मायड़भासा में शिक्षा अर व्यक्तित्व विकास

mayadbhashaशिक्षा संस्कारां रो समंदर है। गुणीजनां रो मानणो है कै शिक्षा मिनख रै व्यक्तित्व रो सर्वांगीण विकास करै। मिनख नैं मिनख बणावण रो काम करै शिक्षा। आज रै समै री सबसूं बड़ी विडम्बना आ है कै मिनख तो बढ़ता जा रैया है पण मिनखपणै री मंदी आयगी। राजस्थानी लोकसाहित्य रो अेक दूहो है कै-

मिनख घणां ईं मुलक में, मिनखां तणो सुगाळ।
(पण) ज्यां मिनखां में मिनखपण, वां मिनखां रो काळ।।

मतलब ओ है कै मोकळी कोकळ बधरी है पण मिनखाचारो घटतो जा रैयो है। ‘विद्या ददाति विनयम’ अर ‘सा विद्या या विमुक्तये’ वाळी परिभाषावां पलटगी। अबार री शिक्षा तो विनम्रता री ठौड़ गुरूर अर घमंड देवण वाळी बणगी। भणिया गुणिया लोग मारग पांतरेड़ा फिरै। शिक्षा ज्ञान, संस्कार, विवेक, विनम्रता अर आचरण री शुचिता सिखावण रो आधार मानीजै पण आज शिक्षा रो जियां जियां पसारो बढै बियां बियां अै सगळी चीजां संकड़ी होती दिखै, इणरो सबसूं मोटो कारण ओ ई है कै शिक्षा में कठै न कठैै कोई कसर रै री है। ‘ऐजूकेशन’ नैं ‘अै ज्यूं कै सुण’ (ये जो कह रहे हैं, उसे सुन) री सींवां में बांधणियां शिक्षा सूं बाकी संस्कार तो दूर कर दिया अर उणरै (शिक्षा रै) दाह संस्कार में लाग्योड़ा सा दरसावै। च्यारां कांनी देखादेखी राफळरोळ मच्योड़ी है। सगळा शाॅर्टकट ढूंढण में अर तिकड़म भिड़ावण में लाग्योड़ा है। पार पड़ै जितो पकड़ण अर हाथबसू करण में लोगड़ा अड़थड़ै। ‘रावळो तेल पल्ले में ई चोखो’ वाळी कैबत अब जा’र समझ में आई कै भलांई घर रो पल्लो खराब हुवो, चिकटास उतारण सारू साबण रा पीसा भांगणा पड़ो पण खीर में मूसळ फेरणो जरूरी है।

प्रतियोगी परीक्षावां में आयै दिन ‘मुन्ना भाई’ मिळै। विचार करण री बात आ है कै अै मुन्नाभाई तो मिजळा हुया सो सही पण आं रै साथै पूरो समाज ई मामळबायरो कियां हुग्यो। कोई कीं कैवण वाळो ई नीं है। गळत काम करणियै आदमी नैं जे उणरो समाज अर परिवेस टोकण लागज्यावै तो बो दुबारा गळत काम करतां पचास बार सोचै पण टोकै कुण ? सगळा मौकै री टोह लगायां बैठा है। मौको मिलतां ई मा’राज बणण सारू त्यार है। पगां बळती सूं जाणबूझतां अणजाण बण’र डूंगरां बळती री बातां बणावणियै मानखै रो सुधारो फगत शिक्षा सूं ई संभव है। संस्कारां रो हस्तांतरण हुवै भलांईं वंश-परंपरा रै विरुद री बात हुवै, इतियासू गौरव नैं जगावण रो जतन हुवै भलांईं भविस रो चिंतन हुवै, ऊजळी कीरत री आब हुवै भलांईं कलंक सूं किनारो करण री सीख देवती किताब हुवै, आं सगळी बातां रो आदू आधार शिक्षा हुवै। देखादेखी दडूकणियां अर ढीटाई पर ढूकणियां कुणसो इतियास रचै ? सागो देख’र सासरो साजणियां रा घर कद बसै ? शिक्षा अर बा भी आपणै अंतर्निहित शक्तियां रै घणनामी सदुपयोग रो काम करण वाळी शिक्षा इण कबाड़ै नैं रोक सकै। इण दीठ सूं हर प्रदेश रो आपरो इतियास है, आपरी संस्कृति है, आपरा गौरवमयी इतियासू पानां है, बां नैं समझण सारू शिक्षा रो माध्यम मातृभासा नैं बणावणो पड़सी।

