मेहाई सतसई – नरपत आसिया “वैतालिक”

मेहाई सतसई
कवि नरपत आसिया “वैतालिक” कृत
अमर शबद रा बोकडा, रमता मेल्या राज।
आई थारे आंगणैं, मेहाई महराज॥
(शब्द रूपी अमर बकरा हे माँ आई मेहाई महराज आपरा मढ रे आंगण में रमता मेल रियो हूँ।)
अनुक्रमणिका
क्रमांक | विषय (निम्न लिंक पर क्लिक करें) | दोहा संख्या |
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१ | अंतस रा आखर - नरपत आसिया | |
२ | प्रस्तावना - कवि गिरधर दान रतनू "दासोड़ी" | |
३ | उडै सदा आकास जिम | १-९६ |
४ | गमियो मूषक राज | ९७-१०४ |
५ | शतक बणे वा सतसई | १०५-१५१ |
६ | करै भळायां काज | १५३-१९९ |
७ | तंत्रोक्त देवी सुक्तम का भावानुवाद | २००-२२९ |
८ | बाई पाती बांचजै | २३०-२४७ |
९ | आज आवसी अंबिका | २४८-२५५ |
१० | कहो केथ हो डोकरी | २५६-२७१ |
११ | सिध्धकुंजिकास्तोत्रम् का भावानुवाद | २७२-३०३ |
१२ | अर्गलास्तोत्रम् का भावानुवाद | ३०४-३३० |
१३ | नरपत खुद लिखिया नँही | ३३१-३५१ |
१४ | ॠगवेदोक्त देवीसुक्तम् का भावानुवाद | ३५२-३९१ |
१५ | सांझ रूप माता स्वयं | ३९२-३९८ |
१६ | ॠगवेदोक्त रात्रिसुक्तम भावानुवाद | ३९९-४१५ |
१७ | तंत्रोक्त रात्रिसुक्तम का भावानुवाद | ४१६-४४७ |
१८ | आखर आखर आप रा | ४४८-४५५ |
१९ | देवीअथर्वशीर्षम् का भावानुवाद | ४५६-५५१ |
२० | शक्रादय स्तुति का भावानुवाद | ५५२-६२१ |
२१ | बाळ जाण माँ बगसजे | ६२२-६३२ |
२२ | भुवनेशी कात्यायनी स्तुति का भावानुवाद | ६३३-६८४ |
२३ | दसमहाविधामयी मेहाई वंदना | ६८५-७२० |
२४ | मायड भाषा ने मिळै | ७२१-७२८ |
२५ | मां मोगल मछराळ (मोगल शतक) | १-१०९ |