मेघवाल़ बिनां धण्यां रो नीं है

अन्याय और अत्याचार जब अपनी सीमा लांघने लगते हैं तब आतताइयों के खिलाफ समर्थ विद्रोह कर उनका सामने करते हैं, जो समर्थ नहीं होते हैं वे अत्याचारियों के खिलाफ सत्याग्रह करते हैं और उससे भी पार नहीं पड़ती है तब हंसते-हंसते जमर की ज्वालाओं में अपने शरीर को समर्पित कर देते हैं।

जब हम मध्यकालीन राजस्थान के मौखिक इतिहास का श्रवण करते हैं तो तत्कालीन सत्ता और सत्ता के कारिंदों के अत्याचारों की ऐसी-ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है कि सुनकर हमारा हृदय करुणार्द्र हो जाता है।

ऐसी ही एक घटना है झांफली गांव की गोमा माऊ की।

गोमा माऊ का जन्म बाल़ेबा के पूनसी बारठ जसराजजी के घर उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। यहां यह उल्लेख्य है कि जसराजजी को संतान प्राप्ति प्रौढावस्था में हुई थी। इस खुशी में उन्होंने तमाम स्थापित परंपराओं को त्यागते हुए बेटी के जन्म पर न केवल गुड़ बंटवाया अपितु ढोलियों को बुलाकर मंगल गीतों के साथ खुशियां भी मनाई।

उन्हें ऐसा करते देख किसी बुजुर्ग ने कहा कि-
“जसा ! क्यों इतना कोड कर रहा है। बेटी तो पराया धन होती है। अगर बेटा होता तो पीछे नाम तो रहता।”

तब जसराजजी ने कहा कि-
“आप मरे जग परले है। पीछे नाम चलता है या नहीं ! यह देखने हेतु वापिस कौन आता है? अगर नाम रहना है भलियोजी की भांति मेरा भी रह सकता है-

भलिया थारो भाग, देवल जैड़ी दीकरी।
समदां लग सौभाग, परवरियो सारी प्रिथी।।

वैसे भी बेटे और बेटी में अंतर क्या है? है तो अपना ही रक्त। तो फिर कोड क्यों नहीं करूं-

बेटे जाए कवण गुण,
अवगुण कौण धियेण ?”

उन्होंने सभी की बातों अनसुना कर अपनी बेटी गोमा के जन्म पर खूब खुशियां मनाई।

डिंगल कवि कैलासदानजी झीबा लिखते हैं-

अवतरिया घर आयनै, बारठ बाल़ेबेह।
जग चावो जसराजजी, देवी धारी देह।।

गोमा बड़ी हुई तो उन्होंने झांफली के झीबा गुमानदानजी के साथ गोमा की शादी की। काफी वर्षों बाद दुर्योग से गुमानदानजी का देहावसान हो गया। गोमा को संसार से विरक्ति हो गई। उन्होंने पूरा ध्यान ईश्वर भक्ति में समर्पित कर दिया। उनकी भक्ति की चरचा सर्वत्र प्रसिद्ध हो गई।

झांफली के पास ही शिव नामक गांव है, जहां रियासत समय में मारवाड़ रियासत का हाकिम बैठता था। उन दिनों यहां का हाकिम कोई भंडारी जाति का जैन वणिया था, जो अहंकारी, क्रूर और अत्याचारी था। वो अपना घोड़ा खुला ही रखता था। अतः घोड़ा आसपास के गांवों में खड़ी फसलों में चरता और नुकसान करता था। हाकिम का घोड़ा था तो लोग शिकायत किससे करें?

जब यह घोड़ा झांफली के झीबों के खेत में नुकसान करने लगा तो अन्य चारणों ने तो राज का घोड़ा समझकर हार मानली लेकिन ऊदाजी झीबा जिनका परिवार समर्थ था। वे न केवल ताकतवर थे अपितु निडर भी थे। उदाणी कहलाते थे। उन्होंने विचारविमर्श किया कि-
“माना घोड़ा तो हाकिम का है लेकिन खेत हाकिम के बाप का नहीं है। इसे किसने अधिकार दिया कि वो हमारे खेतों में हमारे जीते जी हानि कराएं। उन्होंने बिना किसी झिझक के घोड़े को पकड़ा तथा पटककर उसकी पूंछ व गर्दन के बाल काटकर घोड़े को छोड़ दिया।

गोमा मा रा छंद’ में कैलासदानजी झीबा लिखते हैं-

हार खाधी सब हाल़ियां,
कूक न सुणतो कोय।
झीबा उदाणी झांफली,
ज्यां हय पकड़्यो जोय।।
केसां पूंछां काटिये,
कर बांडो केकाण।
हेवर निरखत हाकम रै,
जल़ी उर अगन जाण।।

घोड़ा छूटते ही शिव की तरफ दौड़ा। जब भंडारी ने अपने घोड़े के यह हाल देखे तो उसे ताव आ गया। उसने पता करवाया कि यह कृत्य किसने किया है? तब उसे पता चला कि झांफली के उदाणियों ने यह दुस्साहस किया है।

