म्हारी तिणखा इसड़ी राणी


म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
नातो हार-थकेलै वाळो, है कड़वी कैंटीन साथ में।
तणखां रै दिन दांईं नहचै, बिल इणरो आ जाय हाथ में।
उमर, उधारी रीत अेकसी, लीनी जकी पड़ै लौटाणी।।
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
बौ’रां तणां तकाजा बिखर्या, दफ्तर सूं घर ताणी म्हारैै।
ओछी फाटी चादर मांही, अेक ढकूं तो दूजी बारै।
करजो कर कर करज चुकाणो, बळतै खीरां आग बुझाणी।।
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
पाटी पोथी फीस पोसाखां, आंगणियै अणगिण आवाजां।
जरूरतां रै जाळ फंस्योड़ा, ऊग्यै-आंथ्यै इकलग भाजां।
अस्पताळ रै आम-वार्ड सी, घर में सगळी उमर बिताणी।।
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
ढळी दुपारी जिम तूं आई, दिन टांग्यां टूट्यै पिछवाड़ै।
परछाई ज्यूं उधड़ण पसरी, झांक-झांक कर अंग उघाड़ै।
ओजूं थनै दिलासा देणी, रिसतै घावां कील चुभाणी।।
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
अै बीखै रा दिन लावै-सा, थारै म्हारै घुटतै मन में।
बणकर अगन-गीत बिखरैला, गांवां-नगरां रै जन-जन में।
जिण दिन सूरज नयो जलमसी, थारै केसां कळी लगाणी।।
म्हारी तिणखा इसड़ी राणी
(ज्यूं) तातै तवै पडंतो पाणी।
~~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”
(श्री ताराप्रकाशजी जोशी रै गीतां रो उथळो।)
कर्जो कर कर कर्ज चुकाणो, बळते खीरा आग बुझानी । शानदार रचना