म्हांरै कन्नै देवण नै फगत माथो है!!

सिरोही माथै महाराव केशरीसिंह रो राज। सिरोही राज रा आर्थिक हालात माड़ा। राज री माली हालात सुधारण अर कीं खजानो भरण री जुगत में दरबार कई नवा कर लगाय कर उगरावण रो दबाव बणायो। जिण लोगां नै कर उगरावण री जिम्मेदारी दी, उणां पुराणै कानून कायदां री धज्जियां उडावतां आडैकट उगराई शुरू कर दीनी।

इणी उगराई सारू एक जत्थो मोरवड़ै गांम ई ढूकियो। मोरवड़ा गांम महिया चारणां रो सांसण गांम। सांसण गांम हर प्रकार री लाग सूं मुक्त। आ बात जाणतां थकां ई दरबार रै आदम्यां आय लोगां नै भेल़ा किया अर टैक्स चुकावण री ताकीद करी। गांम रै मौजीज लोगां कैयो कै ओ तो सांसण गांम है! हरभांत री लाग-वाग सूं मुक्त, अठै आप इण पेटै हकनाक आया हो! अठै राज रा कानून नीं अठै म्हांरा ईज कानून चालै। आवणिया ई राज रा आदमी हा, उणां कैयो कै अबै इण भोपा डफरायां में कीं नीं धरियो है, टैक्स सादी सलाह में भरो जणै तो ठीक है नींतर राजरै हुकम सूं म्हांनै लैणो आवै।

मोरवड़ै रा चारण ई बलाय रा बटका अर आपरी मरजादा कारण खांफण खांधै राखणिया। उणां मूंछां ताव दियो अर भ्रगुटियां ताणनै कैयो कै अठै म्है जीवता हां जितै म्हांरो ई कानून चालेला अर आप मरियां जग परल़ै है! महियां नै मरण मतै देख, दरबार रै आदम्यां रा ई खांचा ढीला पड़ग्या अर कैयो कै कोई बात नीं “आपां बिचलो मारग काढलां, आपरी बात रैय जावै अर हुकम अदुली ई नीं होवै। सो आप म्हांनै गेहूं रो एक मूल़ (दाब, जेट अथवा एक पूल़ो) ई दे दिरावो। ताकि टैक्स तो बजै अर बीजा मिनख ई जाणले कै मोरवड़ै सूं ई उगराई होयगी।” महियां कैयो कै “दरबार रै घणी ज भूख आयगी तो बिनां कर रै लेवै तो पूरै गांम रो धान ले जावो! नींतर टैक्स नाम माथै तो म्हांरै कन्नै ऐ माथा है जिको धरती कारण परा देवांला!!” बात दोनां कानी सूं खंचगी। डांगां निकल़ियै। महियां दरबार रै मिनखां नै कूट काढिया। इण बात रो ठाह पड़ियां सशस्त्र बल़ आयो अर प्रभात री वेल़ा गांम घेर लियो। शस्त्र देखर ई महियां मन माठो नीं कियो अर मरण तेवड़ घरां सूं निकल़ मुकाबलो कियो। राटक बाजी। एकै कानी डांगां अर तरवारिया चारण तो दूजै कानी बंदूकधारी राज रा मिनख। भयंकर मुकाबलो होयो। कानै महिया रै कई तीर लागा पण ओ अडर उण तीरां री परवाह करियां बिनां लड़तो रैयो अर वीरगति वरी। आपरै गांम री मरजादा अर चारणां नै सनातनी प्रदत्त अधिकारां री रुखाल़ी सारू सिरोही केशरी सिंह री टुकड़ी सूं मुकाबलो करर उण बगत नौ चारण-कानोजी, मुकनजी, पेमजी, खेतजी, मनरूप, जवोजी, खेतोजी हिंदजी अर अचल़दान रणखेत रैया। उल्लेखजोग बात आ है कै जवोजी पैलडै दिन ई परणीज र आया। वींदोलो वागो ख़ोलियो ई नीं हो अर गांम माथै अचाणचक आ आफत आ पड़ी। इणां री मां रो जीव काचो पड़ग्यो। उणां कैयो “जवा तूं व्हाला लड़ण मत जाई, थारा अजै कांकण डोरड़ा ई नीं खुलिया है!” जवजी कैय़ो “मा !आ कांई बात करे ? पछै म्है जीव र कांई करूंलो? –

मरदां मरणो हक्क है, मगर पच्चीसी मांय!
महलां रोवै गोरड़ी, मरद हथायां मांय!!

म्है कायरां ज्यूं मोत सूं डरूं नीं, म्है गांम री बात खातर मरूंलो नींतर म्हारी रात लाजेली!!” जवजी री मा रो मन नीं मानियो अर बेटे नै एक ओरै में बंद कर दियो अर बारै एक रुखाल़ो बैठा दियो पण जिकै-

सांई तोसूं वीणती, ऐ दुय भेल़ा रक्ख।
लाज रखै तो जीव रख, लज बिन जीव न रक्ख।।

जवजी कच्चै ओरियै रा केलुड़ा आगा फैंकाय ऊपरकर कूद र रणांगण में जाय भिड़ियो। सगल़ा ई महिया बात रै कारण लड़िया अर रणांगण में झड़ पड़िया।

गोमेई रा मोतीसर मौजीरामजी इण पूरै घटना माथै 5 दूहा अर एक बारह दुहालां रो प्रहास साणोर गीत कैय इण मरटधारियां नै अमर किया-

मोरवड़ा माथैह, आवी फौज अचाण री।
सिरोही साथैह, मरवा रो कीधो मतो।।
जमी काज लड़िया जबर, झड़ पड़िया खग झाट।
धिन धिन रै चांपाहरां, बुवा आद कुल़वाट।।
——
मौड़बंध जवो वींद जूझै मुवो,
लड़ंतां झोख मनरूप लागे।
इल़ा पर हिंदले मरण कीधो अमर,
इसो साको नहीं सुण्यो आगे।।
नवै भड़ गांम कज जीव राख्यो नहीं,
सनी-सनी होय पड़िया सरीरां।
पोतरा भगा रा चढै वैमाण पंथ,
वरै गी अपसरा सूरवीरां।।

नमन ऐड़ै महामारकै सपूतां नै।

~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.