ग़ज़ल – मैं किसी की हाजिरी – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

मैं किसी की हाजिरी हर्गिज़ बजा लाता नहीं।
इसलिये कटु सत्य कहने से भी घबराता नहीं।।
ज़ात से हूँ आदमी इन्सानियत मेरा धरम।
मज़हबी उन्माद से तो दूर का नाता नहीँ।।
ना किसी मठ का मुगन्नी ना किसी दर का मुरीद।
कोई मस्जिद या कि मंदिर मेरा अन्दाता नहीं।।
बख़्श दे मौला मेरे तुझ से निहां कुछ भी नहीं।
हर किसी दर पे तो मैं दामन भी फैलाता नहीं।।
ना तो सज़्दों का सलीका ना इबादत का शऊर।
वो सवाली हूँ कि जिसको मांगना आता नहीं।।
~~राजेश विद्रोही

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