हाकिम बिना देर लगए कोटड़ा के कोटड़ियों यथा हाथीसिंह, काछबसिंह से मय लवाजमे के झांफली चलने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया कि-
“चारणों पर हम नहीं चलेंगे।”

ऐसे में उसने अपने बलबूते झांफली को घेर लिया। इधर उदाणी मारे राज भय के अपना गांव छोड़ मय परिवार जैसलमेर की सरहद में चले गए। इधर आसपास के मौजीज मिनखों ने कहा कि आप निर्दोषों को न सताए। जिनका दोष था वे गांव छोड़कर चले गए हैं।

आखिर पंचायती हुई और हाकिम ने कहा कि-
“120रु. दंड स्वरूप झांफली भरे अन्यथा मैं गांव जला दूंगा।”

उन दिनों बिना पैदाइश वाले गांवों के लिए यह बहुत बड़ी रकम हुआ करती। दुर्योग से पूरा गांव मिलकर भी यह व्यवस्था नहीं कर सका। ऐसे में काफी चारण अपने परिवारों के साथ मारे डरके निकल गए। वे जब रणधा गांव पहुंचे तो उन्हें वहां के सपूत क्षत्रिय नाहरखांनजी भाटी ने देखा। वे उनके पास आए और इस तरह सामुहिक रूप से जाने का कारण पूछा। जब चारणों ने पूरी बात बताई। पूरी बात सुनकर नाहरखांनजी ने कहा कि-
“अब आपको आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। यहीं रहे। मैं आपकी पूरी व्यवस्था करूंगा।” इस विषय में कैलासदानजी लिखते हैं-

बहता डेरा वीदगां, देख्या नाहरखांन।
रणधा महिपत रोकिया, सत आदर सम्मान।।

इधर जब भंडारी के लोगों को विदित हुआ कि पूरा गांव लगभग खाली हो चुका है। नगण्य लोग रह गए हैं। ऐसे में उसने जावते चोर के झींटों के मानिंद गांव में घुसकर जो मिल जाए वो छीनना श्रेयस्कर समझा।

उसके आदमी गांव में घुसे। उन्होंने देखा कि एक मेघवाल डाऊजी जो बारूपाल़ जाति के थे, के पास सुंदर व सुडौल बैलों की जोड़ी खड़ी है। वे घर में घुसे और जैसे ही बैल खोलने लगे वैसे ही डाऊजी आ गए। उन्होंने प्रतिरोध किया। डाऊजी को प्रतिरोध करते देख उनकी क्रूरता जाग उठी। उन्होंने, उन्हें बुरी तरह मारना शुरु कर दिया। अधिक मार से डाऊजी निढाल हो गए। भंडारी के आदमी बैलों को खोलकर ले गए।

इधर थोड़ी देर बाद डाऊजी को कुछ हौश आया तो वे रोते हुए सीधा गोमा माऊ के घर पहुंचे। कैलासदानजी झीबा लिखते हैं-

बाया काम्बड़ विसटियै, जोड़ी खोसै जाय।
बरक्यो बारुपाल़़ जद, आगल़ गोमा आय।।

गोमा माऊ माला फेर रही थी। जब उन्होंने देखा कि डाऊ रोता हुआ उनके पास आया है।
उन्होंने डाऊजी को संबोधित करते हुए कहा-
“अरे की हुवो डाऊ? तूं रो क्यां रह्यो है? की हुवो? बता तो खरी डीकरा।”

तब डाऊजी ने रोते हुए पहले अपना लहुलुहान शरीर बताया और फिर भंडारी के आदमियों द्वारा जबरन बैल छीनने की बात बताई।

डाऊजी का शरीर देखते ही गोमा माऊ ने कहा-
“अरे ई नै नवलाख भखै दुष्टी नै। ई बिचारै की बिगाड़्यो? जको ई नै कूट्यो। ओ कोई निधणीको नीं है। अजै हूं बैठी हां। ई रै हाथ लगायो उणरो काल़जो नवलाख नै नीं चिबादूं तो लख लाणत है म्हनै।”

इतना कहकर उन्होंने डाऊजी से कहा-
“हवै हमै तूं मत रो। हमैं उवै रोस्यै। तू जा अर मंगल़ै ढोली नै कैय कै ढोल बजावै। मैं इस दुष्टी भंडारी के खिलाफ जमर करूंगी। उठ अब देर मत कर।
मंगलाजी आए। ढोल घुरा और गोमा माऊ ने तत्कालीन शिव हाकिम के खिलाफ आसोज कृष्णा चौथ वि. सं. 1932 के दिन जमर किया। कैलासदानजी झीबा लिखते हैं–

