म्हांरै आज्यो बेग हरी ज्यूँ – चिरजा – जवाहर दान जी रतनूं

जवाहरदान जी रतनूं ग्राम थूंसड़ा जिला अलवर (राज.) चारण समाज रा भक्ति काव्य में चिरजा विधा रा रचियता ईंयां तो अनेक एक एक सूं बढ चढ नै हुवा है पर पाँच कवि अनूठी रचनांवा रची है।
(1) हिंगऴाजदानजी कविया सेवापुरा
(2) हिंगऴाजदानजी जागावत बूढा चारणवास
(3) जोगीदानजी कविया सेवापुरा
(4) जोगीदानजी जागावत विसनपुरा
(5) जवाहरदानजी रतनूं थूंसड़ा
आदरणीय जवाहर दान जी रतनूं तो चिरजावा री ऐक पूरी किताब जगदम्ब-सुयश नाम री बणाई जिणमें लगेटगे १०० चिरजावां रो संग्रह बणायो है। अर सबां सूं मोटी बात आ है कि आपरी सब रचनावां चिरजावां में छाप थांणा राजाजी रामसिंह जी रै नाम री लगाय पुरो पूरो साहित्य ही अलवर दरबार नै समर्पित कर दियो।
इता बड़ा त्यागी कवि ने घणां घणां रंग अर नमन है।
जवाहरदानजी रतनूं री ऐक पुराणी अर सतोला आखरां री चिरजा।
।।चिरजा।।
मैं तो करूं हूं पुकार करी ज्यूँ।
अम्बै म्हांरै आज्यो बेग हरी ज्यूँ।।टेर।।
ग्राह ग्रस्यो गजराज सिंन्धु में,
भारी भीर परी ज्यूँ।
खग मग छोडि आतुर हरि आये,
पैदल पैण्ड परी ज्यूँ।।१।।
सुत प्रहलाद ने मारण कारण,
बण गयो बाप अरि ज्यूँ।
असुर मारि निज भक्त उबारियो,
नरसिंह रूप धरी ज्यूँ।।२।।
गौतम की नारी पति सराप तैं,
पाहन होय परी ज्यूँ।
परसै चरण सरोज प्रिती सौं,
निर्मल देह धरी ज्यूँ।।३।।
इन्द्र कोप कियो बृज ऊपर,
बरस्यो मेघ झरी ज्यूँ।
गिरवर धारि कियो हरि किरण्यों,
ग्वालन नांहि डरी ज्यूँ।।४।।
माया ब्रह्म ऐक जग माँही,
कथना कहूँ खरी ज्यूँ।
रामसिंह निज दास राजरौ,
सारा ही काम सरी ज्यूँ।।५।।
मैं तो करूं हूँ पुकार करी ज्यूँ।
अम्बै म्हांरै आज्यो बेग हरी ज्यूँ।।
गजेन्द्र-मौक्ष रो रूपग चिरजा में साकार करियो है जवाहरदानजी रतनूं थूंसड़ा वाऴा कवि ने बार बार नमन है।
~~राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा सीकर)
shandar Bhaav hai Is chirja ke. Rajendra Kaviya Sahab Ko Lakh lakh Rang Aur Sadhuvaad.