउ गिरवर तें गिरही|
कोउक काशी जाय, धरि करवत सिर मरही|
मुख चारि वेद औ शास्त्र खट, अहनिस रखत अध्यास है|
कहै ब्रह्ममुनि हरि प्रगट बिन, सब माया के दास है||५
~~ब्रह्मानंद स्वामी