अखां संमत उगणीस सौ, सौल़ै दूणां साल।
चौथ अंधारी गोमा चढी, बणै रूप विकराल़।।

जैसे ही गोमा माऊ द्वारा जमर करने की खबर भंडारी के पास पहुंची वो मारे डर के बैलों आदि को वहीं छोड़कर भाग छूटा। गूंगा गांव की सरहद में उदासर तल़ाई के पास पहुंचते ही उसके प्राणांत हो गए। यही नहीं जमर के दूसरे ही दिन, एक दिन पहले विवाहित हाकिम के पुत्र पर नीम की विशाल शाखा टूटकर गिरी जिससे वो दबकर मर गया।

आज भी उस अंचल में सभी जातियों के लोग गोमा माऊ के प्रति अगाध आस्था रखते हैं।

झांफली गांव में मा गोमा के जमर स्थल स्थापित मूर्ति आज भी उस क्रूर काले अध्याय की साक्षी भरती हुई खड़ी है।

।।गोमा रा दूहा।।
बाल़ेबो बाढांण में, गढव्यां वाल़ो गांम।
पात बसै उथ पूनसी, सकव वडा सरणांम।।1
रोहड़िया चावा रसा, सुज निज सकल़ समाज।
ज्यां सारां में जोगतो, जगती में जसराज।।2
जनमी घर जसराज रै, धिन धिन गोमा धीव।
सांप्रत पख पा सगत रो, ईहग अँजस अतीव।।3
उछब कीधो पात इम, पुत्रां सूं बध पेख।
जनम सधू जसराज घर, वाज्यो ढोल विसेख।।4
गोमा रो हद गुमर सूं, पितु कीधो परसंग।
झीबां वाल़ी झांफली, सकव गुमानै संग।।5
मंगल़ घुरिया ढोल मुद, हरख बधायां होय।
मुदित झांफली सकल़ मन, जोड़ी फबती जोय।।6
वरस बोहल़ा वीतियां, जुड़ियो एक कुजोग।
तन्न गुमानै त्यागियो, संचरियो घर सोग।।7
माल़ा माधव नाम री, जस सगती रो जाप।
जोर बणी हद झांफली, ओढप गोमा आप।।8
हाकम करतो हाकमी, गाढ धर्यां सिव गांम।
जिको भँडारी जात रो, अणहद सुण्यो अलांम।।9
अस उणरो चरतो अवस, पुल़छां ऊभी पेख।
उणरै कोयन आवतो, आडो घेरण एक।।10
जो अस नित रो झांफली, खैरूं करवै खेत।
सँभिया झीबा साबल़ा, तुरँग पकड़वा तेथ।।11
पकड़्यो झीबां पमँग नै, पटक बाढियो पूंछ।
भिड़ज भँडारी भाल़ियो, मानो कटगी मूंछ।।12
गांम वांणियै घेरियो, तण फिर दीनी त्रास।
डँड घाल्यो डाकरपणै, विरड़ै कियो विणास।।13
गांम डरंतां गढवियां, अपणो तज्यो अचांन।
रणधै ज्यांनै रोकिया, निरभै नाहरखांन।।14
उण वेल़ा गोमा अठै, निडर रही निज नेस।
जप माल़ा जगतंब री, भोम उजाल़्यो भेस।।15
किसबी गोमा रो कहूं, रहियो डाऊरांम।
बारुपाल़ बसती तणा, करतो अड़िया कांम।।16
डाऊ रै घर देखिया, जोड़ी धवल़ जुवाण।
दुष्टां आयर डांगबल़, तिकै खोसिया तांण।।17
कुटल़ा डाऊ कूटियो, छती दया दिल छंड।
दीनो उणनै दोखियां, दूथ्यां साथै डंड।।18
बारुपाल़़ मन बिलखतो, पूगो गोमा पास।
उवै कूक दिल आपरी, तन दिखल़ाई त्रास।।19
देख दसा डाऊ तणी, खायो जामण खार।
अबै इयै अनियाव रो, निकल़सी निसतार।।20
कड़क कह्यो भर क्रोध में, जांमण गोमा जोर,
पापी पगड़ै पावसी, हांण हरामीखोर।।21
जमर चिणायो जामणी, गाढाल़ी कर गाज।
रढियाल़ी अब राखसी, लोवड़याल़ी लाज।।22
साल बतीस आसु तणी, चवा अंधारी चौथ।
अखां सँमत उगणीस में, जागी जम्मर जोत।।23
नीच उठै सूं नाठियो, ऊंधै मारग और।
भँडारी घर भेल़ियो, भांण हुवंतां भोर।।24
बाप बेटो खपिया वणिक, अड़िया गोमा आय।
उबरिया वै तो अवस, पड़िया शरणै पाय।।25
ऊजल़ धरा आथूण री, की गोमा किरपाल़।
संत उबार्या सांकड़ै, अरियण दिया उथाल़।।26

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी
कथा सूत्र- कैलासदानजी झीबा झांफली

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One comment

  • Ramesh charan

    Jay mataji bhaya hamko patan Gujarat me san 1200 me sidhraj solonky ka Raj ke vakt charan jati ke log yaha rahete the vo konsi Sakha ke charan the apko jankari hai to batye pleese

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