मायड़भासा शिक्षा रो सबसूं सशक्त माध्यम है। इण बात नैं महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी अर सगळां भारतीय विद्वानां रै साथै बा’रला शिक्षाविदां भी मानी है। आज तो मनोविज्ञान भी इण बात नैं मानै कै पाठसाळा में आवणियां टाबर ‘कोरा-कागज’ कोनी जकां पर शिक्षक भांवै ज्यूं लिख सकै। मतलब ओ है कै टाबर जद पोसाळा आवै उण बगत बो आपरै गर्भवास सूं लेय’र तीन-चार साल रो अनुभव आपरै साथै ल्यावै। बो आपरी मां रै मूंढै सुण्योड़ी अर परिवार में बरत्योड़ी भासा अर बोली साथै ल्यावै। आपरै घर रा संस्कार अर सरोकार साथै ल्यावै। घर-परिवार अर साथी-साईनां सूं बतळावतां सीख्योड़ा सैंकड़ी सबदां री संपदा उणरै साथै है। आपरै बूढ़ा-बडेरां सूं सुण्योड़ी वेद, पुराण, गौतम अर गांधी सूं लेय आपरै कुळदेवता अर जूझार, भोमियां री बातां उणरै साथै है। आपरै घर रा जीव-जिनावरां रै साथै खेती-बाड़ी अर ब्याव-सावै रै रीत-रिवाज सूं जुड़्योड़ी बातां उणरै साथै है। आपरै परिवार रा रिश्ता-नाता अर सुख-दुख री सगळी बातां बो आपरै समझ-कोथळै में घाल’र आवै। पण जियांई बो पोसाळ आवै, बठै सगळो मामलो बदळ्योड़ो मिलै।

आं टाबरां नैं पोसाळा आतां ई अभिव्यक्ति रै परिष्कार री ठौड़ जुबान रै ताळो लगावण सारू मजबूर होवणो पड़ै। बठै आपरी भासा बोले तो जोकर बणज्यावै। भासा विज्ञानी अर मनोविज्ञानी मानै कै मिनख रै मन में विचार आपरी मातभासा में ई पैदा हुवै, दूजी भासा में तो बो रूपांतरित करै। बार-बार अभ्यास सूं इण रूपांतरण में तीव्रता आ ज्यावै इण वास्तै आपां नैं महसूस नीं हुवै। पण बै छोटा टाबर जकी बात जाणै उण बात नैं शिक्षा में कोई ठौड़ नीं मिलै अर आज लग सीख्योड़ै नैं भूलण सारू मजबूर हुवै जइ बां रो बीं शिक्षा सूं आत्मीय जुड़ाव नीं हो सकै। ओ ई कारण है कै आज किताबां उबाऊ लागै, कक्षावां में टाबर उबासियां खावै, पोसाळ जावण रो कैवां जणां रुवांसा हुवै। समै री मांग नैं समझतां आपांनैं इण बात नैं समझणी चाईजै अर सरकार नैं भी समझावणी चाईजै कै शिक्षा रो सबसूं मोटो अर सशक्त आधार मातभासा है, राइट टू एजूकेशन अर मातभासा में शिक्षा रा कानून पास होवण रै बावजूद राजस्थान अर राजस्थानी माथै अन्याय री बात अब असहनीय होवण लाग री है। मायड़भासा राजस्थानी किणी दूसरी भासा री विरोधी नीं है अर नां ई दूजी भासा सीखणी माड़ी बात है। आपांनैं दुजी भासावां में आपणी दखल बणावणी चाईजै पण राजस्थानी री कीमत पर नीं। जियां बूढ़ा-बडेरां रो काण-कायदो राखणो आछी बात है पण घर रा माईत तो नारगी भोगै अर पड़ोसियां रै अठै आप सेवा करता श्रेष्ठ समाजसेवी रा तमगा लगावो तो आ कोई जोगती बात कोनी। इण वास्तै मायड़भासा राजस्थानी री आपरै लाड़ला-लाड़ली सारू अेक अरज म्हारी कविता रै माध्यम सूं आपरै सामी राखतां बात पूरी करां-

दूजां सूं राखो हेत भलां, कद आज तलक मैं रोक्या है।
पण आज समै री मांग समझ, सगळां नै औचक रोक्या है।।
दास्यां रै रूपां रीझणियां, राण्यां रो साथ नहीं पावै।
पछतावै मसळै हाथ पछ, सुख सेज अडोळी रह जावै।।
मिनड़ी रै डोळां डरपै बै, सिंघां री हाथळ किम सैवै।
जण-जण नै जांचण जावणियां, मालक नै माण कियां देवै।।
थे दाई रै कोडां रीझ्योड़ा, (थे) माई ने छोडी छिटकाई।
नौ मास गरभ में राखण री, उण पीर सीर नै बिसराई।।
इतरी ही कहस्यूं आखिर में (थारै), आ बात समझ में कद आसी।
दाई तो दाई ही रहसी, माई रो रुतबो कद पासी।।

~~डाॅ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ (अखरावता आखर)

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